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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org क्षेत्रक रुपये के बराबर ब्लिस्टर लगाने और फिर निलस्टर जनित इस पर मरहम सिथून लगाकर उसको दस दिवस पर्यन्त शुष्क न होने देने से और विकारी पार्श्व अर्थात् जिस ओर तीव्र वेदना "होती है उस ओर के कान के पीछे के प्रस्थ्यपर सई के पलस्तर लगाने से प्रायः लाभ होता है। यूनानी वैद्यकीय चिकित्सा रोगी को एक अँधेरे कमरे में सुखपूर्वक लिटाए रखें और उसके प्राकृतिक शैत्य व ऊष्मा को ध्यान में रखकर वाह्य तथा श्रान्तर उपचार काम में लाएँ तथा रोग के मूल कारण का परिहार करें । अस्तु उदर के आहार से पूर्ण होने से वाष्पोत होकर इस प्रकार का शूल हुआ हो तो ( १ ) तीन पात्र उष्ण जज में सिकअबीन सिर्का ४ तो० और सैंधव १ तो० को विलीन कर पिलाकर मन कराएँ । यदि मलावरोध की भी शिकायत हो तो किसी उपयुक्त वस्तिदान द्वारा उसको शीघ्रातिशीघ्र निवारण करें। प्रकृतोष्मा की दशा में रोगी को ( २ ) कपूर तथा श्वेत चन्दन सुँघाएँ तथा ( ३ ) २ रत्ती अफीम, ४ रत्ती कपूर को पानी वा स्त्री दुग्ध में घोलकर नस्य दे या ( ४ ) केवल रोगन बननशा वा श्री दुग्ध का उक्त विधि से सेवन कराएँ या ( ५ ) सिन्दूर ४ रती को एक काग़ज़ पर मल कर उसकी बत्ती बनाकर उसका एक सिरा वेदना होने वाली मासिका के विपरीत दूसरी ओर की नाक में रखें और दूसरे सिरे की ओर से जलाकर धूनी लें । मादा के विनाश हेतु पिण्डलियों पर मज़बूत बंधन लगाएँ और पाशोया कराएँ । ( ६ ) चन्दन और कपूर को गुलाब में घिसकर शिर और शंख स्थल पर प्रलेप करें । ( ७ ) परीक्षित प्रलेपसेठ, चन्दन श्वेत, एरण्ड मूल स्वक् सब को सम भाग लेकर साठी चावल के धोवन में पीस कर मस्तक और कनपटी पर लगाएँ। इससे हर प्रकार के अद्धविभेदक में लाभ होता है । ( ८ ) उम्र वेदना की दशा में कुर्स, मुसल्लस का व्यवहार करें। ( ३ ) वर्ग मोरिद सब्ज़, मुरमकी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेक सिम सनोतरी, रसवत मक्की, रसवत हिन्दी, समग अरबी, निशास्ता, अजरूत, कतीरा, पोस्त कुंदुर, गुलनार फारसी, श्रकाकिया, दम्मुल अवैन, शियान मामीसा प्रत्येक ३ मा०, अफीम ६ मा०, जाफरान २ मा० । समग्र औषध को कूट कर मोरिद के हरे पत्तों के पानी में गूँ ध कर टिकिया प्रस्तुत करें। श्रावश्यकता होने पर एक टिकिया को अण्डे की सदी में घोल कर गोल और छिद्रयुक्त काग़ज़पर लगाकर शांखिकी धमनी पर चिपका दें। इससे बहुत शीघ्र वेदना शान्त हो जाएगी । ( ) अनिद्रा की दशा में रोगन बनफ्शा, रोगन कह, या रोगन काहू प्रभृति का शिर पर अभ्यंग करें। इससे नींद आ जाती है। प्रकृति के शैत्य की दशा में मेंहदी के पत्तों को पीसकर इसका प्रलेप करें या बादाम ५ को सर्षप तैल में पीसकर मस्तक पर लगाएँ और रीठा को पानी में घिसकर दो तीन बूंद नाक में टपकाएँ | इससे लाभ न होनेकी दशा में यह प्रलेप लगाएँ । 90 एक जमालगोटा को पानी में घिसकर वेदना युक्र पार्श्व की दूसरी ओर की कनपटी पर रुपया के बराबर प्रलेप करें। यदि इससे अधिक जलन हो और फोस्का उत्पन्न हो जाएँ तो उसपर मक्खन लगाएँ । पुरातन श्रधासीसी पर निम्न द्रलेप का उपयोग करें। मेंहदी के पत्र इन्द्रायण का गूदा, उश्शक, इक़ीलुल मलिक, कबाबचीनी, एलुआ सबको समान भाग लेकर बारीक पीस लें और सिरका में मिलाकर प्रलेप करें या यह प्रलेप लगाएमुरमकी २ मा० को किञ्चित् सिरका में पीसकर लेप करें । नस्य यह साधारणतः उस कफज श्रद्धव भेदक में जिससे शिर में गर्मी और वेदना की शिकायत एवं टीस नहीं होता, लाभदायक है । समुद्र फल १ और नवसादर : मा० दोनो को बारीक पीसकर सूर्य की ओर मुखकर नस्य लें । इससे प्राय: छींकें श्राकर वेदना शांत हो जाती है। दिन में कई बार प्रयोग करें । For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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