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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवगंट अखातः पुरुष दोनों प्रकार के पुष्प होते हैं। इनमें परिवर्तक, और संकोचक इसका क्वाथ (१२ में १) पुरुष (Indrecium) की संख्या अत्यधिक कंठ-माला, श्वेतप्रदर प्रभतिकेलिए लाभ जनकहै । होती है । फल देो कोष युक्त मैनफल वा बहेड़े के बीज-इसमें तेल, एल्युमीन या जुग्लैरिक एसिड समान अण्डाकार होते हैं। उनके ऊपर तीन और राल होती है। छिलके होते हैं, इनमें प्रथम हरा और मोटा अपक्वफल कृमिघ्न | पक्वफल या मांगी-"श्र (पकने पर जैतूनी रंग का हे। जाता है) स्वाद क्षोटः कोऽपि वाताद सदृशः कफ पित्त कृत्" भा.) कौनः श्रोर कड़वाई लिए हुए होता है। यह प्र.) फ) व०। स्वादिष्ट, भक्ष्य, पुष्टिकर और फल कचेग्न में नरन परन्तु सुखकर कठोर हे। कानोदीपक ! फलत्वक कृमिघ्न, उपदंश नाशक जाते हैं । द्वितीय छिलका पहिले छिलके के नीचे वृक्षावक संकोचक,कृमिघ्न और दुग्ध नाराक कोर होता है। फिर इसके दो टुकड़े प्रापस (Lactifure) तथा व्रणशोधक | ई0 मे में मिले और सिरा उनका निकला हुअा तथा मे० । ई० मे प्लां०। तीसरे छिलके के भीतर से टेढ़ा मेढ़ा गूदा वा इसकी लकड़ी मेज, कुरसी, बंदूक के कुन्दे, संदृक नीली गिरी निकलती है। मींगी के ऊपर बहुत श्रादि बनाने के काम में पाती है। इसकी छाल बारीक छिलका होता है। भीगी अंडाकार सफेद रंगने और दवाके काममें भी पाती है । डठल कुछ चिपटी और चिकनाई लिए पिस्ते और चिल और पत्तियों को गाय बैल खाते हैं । गोजे की मींगी के समान होती है, इन सबके चार भाग होते हैं | दो दो भाग आपस में मिले । अखरोट-जंगली akharota-jangali-हिं० संज्ञा इनके बीच में बहुत बारीक परदा होता है। फल पु.(१) जायफल (Nut-meg) अरण्याका वृहत्तम व्यास लग भग २॥ इच होता है। क्षोट । जंगली अखरोट । इसकी लकड़ी बहुत ही अच्छी मज़बूत और भरे । अखरोस akharosa-पु. (१) एक बूटी है, रंग की होनी है और उसपर बहुत सुदर धारियाँ ___ जो फ्रांस तथा सर्द दरियाई देशों में उत्पन्न होतो पड़ी होती हैं। है ( २ ) जंगली गेहूं। श्राक्षोट तैल-गुण-अखरोट के गूदे में से अखरोट akharouta-वं. अखरोट, अनोट तेल भी बहुत निकलता है । मूलक तेलवन् । Walnut- (Juglans-regii. )। कृमिना रान हेतु मुख्यतः कद्दाना ( Tape अखर्व ak har ba-हि. वि० [सं०] | बड़ा । worm ) को मारने के लिए मृदुभेदन और लम्बा । (Not dwarfish.)। पित्तनि:स्सारण हेतु इसके तेल का याभ्यन्तरिक अवयंस akharyusa- पु. पहाड़ी गन्दना । और दृष्टि मान्द्य हेतु वाह्य प्रयोग किया जाता है। अखलः akhalah-सं० पु. उत्तम वैद्य । नोट-उपयुक समस्तपर्याय इसी के मांगी अखसत akhasata-हिं० संज्ञा पु. [ अक्षत ] अथवा फलके हैं। लेटिन नाम जुग्लेज रेजिया (juslims trii) इसके वृक्ष के लिए चावल ( Rice) | पाया है। अखा akha हिं. संज्ञा पु० देखो-पाखा । प्रयोगांश-फलत्वक, त्वचा, बीज (मांगी), अखाड़ा का भेद akhdqa--ki-bheda-द. फल और खोपरी (Nut) अपामार्ग भेद। प्रभाव वा उपयोग । गुण-मधुर, बलकारक अखात akhata-हिं. संज्ञा पुं. विना स्निग्ध, उरण, वातपित्तनाशक, रक्रविकारहर, खुदाया हुआ स्वभाविक जलाशय ताल, झील शीतल तथा कफ प्रकोपक है ! ग० नि0 व० ११ खाड़ी (A natural lake.)। मधुर, बल्य, गुरु, उष्ण, विरेचक और वातनाशक | अखातम् akhatam-सं० क्री०). to } देवग्वान-हिं० । मद बीउ अवानः akhatah-सं०प० । For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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