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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अरग्वधः भरङ्गका अरग्वधः aragvad hah-सं० पु. अमल तास, श्रारम्वध, धन बहेड़ा । ( Cassia fistula.) रा० नि०व०६ । भा० पू०१। भा० । द्रव्य० गु० ३० निघ०। अरग्वधम् aragvadham-सं० क्ली. अमल तास, स्वर्णालुफल । (Cassia fistula. ) सि० यो० वृहद् अग्निमुख चूर्ण । अरघान alaghāna-हिं० संज्ञा पुं० [सं. आघ्राण=घना ] गंध । महक । आघ्राण । अरङ्गः,-गा,-गोaringah,-ga-gi-सं००, स्त्रो० (१) एरङ्गीमत्स्य, मछली भेद, मछली विशेष ( Pisces.) वै० निघ० । (२) मधु शिग्रुः, मी सहिजन । रत्ना०। ( Guilandina Moringa, Sweat var. of-) पर aranga-वरार० कुटकी, भोण्डर, गोण्डा। नार-चोटकु-ते । (Eriolwna Hookeriana, W&.1; Syn. Ereolena ipsctabilis Planch.) इसके तन्तु एवं रुई व्यवहार में प्राती है। मेमो०। भरङ्गक:arangakah-सं०पु० दिनकर्लिग, कडु खजूर, काला खजूर-हिं० । मीलिया ब्य बिया ( Melia dubia, Cav. ), मी. सुपर्बा ( Melia superba. ), st. stagr (Me. lia robusta.)-ले० । कहु खजुर-गुज०, बं०, बम्बई । निम्बर-मह० । काड-बेधु, भर-बेवु-कना०। निम्ब वर्ग ( N.O. meliaceae ) उत्पत्ति-स्थान-पूर्वी व पश्चिमी प्रायद्वीप | ब्रह्मा तथा लंका। वानस्पतिक-विवरण-दिनकलिंग वृक्ष के शुष्क फल को संस्कृत में अरङ्गक ख्याल किया जाता है। प्राकार, रूप तथा वर्ण में यह बहुत कुछ खजूर के समान होताहै, परन्तु ध्यानपूर्वक परीक्षा करने पर मज्जा एक अत्यन्त कठिन अस्थि ( गुठली ) से भली भाँति संश्लिष्ट पाई जाती है। फल डण्डी का अवशिष्ट भाग भी खजूर की डण्डी से मिन्न दीख पड़ता है। जल में भिगोने पर फल शीघ्र पानी सिकुड़न को छोड़कर थंडा. कार पीतामहरित वण' के बेर के समान हो जाता है। अब छिलका मोटा दीख पड़ता है तथा सरलतापूर्वक गूदा से भिन्न किया जा सकता है। फलशीर्ष मुड़ा हुआ होता है और उस पर सूक्ष्म अंकुर होते हैं। श्राधार पर पञ्चभाग युक्र पुष्पाभ्यंतर कोष दल तथा फलडराखी का एक छोटा भाग लगा होता है । गुठलो १ इञ्च लम्बी, अप्रशस्त रूप से पञ्च परिखायुक्त, प्रलम्बित, दोनों शिरों पर छिद्र युक्त होती है; शीर्ष, छिद्र की चारों योर पञ्च दंष्ट्रयुक्र, पञ्चकोषयक ( या पतन के कारण इससे न्यून ) होता है। बीज अकेला, भालाकार, शीर्ष से लगा रहता है; बीजावरण सूक्ष्म परिमाण में; गर्भ सरल, विलोम; दोल भालाकार; आदि मूल अंडाकार एवं ऊद्ध होता है। बीज ३ इञ्च लम्बा तथा इञ्च चौड़ा होता है। बीज त्वक् ( Testa ) गम्भीर धूसर या श्याम वर्ण का परिमार्जित गिरी अत्यन्त तैलीय एवं मधुर स्वाद युक्त होती है। उपयोगांश-फल | रासायनिक संगठन-(या संयोगी द्रव्य) फलस्थ तिव तस्व एक प्रकार के रवा में परिणतिशील ग्लूकोसाइड है जो ईथर, मदथसार तथा जलमें विलेय होता है । इसमें किञ्चित् अम्ल प्रतिक्रिया होती है । इसके अतिरिक्त इसमें सेव की तेजाब ( Malic acid ) ग्लूकोज, लुभाव, तथा पेक्टीन नामक पदार्थ पाए जाते हैं। डाइमॉक । प्रभाव तथा उपयोग-फल मजा में एक प्रकार का तिक एवं मतलीजनक स्वाद होता है। श्रमजीवियो' में उदरशूल की यह एक उत्तम औषध है। इस हेतु युवापुरुष की मात्रा अद फल है। इसमें किसी रेचक गुण की विद्यमानता मुश्किल से प्रतीत होती है। तो भी कहा जाता है कि यह कृमिघ्न प्रभाव करता है तथा व्यथाको तत्काल शमन करता है। कोंकनमें कचे फल का For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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