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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकालिक १६ प्रकाशबेल अकालिक akālika-हिं० वि० [सं०] असाम यिक । बिना समय का । बे मौके का। अकालीम ajalim-अ. (व.व.), इक़लीस (ए० व०) देश, भाग, स्थान-हिं० । कण्ट्री (Country )-इं। अकाव akava-हिं० संज्ञा पुं० [सं० अर्क] ! Calotropis gigantoa, K. Br. , मदार । अकाशदेवी akashaaleevi-द० एक पौधा विशेष। अकाश (स ) पवन akash,s-pavan-द० अकासबेल, अमरवेल--हिं० । कसूस--फा० । (Cuseita Rf XI, Road.) ई० मे० मे० । प्रकाशववर-akasha, barar,-11-हिं० अकासबेल(Cuseuta Reflesa, Ro.re.) प्रकाशवल्लो nkāsha balli-सं० स्त्री० अकासवेल (Cuscinta Reflexa,Real.) प्रकाश (-स) बेल akasha, -sa-bela -हिं० संज्ञा पु[सं० अाकाशवेलि] अकाशबॅवरी, अमर-वेल,अकाशबेलि, अंबरवेलि, श्राकास बौर, -हिं० । अकाशबल्ली, खवल्ली, अमर वल्ली-सं० । अकाशवेल, आलोकलता, अल्गुसी, हल्दी, अलगुसीलता-बं० । अफ़्तीमूने हिन्दीयु०, अ०। कप से हिन्दी-फ़ा० । कक्स्युटा रिफ्लेक्मा ( Cusuta Reflexa, Romb.) केस्मिथा फिलिफॉर्मिस (Cassytha Filifornuis, Lim. )-cool IST (Dodder) -ई। कोतान, इन्दिरावल्ली, नान्दे -ता० । इन्द्र जाल, पाचीतिगे, पञ्चनिगा-ते०, तेलं० । अकाश वल्ली-मल० । बेल्लुबल्लि,नेलमुदवल्लि, शविगेबल्लि अमरबलि-कना०,कर्ना० । असरबेल, अन्तरबेल, सोनबेल, अलरोइल्ला-मह० । अमरबेल-गु० । कोतन--३० । अल्गजड़ी-सन्ता० । नेदमुदवल्ली-- का० । अन्तरबेल--को० : शियून--तु० । लतावर्ग(N. 0. Convolrulace.) उत्पत्ति स्थान-प्रायः समस्त भारतवर्ष । वानस्पतिक विवरण-अकासबेल सर्वथा एक __ परायी लता है जो डोरे सी कीकर, बेर, अडसे इत्यादि वृक्षों पर जाल की तरह फैली हुई होती है। इसका तना गहरे हरित वर्ण का होता है जिस पर लम्बाई के रुख पीली पीली धारियाँ पड़ी होती हैं। अंकुर से पतली जड़ निकल कर भूमि में प्रविष्ट होजाती है और तना शीघ्र शीघ्र बढ़ने लगता है । इससे चोषक सूत्र (Suckers) निकल कर निकटस्थ वृक्ष की डालियों में निज आहार हेतु मार्ग बनाते हैं और उक वृक्ष से श्राहार सम्बन्धी अावश्यक तत्त्व, जैसे-जल तथा लवण जो वृक्ष में विद्यमान होता है, प्राप्त करते हैं। इस प्रकार की व्यवस्था होजाने पर जड़ सूख जाती है और पुनः लता का भूमि से कोई भी सम्बन्ध नहीं रह जाता । ऐसे भी इसके टुकड़े करके वृक्षों पर डाल देने से यह उस पर बढ़ने लगता है। यदि अंकुर को कोई उपयुक्र आधार न मिले तो भी वह सूख जाता है। सूक्ष्म परतों के अतिरिक्र इसमें पत्ते नहीं होते और नही इनसे उनको कोई लाभ होता है । तने को काट कर देखने पर बाहर मज़बूत नालीदार रेशे और मध्य में मा गूदा दीख पड़ता है। पप श्वेत रंगके पाते हैं,पुष्पवाद्यावरण (Sepals) को हटाने पर भीतरसे मटर के आकार के गोलाकार बीज निकलते हैं। वर्षाकाल में इसकी बेल उगती है तथा एक ही वृक्ष पर प्रतिवर्ष पुनः नवीन होती है। इसी कारण इसको "अमरबेल" (Immortal ) कहते हैं। यह वृक्षों के ऊपर होती है और इसका भूमि से कोई सम्बन्ध नहीं रहता इस कारण इसको आकारावेल अादि नाम से पुकारते हैं। इसका लेटिन नाम कस्क्युटा ( Cuscuta.) कसूस से, जो अफ़्तीमून (श्रकारा बेल विलायती) का अरबी पर्याय है, व्युत्पन्न है । देखो-अफ्तोमून। उपयुके दोनों लेटिन पर्यायों में से प्रथम अर्थात् कस्क्युटा कॉन्वॉल्ल्युलेसीई वर्ग का तथा द्वितीय अर्थात् कैस्सिथा लॉरेसीई ( Laracet') वर्ग का पौधा है। छोटे छोटे भेदों के कारण इसकी बहुत सी जातियाँ होगई हैं। अस्तु, इनमें से किसी के For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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