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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अम्लधेतस ५४२ अम्लवेतन जाती है उसी प्रकार इसमें भी सूई डालने से सूई गल जाती है । (भा० पू० १ भा० ) __ अत्यन्त खट्टा, अफरा और कफ तथा वात नाशक है। यही पका हुअा (पक्वफल) दोषघ्न, श्रमध्न, ग्राही और भारी है । (राज.) अम्लवेतस के वैद्यकीय व्यवहार चरक -- भेदनीय, दीपनीय, अनुलोमक एवं वातश्लेष्मप्ररामक द्रव्यों में अम्लवेत श्रेष्ठ है। (सू० २५ अ०)। वङ्गसेन-प्लीहा में अम्लवेतस-सहिजन की जड़ की छाल का सैंधवयुक्त क्वाथ प्रस्तुत कर उसमें बहु थैकल चणं एवं अल्प पीपल व मरिच का चूर्ण मिश्ति कर लीहोदरी को सेवन कराएं । ( उदर चि.) वक्तव्य चरकमें अम्लवेतस का पाठ हृद्यवर्ग के अन्तर्गत पाया है (सू०४०)। चरक के | गुल्म चिकित्साधिकार में द्रव्यान्तर से अम्लवेतस का बहुशः प्रयोग पाया है। यथा-(१) "पुष्कर व्योष धान्याम्ल वेतस"- (२) "तिन्तिड़ीकाम्लवेतसैः” । (३) "शटी पुष्कर हिंग्वम्ल वेतस"-(चि. ५ अ०)। सुश्रु. तोक्त गुल्म चिकित्साधिकार में अम्ल वेतस का बारम्बार उल्लेख दिखाई देता है । यथा-(१) "हिंगु सौवर्चल * * अम्लवेतसैः। (२) "हिंग्वम्लवेतसाजाजी'-( उ० ३२ अ.)। अग्निमान्याधिकार के प्रसिद्ध "भास्करलवण" में अम्लवेतसका पाठ पाया है।चक्रदत्तोक्त गुल्माधिकार में "हिंग्वाद्य चूर्ण", "काङ्कायन गुड़िका" तथा "रसोनाद्य घृत' प्रादि योगों में अम्लवेतस व्यवहार में पाया है। • नोट-जिन प्रयोगों में अम्लवेतस व्यवहृत हुअा है उनमें आजकल प्रायः वैद्य उपयुक नं०१ में वर्णित लकड़ीका ही व्यवहार करते हैं। क्योंकि बाजारों में श्रमलबेत के नाम से प्रायः यही प्रोपधि उपलब्ध होतो है। यह शास्त्रोक अम्लवेतस नहीं, अपितु कोई और ही पदार्थ है। अस्तु, उपयुक्र नं. ४ में वर्णित अम्लवेतस (अर्थात् उसका शुष्क फल ) ही औषध कार्य में बाना उचित है। नव्यमत समालोचना अम्लवेतस, चांगेरी, अम्ललोणी, लोणो और चुक ये पाँची अम्ल द्रब्य हैं । अस्तु, प्राचीन अर्वाचीन दोनों प्रकार के लेखकों ने इनका परस्पर एक दूसरे के स्थान में उपयोग कर इन्हें भ्रमकारक बना दिए हैं। प्रायः सभी जगह ऐसा किया गया है। जहां अम्ललोणी का वर्णन भाया है वहीं उसके परियाय स्वरूप "चांगेरी" और "चुक्र" श्रादि संज्ञाएँ भी व्यवार में लाई गई हैं । उसी प्रकार जहाँ अम्लवेतस का वर्णन दिया है वहीं पर शेष तीन संज्ञाएं भी व्यवहृत हुई हैं। इसी प्रकार शेष भी जानना चाहिए। ऐसे अवसर पर उक्र संज्ञाओंको अपने अपने स्थानों पर मुख्य और शेष को गौण समझना चाहिए। डॉक्टर उदयचाँद एवं रॉक्सबर्ग दोनों ही ने अम्लवेतस का बंगला नाम "चुकापालङ्" लिखा है। परन्तु ध्यानपूर्वक विचारकरनेसे यह ज्ञात होता है कि उदयचाँद ने अम्लवेतस का उल्लेख ही नहीं किया है। अम्लवेतस के अर्थ में उनका किया हुआ चुक्र का प्रयोग गौण है। चुक्र का मुख्य अर्थ चुकापालङ्क है। यदि उदयनादोक्र संस्कृत नाम चुक्र एवं बंगला नाम चुकापालङ् को ठीक मान लिया जाए तो उसका लेटिन नाम अशुद्ध रह जाता है और यदि लेटिन नाम को ठीक रक्खा जाए तो संस्कृत श्रादि नाम अशुद्ध रह जाते हैं। अतः उसको अम्लवेतसही कहना उचित है; किन्तु बंगला नाम थैकल अवश्य लिखना चाहिए। यूनानी मत से-प्रकृति-सर्द व तर | हानिकर्ता-वायुवद्धक तथा कफकारक । दर्पघ्नकाली मरिच, लवण और अदरक । प्रतिनिधिखट्टा तुरा अावश्यकतानुसार । मात्रा-एक अदद। मुख्य प्रभाव-रक व पेत्तिक व्याधियों को लाभदायक है। गुण, कर्म, प्रयोग-(१) प्राय: हृद्रोगों को लाभप्रद है, (२) पित्त का छेदन करता, (३) पाचनकर्ता, (४) भामाशय को मृदुकरता, (५) शुद्धोधकर्ता, (६) रकोष्मा को For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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