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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अम्बर www.kobatirth.org ५१७ अमरीका के दक्षिण में प्रायः मिलती है । हिन्दमहासागर यहाँ तक कि बंगाल की खाड़ी में भी यह मिलती है किन्तु श्रत्यन्त छोटी होती है । अम्वर लालसागर, ब्रेजिल और अफरीका के समुद्र तट पर तैरता हुआ पाया जाता है, केवल एक मछली के उदर से ७५० पौं० तक श्रम्बर पाया जा चुका है। ह्वेल का शिकार भी इसके लिए होता है । इसका व्यवहार श्रोषधियों में होने के कारण यह नीकोबार ( कालेपानी का एक द्वीप ) तथा भारत समुद्र के और औौर टापुत्रों से श्राता है । प्राचीन काल में अरब, यूनानी लोग इसे भारतवर्ष से ले जाते थे । जहाँगीर ने इससे राजसिंहासन का सुगंधित किया जाना लिखा है । लक्षण - यह अपारदर्शक कभी कभी श्वेत प्रायः श्यामाभायुक धूसर या गुलाबी या श्याम वर्ण का होता है । नोट ( १ ) साफ पीताभ श्रम्बर को अंबर अब कहते हैं । यह सर्वोत्कृष्ट श्रेष्ठतर अम्बर होता है । इससे निम्न कोटि का श्रम्बर अज़ूरक ( फ़िस्ती ) और इसके बाद श्याम है । जो अम्बर श्वेताभ होता है उसपर छोटे छोटे श्वेत बिन्दु होते हैं । यह अम्बर खश्वाशी कहलाता है और जो अम्बर गोल टुकड़ोंकी शकल में होता है उसका नाम अम्बर शमामह रखते हैं । ( २ ) जो अम्बर समुद्र के तरंगों द्वारा समुद्र तट पर आ पड़ता है और उसमें धूल आदि के कण मिल जाते हैं उसको तित्र में अम्बर रमली कहते हैं । उसको बिना शोधन किए व्यवहार न करना चाहिए । मोमवत् उसकी शुद्धि करनी चा हिए । अथवा उसमें समान भाग मिश्री मिलाकर खरल कर लेने से उसकी शुद्धि होती है । परन्तु रसरत्नसमुच्चयकार ग्रग्निजार की शुद्धि न करने में निम्न कारण बतलाते हैं"तदब्धितार संशुद्ध तस्माच्छुद्धिं न हीष्यते ।” (र०र० स० ३ श्र० ) श्रर्थात् - समुद्र के चारमय जलसे शुद्ध ही रहता है ! अतः इसके शोधन की आवश्यकता नहीं | अम्बर गंध - कस्तूरीवत् विशेष सुगंधि । इसमें से मीठी मिट्टी जैसी गंध श्राती है जो अत्यन्त मनमोहक होती है । सर्व प्रथम जब स्पर्मह्वेल से यह बाहर आता है, तब भूरे रंग का नर्म और दुर्गन्धयुक होता है, पर शीघ्र ही वायु लगने पर यह कठिन और नील वर्ण का हो जाता है। ज्यों ज्यों सूखता जाता हैत्यों त्यों उत्तम गंध उत्पन्न होती जाती है । और धीरे धीरे यह गंध इतनी बढ़ जाती है, कि दूर से ही अम्बर का बोध करा देती है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वाद - यह लगभग स्वादरहित होता है । परीक्षा --- ( १ ) इसको एक शीशी में डालकर कोयले की आग पर रखें। यदि यह सब पिघल जाए और शीशी में तैल की भाँति बने लगे तो शुद्ध श्रन्यथा श्रशुद्ध जानना चाहिए । ( २ अम्बर को लेकर जरा सा आग में डालें यदि धूम्र सुगन्धियुक्त हो तो उत्तम श्रन्यथा नकली समझना चाहिए । ( ३ ) जरा सा अम्बर लेकर चबाएँ यदि मुख सुगंध से पूर्ण हो जाए और चबाते समय वह दाँतों में मोम सा लगे तो उत्तम अन्यथा नकली है I ( ४ ) तोड़ने से यदि अम्बर ठोस हो तो उत्तम और पोला हो तो नकली है । ( ५ ) यह लघु और कम चिकना होता है और इसकी गंध कस्तूरी की गंध पर ग़ालिब नहीं होती । यह बहुत शीघ्र जलने वाला होता है तथा श्री च दिखाते रहने से बिलकुल भाप होकर उड़ जाता है । यह उष्ण जल में द्रवीभूत हो जाता है, परन्तु शीतल जल में नहीं होता । यह ईथर, वसा, उड़नशील ( अस्थिर ) तैल और उष्ण मद्यसार में विलेय होता है । इसपर अम्लों का कुछ भी प्रभाव नहीं होता । सूखने पर श्रम्बर का विशिष्ट गुरुत्व ७८० से ३२६ तक होता है । १४५ फारनहाइट की उत्ताप पर यह पिघल कर पीले रंग के वसामय तरल में परिणत हो जाता | २१२ फारनहाइट पर श्वेत वाष्प बनकर यह जल जाता है । For Private and Personal Use Only ܘ
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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