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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अरेबिक एसिड ६१४ शर्करा तथा तंतु खाद्य और व्यवहार कार्य में श्राते हैं। मेमो० । अरेबिक एसिड arabic acid इं० श्ररबिकाम्ल | फा० ई० १ भा० । अरेबियन कॉस्टल arabian costus - इं० कूट, कुछ - हिं० । पाचक- वं० । ( Saussurea lappa, Clarke. ) । फा० इं० २ भा० । अरेबियन जस्मिन arabian jas niue-इंο बेला- हिं० । वार्षिकी सं० (Jasminum sambac. ) अरेबियन मिर्ह arabian myrrh इं० बो(चोल - हिं०, बं०, गु० । (Balsamode dron, Sp.) फा० ई० १ भा० । अरेबियन लेवेण्डर arabian lavender इं० धारू - हिं० । उस्तुखुद्द स ( Lavandula sloechas, Linn.) अरेबियन सेना arabian senna--इं० सनाश्रू जली, सना मक्की । ( Cassia angustifolia, Tuhl.) फा० ई० १ भा० । सनाय विशेष | अरेबींस चाइनेन्सिस् arabis chinensis -ले० एक पौधा विशेष | अरेयल areyal- मल० पीपल वृक्ष, अश्वत्थ | ' ('Ficus religiosa ) इं० मे० मे० । अरेलिया aralia - इं० तापमारी । गिन-सेङ्ग ची० | फा० ई० २ भा० । अरेलिया एकीमाइरिका aralia achemirica, Dene --ले० बनखोर, चुरियल - पं० । मेमा० | -अरेलिया ग्विल फॉय लिया aralia guilfoylia - ले० तापमारी - हिं० । गिन्-से गचो० । फा० ई० २ भा० । अरेलिया स्युडोगिन्सिङ्ग aralia pseudoginseng, Benth, Wall. Pl., As, Rar, t., 1.57 - ले० तापमारी-हिं० । गिन्सेंग चो० । फा० इ०२ भा० । अरेलिपसाई araliaceae..ले० तापमारी वर्ग । .. झरोकदन्तः aroka-dantah- सं० त्रि० कृष्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अरोचक दन्त, काले दाँत वाला । वै० निघ० । अरोग aroga हिं० वि० [सं०] रोग रहित । नीरोग | श्ररोगी arogi - हिं० वि० [सं०] जो रोगां न हो । नीरोग । चंगा | श्ररोच arocha-fo संज्ञा पुं० [सं० रुचि ] रुचि का अभाव । अनिच्छा । त्याग | अरोचकः arochakab सं० पु० अरोचक arochaka - हिं० संत्रा पु० [वि० जो रुचे नहीं । अरुचिकर । ( Disagreea ble ) । ना मब- अ० । ] एक रोग जिसमें अन्न आदि का स्वाद मुंह में नहीं मिलता । रुचिरोग । संस्कृत पर्याय- अरुचिः, अश्रद्धा, श्रनभि लाषः । रा० । डिसलाइक श्रॉफ फोर-फूड Dislike of forefood, डिसगस्ट फॉर फूड Digust for food, डिसरेलिश Disrelish, अवर्शन avertion-इं० । निशन यह दुर्गंधयुक और घिनौनी चीजें खाने और घिनोना रूप देखने तथा त्रिदोष के प्रकोप से उत्पन्न होता है । लिखा है "वातादिभि: शोक भयाति लोभ ( भयाति लोभ -भा०) क्रोधैर्मनोध्नाशन रूपगन्धैः । श्ररोचकाः स्युः परिहृष्ट दन्तः कपाय वक्रूश्च मतोऽनिले न ॥" ( मा० नि० । भा० प्र० ) अर्थवात, कफ, शोक, भय ( भयरोग ), अत्यंत लोभ, क्रोध, श्रप्रिय भोजन तथा बुरे रूप का दर्शन और दुर्गन्ध इन सब कारणों से मनुष्यों के श्ररुचि रोग उत्पन्न होता है। वात की अरुचि में रोगी के दन्तहर्ष होता और मुख कषैला रहता है । रोचक के प्रधान पाँच भेद हैं--- (१) वातज, ( २ ) पित्तज, ( ३ ) कफज, ( ४ ) सन्निपातज और ( ५ ) शोकादि से उत्पन्न अर्थात् श्रागन्तुज | लक्षण (१) वातारोचक:- अम्ल पदार्थ के भक्षण For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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