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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अश्वगन्धा अश्वगन्धा जराजन्य दौर्बल्य,कु, वात व्याधि एवं वातरोगों | ___-ता०। पेन्नेरु-गड-वित्तु लु-ते। अम्कीरे-गड्डे में यह १५ से ६० बूंदकी मात्रा में सेवनीय है। -कना० । मुकिरम्-मल०। काकनज-बम्ब । ( मेटेरिया मेडिका प्रॉफ इण्डिया, पार० एन० पनीर-बन्द, पनीर-जा-फोटा-सिं० । अमुक्कुर-महO खोरी २खं० पृ०४५२) खाम जड़िया, स्पिनबज, शापिङ्ग, खम-ए-जड़े, "बम्बे फ्लोरा" नामक पुस्तक के रचयिता मावजूर, पनीर, कुटिलना-१० । स्पिनबजलिखते हैं कि इसके बीज पुनीर बीजवत् दुग्ध के अफ। जमानेके काम पाते हैं। मैंने भी प्रयोगकर इसकी देशी असगंध के बीज परीक्षा की और वस्तुतः इसके बीज में किसी पुनीर के बीज-हिं० । हिंदी काकनज के बीज, प्रकार उक्र शनि को विद्यमान पाया। (फा०ई० नाट की असगंध के बीज-द० । हब्बुल-काकनजे. २ भा० पृ० ५६७) हिन्दी-अ० । तुझमे काकनजे हिंदी-फ़ा० । विथे. रॉग्ज़बर्ग लिखते हैं कि तैलिंग चिकित्सक निया ( पुनीरिया) कोग्यूलेंस Withania इसको विषघ्न मानते हैं। ( Puneeria ) Coigulans, dunऐसलो लिखते हैं कि बाजार में मिलने वाली al - (Feeds of-.)-ले। अम्मुकुड़ा-वि. जड़ पांडु वर्ण को होती और उसका वाह्य स्वरूप ता० । पेनेरु-गडु-वित्तुलु-ते। अश्वगंद विची जेन्शनकी तरह होता है;परंतु इसमें किंचित् अगाय -बं० । स्वाद एवं गंध होती है । यद्यपि तैमूल चिकित्सक वृहती वर्ग इसको अवरोधोद्घाटक और मूत्रल मानते हैं (N.O. Solanaceue) और इसका काथ चाय की प्याली भर दिन में दो बार प्रयक्र करते हैं। पत्र को किंचित् उष्ण उत्पत्ति-स्थान-भारतीय उद्यान, बन, एरंड तेल में सिक्र कर विस्फोटक पर स्थापित पर्वत तथा खेतों की बाड़ों में यह बूटी सामान्य करते हैं। रूप से होती है। पंजाब, सिन्ध, सतलज की बीज मूत्रल और निद्राजनक प्रभाव करते है घोटी, अफ़ग़ानिस्तान और बिलूचिस्तान । हैं । ( इर्विन) वानस्पतिक-वर्णन-एक लघु, दृढ़, धूसर, लगभग १ गज उच्च चुप है । पत्र श्लेष्मातक फल मूत्रल है । पत्र अत्यन्त तिक्क होते हैं पत्रवत्; किन्तु उससे किञ्चित् लम्बोतरी शकल के और ज्वर में इसका फांट व्यवहार में आता है । शाखा बहुल, प्रत्येक शाखा पर अधिकता के साथ पञ्जाब में यह कटिशूब निवारणार्थ प्रयुक्र होता है और कामोद्दीपक माना जाता है। सिंधमें गर्भ फल लगे होते हैं । समग्र फल लगभग ई. पात हेतु इसका व्यवहार होता है । राजपूत लोग त्यास में, आधार पर चिपटा, एक चर्मवत् कण्ड इसकी जड़ को प्रामवात तथा अजीर्ग में लाभ द्वारा श्रावृत्त, जिसके शिखर पर एक पञ्च विभाग दायक मानते हैं। (इं० मे. प्लां.) युक्त सूक्ष्म छिद्र होता है जिससे फल का एक दशी असगंध (प्राकसन बूटी) सचम अंश दृष्टिगोचर होता है। परिपक्व होने अश्वगन्धा सं०, बं०, मह०,को० । देशी पर यह रकवर्ण का किन्तु शुष्कावस्था में पीताभ असगंध, प्राकसन, अकरी,पुनीर-हिं । काकनजे एवं छिलकावत् हो जाता है। उसके भीतर हिन्दी-अ०, फ़ा। विथेनिया ( पुनीरिया) को- चिपटे वृक्काकार बीजों का एक समूह होता है जो ग्यूलेन्स Withania ( Puneeria ) चिपचिपे धूसर मजा से संश्लिष्ट होता और Coagulans, Dunal.-ले। वेजिटिबल जिसकी गंध हृल्लास जनक फलीय होती है। बीज रेनेट Vegetable rennet-.50 नाट की अधिकाधिक इच लम्बे होते हैं। पत्र का असगंध, हिंदी काकनज-द.। अमुक ड़ा-विरै स्वाद एवं गंध तिक्क होती है। ६७ For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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