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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमोनिया अमोनिया रखनी चाहिए कि अमोनिया मूत्र की अम्लता को | बढ़ाता है। उत्सर्ग-शरीर से श्वासोच्छ्वास, वायुप्रणालीस्थ स्राव, मूत्र व स्वेद द्वारा अमोनिया उत्सर्जित होता है। अमोनिया द्वारा विषाक्तता यदि अमोनिया के तीब्र विलयन की एक बड़ी मात्रा पान करली जाए तो स्वरयंत्र (Glottis) के श्राक्षेपग्रस्त होने से श्वासावरोध होकर किंचित् काल में ही मृत्यु उपस्थित होसकती है । अन्यथा भक्षक वा दाहक क्षारीय विषों यथा दाहक सोडा (Caustic soda) या पोटास प्रभृति के समान लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। अगद-जो अन्य ऐलकेलीज़ अर्थात् क्षारीय विषों के अगद हैं, वे ही इसके भी हैं । देखोपोटासा कॉस्टिका। अमोनिया के थेराप्युटिक्स अर्थात् औषधीय उपयोग (वहिःप्रयोग) स्थानिक वाततन्तु एवं रक्रवाहिन्योत्तेजक रूप से स्टिफ जॉइण्ट्स (विकृत कठोर संधियों) पर और क्रॉनिक स्युमैटिज़्म ( पुरातन संधिवात) की विभिन्न दशाओं में लिनिमेण्ट ऑफ़ अमोनिया का अभ्यंग करते हैं। ब्रॉङ्काइटिस (कास), न्युमोनिया (फुफ्फुसौष) और प्ल्युरिसी ( पावशूल) में स्थानिक उग्रतासाधक (Counter irritant) रूप से भी इसका उद्वर्तन करें। जिन रोगों में फोस्काजनन के लिए कैन्थेरिडीज़ ( तेलिनी मक्खी) का उपयोग वर्जित एवं अनुचित है, उनमें उक्त अभिप्राय के लिए अमोनिया का प्रयोग करते हैं। अस्तु, जितना बड़ा फोला डालना हो उससे किंचित् बड़ा लिट का एक टुकड़ा काट कर और उसको स्टॉङ्ग सोल्युशन ऑफ अमोनिया में क्वेदित कर जिस स्थल पर फोस्का उठाना हो उसे वहाँ पर रख कर ऊपर से वॉच ग्लास (जेबघड़ीके शीशे ) से प्रावरित कर दें। किञ्चित् काल में वहाँ पर फोला पड़ जाएगा। अमोनिया प्रायः विषैले कीटों के विष को प्रभावशून्य कर देता है । अस्तु, वृश्चिक, भिड़, ततैया और मुहाल इत्यादि के दंश-स्थल पर (दंश अर्थात् डङ्कको निकाल कर ), कनखजूरे (गोजर) प्रभति के काटे हुए स्थान पर और रतेल ( मकड़, श्रारण्य मकड़ ) या मकड़ी मले हुए स्थान पर अमोनिया का निर्बल सोल्यशन लगाने से वेदना एवं शोथ कम हो जाता है। अल्पविष सर्प के दंशित स्थानपर कम्पाउंड टिंकचर ऑफ अमोनिया (ो-डी-लूस) का स्वस्थ अन्तःक्षेप करना लाभदायक सिद्ध होता है । लोमवद्धन हेतु लोशियो क्रिनेलिस ( रोमवद्ध नार्क ) एक अत्युत्तम औषध है। मूर्छित व्यक्ति को अमोनिया सुँघानेसे तत्क्षण होश या जाता है। क्योंकि इसके घ्राण करने से परावत्तित रूप से श्वासोच्छ वास तथा हृदय की गति तीव्र हो जाती है। अस्तु मूर्छा, प्राघात वा क्षोभ, निद्रा (जन्य विसंज्ञता) और निद्राजनक (वा अवसन्नताजनक) विषों यथा अहिफेन प्रभृति में रोगी की मूर्छा निवारणार्थ अमोनिया सुंघाया करते हैं। नोट-विभिन्न प्रकार के सूंघने के चूर्ण वा लखलख्खे ( Smelling salts ) जिनका प्रधान अवयव अमोनिया होता है, बने बनाए खुले मुख के हरित वर्ण आदि की बंद शीशियों में अँगरेज़ी औषध-विक्रेताओं की दुकानों में बिका करते हैं। श्रान्तरिक प्रयोग अन्य क्षारीय औषधों के समान अमोनिया को भी अम्लाजीर्ण (एसिड डिस्पेप्सिया) में दे सकते हैं । गैस्ट्रिक इन्टेस्टाइनल कैम्पस (प्रामाशयांत्र के प्रावाहकीय आक्षेपक वेदनाओं ) में स्पिरिट ए(अ)मोनिया ऐरोमैटिक एक अत्युत्तम औषध है । बालकके उदराध्मानमें सोडा और डिल वाटर ( सोपा के अर्क) के साथ इसके कुछ बुद देने से सामान्यतः लाभ हो जाता है । जेनरल डिफ्युज़िब्ल स्टिम्युलेण्ट (सर्वांग व्याप्तोत्तेजक) रूप से सिङ्कोपी (मूर्छा), शॉक (क्षोभ ), For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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