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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्ररणी ( २ ) शीतपित्त में गणिकारिका मूल - अग्निमन्थ की जड़ की छाल को पीसकर ( कल्क ) गोवृत के साथ एक सप्ताह पर्यंत पीने से शीतपित्त, उदद्द और कोठ का नाश होता है । (शीतप्रित्तोद - चि० ) । ( ३ ) स्थूलता गणिकारिका मूलत्वक - श्रग्निमन्थ की जड़ की छाल द्वारा निर्मित क्वाथ में शिलाजीत का प्रक्षेप देकर पान करने से स्थूलता नष्ट होती है । ( स्थौल्य - चि०) ५७०. में वक्तव्य चरक, अनुवासनोपन, शोथहर एवं शीत• प्रशमन वर्ग में तथा सुश्रुत, वरुणादि व वीरदि गण में गणिकारिका का पाठ श्राया है । किसी किसी देश में वातरोगी को गणिकारिका के पत्र का शाक व्यवहार कराया जाता है । नःयमत प्रभाव - अरणी पाचक, श्राध्मानहर, परिवर्शक (रसायन) और बल्य है । प्रयोग - इसके पत्र का फांट ( १० में १ ) विस्फोटादि कृत ज्वर, शूल, उदराध्मान में १ से २ आउंस की मात्रा में व्यवहृत होता है श्रौर मूलत्वक् क्वाथ ( १० में १) ज्वरावसानज दुवस्था, प्रमेह, श्रामत्रात तथा वातवेदना ( Neuralgia. ) रोग में सेवनीय है । (मेटिरिया मेडिका ऑफ़ इण्डिया - श्रार० एन० खोरी, भा० २, पृ० ४७२ ) एन्स्ली (Ainslie ) लिखते हैं - गणि कारिका मूलत्वक क्वाथ हृद्य, पाचक एवं ज्वर में लाभदायक । इसकी जड़ तिक एवं प्रियगंधि है तथा क्वाथ रूप में प्रयुक्त होती है । ऐकिन्सन ( Atkinson. ) लिखते हैं - शैत्यप्रभव रोग एवं ज्वर में गणिकारिका पत्र Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अरण्डी का तेल ॐ को काली मरिच के साथ पीसकर व्यवहार करते हैं। शाखा - पत्र सहित अर्थात् गणिकारिका के पञ्चांग को कूटकर क्वाथ प्रस्तुत करें । आमबात तथा वात वेदना ( Neuralgia ) ग्रस्त रोगी के अंग को उक्त क्वाथ से सेचन करें । (डिमक्, ३ य खंड ६७ पृ० ) आर० एन० चोपूरा महोदय के अनुसार यह एक साधारण चुप है जो भारतवर्ष के बहुत से भाग विशेषकर समुद्रतटों में पाया जाता है । प्राचीन चिकित्सकों ने इसके पत्र एवं मूल में . प्रभावात्मक औषधीय गुण के वर्तमान होने का उल्लेख किया है। इसकी जड़का क्वाथ ( लगभग ४ श्राउंस १ पाइंट जल में १५ मिनट उबाल कर ) २ से ४ आउंस की मात्रा में पाचक एवं तिक्तवल्य रूप से दिन में २ वार प्रयोग क्रिया जाता है । इसी हेतु पत्र भी व्यवहार में श्राता है । (इं० ड्र० ई० पृ० ५६२ ) अरणीकेतुः arani-ketuh - सं० पु० महाग्निमन्थ वृक्ष, बड़ी अरणी । बड़ गणिरि-बं० । थोर ऐरण - मह० 1 (Premna longifolia.) रा० नि० व० है । अरण्ड aranda - हिं० पू० ( १ ) रेंडी का पेड़, डीवृत्त, एरण्ड । ( Ricinus vulgaris or Palma christi. ) | ( २ ) - सं०, हिं०, सिंघ उलटा कण्टा - कुमा० । (Cadaba harrida ) इं० मे० प्रा० । हीडो ( Rheede.) इसको अप्पेल नाम से अभिहित करते हैं और इसके पत्र के क्वाथ को उदराध्मान में सेवनीय बतलाते हैं। लंका में यह महामिदि या मिदि-गस्स नाम से प्रसिद्ध है । 1 श्ररण्डककड़ी aranda kakari - हिं० स्त्री० अरण्ड वूजा aranda-kharbuja--हिं० प० अरण्डै पपथ्या aranda-papayyá-हिं० पु० पपीता, विलायती रेंड़, पपय्या - हिं० । अरुडखरबूज़ा ( Carica papaya ) | ० श्र० डॉ० । म० श्र० । मु० श्र० । अरण्ड तैल aranda-taila अरण्डी का तैलarandi-ka-taila j एरण्डतैल, रेंडी का तैल | Castor oil - हिं० पु० } ( Oleum_Ricini.) For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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