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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अचिः ६५ अर्जकादिवटिका - इच्छा होने पर भी नहीं खाता, ऐसा रोगी सुख अर्ज arja ) -अ० झुकना, सुगन्ध फैलना । साध्य होता है। अरीज arija s पफ्यूम ( Perfume.) चिकित्सा–हिंसात्मक ग्रहों को वेदोक्र मन्त्रों अ. aza-० (१) पृथ्वी, भू, एक तत्व विशेष । द्वारा । वं होमादिसे जय करें । अर्चाकामी ग्रहोंको (Earth) देखो-तत्व । (२) चौड़ाई । यथाभिलाषित वलिप्रदानादि से जय करने का अायत । अर्ज-हि०। उपाय करें। वा० उ० अ० ३। अर्जह arzah-अ० दीमक । (White ant.) अर्चि: archih-सं० स्त्री०, क्ली० अर्जकः arjakah-सं० पु. । (१) प्रचि archi-सं० स्त्री०, हिं० संज्ञा स्त्री० अजक arak-ह० पु. शुद्रतुलसी(१) अग्निशिखा, लांगलिक, करिहारी । भेद, वावरी-हि० । यात्रुइतुलसी-बं० । अज्वला (Gloriosa superba.)। (२)अग्निज्वाला, गर्गेर-कं० । तेल्लगगगेरचेट्ट-ते० । (Oci. गज पिप्पली ( Pothos officinalis)। mum Basilicum.) । पर्याय-श्वेत(३) चमक, आँच, ज्योति, दीप्ति, तेज च्छदः, गन्धपत्रः, पाता, कुरेरकः । “वर्वरिकाकारो (Light, splendour.) । (४) अग्नि लघुमञ्जरीकः सूक्ष्मपत्रः निर्गन्धः श्वेत कुठेरकः' : श्रादि की शिखा । (५) किरण । ( बाबुई )।" सु० सू० ३८ अ० सुर सादि अर्चिमान aurchimāna-हिं० वि० [सं०] | ड०। श्वेत वर्वरी। शादा बाबुई-बं० । भा० पू०१ भा०। श्वेत पर्णासः, श्वेत तुलसी, तोकअर्चिष्मान् archishmān-हिं० संज्ञा पु.। मारी । सि० यां. विसूची-चि. वमन शान्ति | .. [सं०] [ स्त्री० अर्चिप्मती ] (1) अग्नि अर्जक अर्थात् वावरी श्वेत, कृष्ण तथा रक्क भेद ( Fire ) (२) सूर्य ( The sun. ) से तीन प्रकार की और तीनों गुण में -वि० [सं०] दीप्त । प्रकाशमान । चमकता समान होती हैं। (Lighted. ) गुण-कटु, उष्ण, वात कफ रोगनाशक, नेत्र अर्ची archi-ता० काञ्चनार, कचनाल (र)। रोगहर, रुचिकारक तथा सुखप्रसवकारक है । ( Bauhinia racemosa, him. ) रा०नि० व १० । देखो-वर्वरो ( बनतुलसी, मेमो०। विश्वतुलसी) । ( २ ) श्वेतपलाश वृक्ष । अर्ज aarzan-अ०(१) पी, लु (Salvadora Butea frondosa (The white persica.)। (२) दर्शनशास्त्र (हिक्मत) var.) की परिभाषा में उस वस्तु को कहते हैं जो दूसरे अर्जकर्जः arjakarja.h-सं० पु. असन वृक्ष, के आधार से स्थित हो अर्थात् जिसका अस्तित्व प्रासन (-ना), पियाशाल ।( Terminalia दुसरे के आधार पर हो । रदाहरणतः ___tomentosa.) देखो- श्रासन । रंगीन कपड़े में जो रस्ता, श्यामता या श्वेतता अर्जकादिवटिकाarjakādi-vatika-सं० स्त्रा० प्रभति वर्ण पाए जाते हैं वे "अज़” हैं और सफेद तुलसी मूल, शंखाहुली मूल, निर्गुण्डी, स्वयं कपड़ा उनका मूलाधार है। और पदार्थत्व भांगरे की जड़, जायफल, लवंग, विडंग, अर्थात मृदु, लघु, सूक्ष्म प्रभृति गुण पदार्थ के गजपीपल, चातुर्जात, वंशलोचन, अनन्तमूल, अस्तित्व को प्रगट करते हैं अर्थात् वे पदार्थानित मूसली, शतावरी, विदारीकन्द, गोखरू सब को हैं तथा "अज" या गुण कहलाते हैं। क्रिया. कीकर की छाल के रस में खरल करके १-१ मा० स्मक लक्षण, धर्म, स्वाभाविक गुण, लक्षण की गोलियाँ बनाएँ । अनुपान-सुरामण्ड । यह प्रभति इसके पर्यायवाची शब्द हैं। क्वालिटी गोलियाँ स्तम्भक और वृष्य हैं । भै० र० . (Quality ) ई० । वी० स्तं०। For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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