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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भरण्यतम्बाकू अरण्यतुलसी कि श्वास तथा शिश्वाक्षेप ( Infantile यह यक्ष्मा की मूल्यवान औषध है तथा यह convulsions ) में इसका उपयोग किया रात्रिस्वेद को रोकती, कास को कम करती और गया है । डॉक्टर एफ० जे० बी० क्विनलैन प्रांत्र शैथिल्य को ठीक करती है। एक बाउंस (१८८३) ने आयरलैंड में इसके पत्र को दुग्ध (२॥ तो०) इसके पत्र को एक पाइण्ट (१० में उबाल कर क्षयजन्य कास तथा अतिसार के छटांक ) दुग्ध में उबाल कर दिन में दो बार मुख्य औषधीय उपयोग की ओर ध्यान दी। उपयोग करने से यह श्वासावरोध को दूर करता उन्होंने बतलाया कि बागों में उक्त पौधे की है। (वैट) विस्तृत कृषि की जातीहै । उनका दावा है कि यह मूत्रावयवस्थ क्षोभ तथा प्रदाह, प्रतिश्याय इसमें कॉडलिवर जाइल (कोड मत्स्य यकृतैल) और अतिसार में लाभदायक है। श्वास रोग समान शरीरभारवद्धक तथा रोगनिवारक गुण में इसके शुष्क पत्र को हुक्का पर पीते हैं अथवा इसका सिगरेट उपयोग में लाते हैं। इसकी जड़ ज्वरघ्न रूप से दी जाती है । इसके डाक्टरविन लैण्ड के चिकित्सालय विषयक बीज कामोत्तेजक हैं। इसके पत्तेको रगड़कर उसमें प्रयोगों द्वारा निम्न परिणाम स्थिर किए गए हैं:तैल सम्मिलित कर तथा उसे गर्म करके शोथ (१) यक्ष्माकी प्रारम्भिक तथा उरःक्षतीय अवस्था युक्र स्थानों पर लगाते हैं । मुट्ठी भर इसके पत्र से पूर्व प्रयोग करने से मलोन में कॉड लिवर को १ पाइंट (१० छटांक ) गोदुग्ध में यहाँ तक उबालें कि अद्ध पाइंट (५ छटांक) दुग्ध शेष श्राइल (कांड मत्स्य यकृतेल) की अपेक्षा अधिक तथा रशन कौमिस (Russian koumiss) रहजाए । तदनन्तर इसे छानकर शर्करा सम्मिलित | कर सोते समय सेवन करें। इससे कास कम के तुल्य शरीरभारवर्द्धक एवं रोगनिवारक शक्ति होती है तथा वेदना और क्षोभ दूर होते हैं। है। (२) उरःक्षतावस्था में यह कास को इं० मे० मे०। बहुत कम करता है। (३) यचमीयातिसार पूर्णतः प्रतिवन्धित हो जाता है। (४) इसका डॉक्टर स्टयुवर्ट के कथनानुसार इसको यचमा के रात्रिस्वेद पर कोई सशक प्रभाव नहीं रेवन्दचीनी भी कहते हैं । यह इस कारण है कि कभी रेवन्दचीनीमें इसका मिण करते थे। होता । अस्तु उसका धन्तूरीन (ऐट्रोपीन ) से सामना करना चाहिए। पी०वी०एम०। गैराड-डिजिटेलिस में कभी कभी इसका तथा अन्य पौधोंका मिश्रण करते हैं । दत्त महोदय | अरण्य-तुलसी aranya-tulasi-सं० स्त्री० वर्णन करते हैं कि देशी लोग इसे श्वास तथा वनतुलसी, कृष्ण तुलसी । ( Ocimum फुप्फुस रोगों में वर्तते हैं और यह कि इसमे Gratissimum ) कालावावरी-हिं० । तमालवत् (ताम्रकूट अर्थात् तम्बाकूवत् ) निद्गा- राणतुलस-मह० । वैजयन्ती तुलसी। यह दो जनक गुण है। बीज कामोद्दीपक ख्याल किए प्रकार की होती है:-- (१) हस्व ( छोटी ) जाते हैं। तुलसी और (२) दीर्व (बड़ी) तुलसी । युरुप तथा अमरीका के संयुक्तराज्य में एक गुण-- जंगली तुलसी सुगंधयुक्त, उपण, कटु समय स्निग्धताजनक वा नहुताकारक रूप से है तथा वात, चर्मदोष, विसर्प और विषनाशक इसके घने ऊर्णीय पत्र का केवल गृह औषध में ही है। छोटी जंगली तुलसी कटु, उष्ण, तिक, नहीं, अपितु चिकित्सकगणों में भी बहुत रुचिकारक, दीपन, हृदय को हितकारक, लघु, मान्य था । प्रतिश्याय तथा अतिसार की विदाही, पित्तकारक एवं रूक्ष है तथा कण्डू, विप, चिकित्सा में इसका अन्तः और अर्श में वाह्य छर्दि, कुष्ट और ज्वरनाशक है एवं वात,कृमि,कफ, (प्रलेप रूप से ) उपयोग किया जाता था। दद् तथा रक्रदोष नाशक है। बीज-दाह तथा (वैट) शोषनाशक है। वै. निघ० द्र० गु०। For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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