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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमृत हरीतकी अमृताख्य तेल तत्पर्याय-वृक्षरहा, उपवल्लिका, धनवल्ली, सित दूर्बा,दूब । (१३) पिप्पलो ।मे। (१४) लिंगिनी । लता । गुण-किञ्चित् तिक, रसायन, विषघ्न, व्रण, ग०नि०व०३ । (१५) नीलदुर्वा, हरीदूब । कुष्ठ, प्राम, कामला, और शोथनाशक है। रा० रा०नि० ० । (१६) श्वेत दूर्वा, सुफ़ेद नि० व.३। दूब । (१७) नागवल्ली, पान । (१८) रास्ना (२) बायमाणा । रा०नि० ३०५ । मात्रा- (१६) गरुडवल्ली । वै० निघ० क्षय चि० । ३ मा०। (२०) सूर्यप्रभा । (२१) ख— जालता । अमन हरीतको amrita-haritaki-सं० (२२) कन्दगुड्ची, कन्द गिलोय । (२३) स्त्री० धनियाँ, जीरा, मोथा, पञ्चलवण, अजवायन, स्फटिकारिका । ( Alumen ) मद० हिंगु, तेजपत्र, लवंग, त्रिकुटा प्रत्येक समभाग व०४। प्रयोगा। गिलोय । (चित्रक गुडे) ले उत्तम चूर्ण करें। इस चूर्ण के बराबर शुद्ध वा. सू. १५ भारग्वधादिः । “निम्बामृता हड़का चूर्ण मिलाएँ । हड़ शोधन विधि-१०० मधुरसा श्रुववृक्षपाटा:" पद्म कादौ अरुण शृग्यहड़ोंको लेकर तक्रमें भिगोएँ । जब हड़ मुलायम हो मृता दरा जीवन संज्ञाः। चि०१०किरातादिः। जाएँ तब उनके बीज अलग अलग कर छिलकों किराततिक्रममृता । च० द. वात ज्वर चि०। को लेकर चूर्ण करलें । यही चूण उक्त योग में किराताब्दामृतोदीच्य-च० द० ति ज्वर. मिलाया जाता है । पुनः इसमें षडषण,पंचलवण, चि० लोध्रादिः । च० सू०४०।। भूनी हींग, जवाखार, जीरा, अजमोद ले चण (२४) मालकांगनी । (२१) अतीस । कर चुक्र की भावना दें और उन समस्त चूर्ण में | अमृताख्यगुग्गुलुः amritākhya-gugguluh मिला रक्खें । उचित मात्रा में सेवन करने से -सं०प वातरक्ररोग में प्रयुक्त योग यथा-गुरुच घोर अजीण का नाश होता है। २ श०, गुग्गुलु १ श०, त्रिफला प्रत्येक १ श० जन ६४ श० में कूट कर पकाएँ, जब चौथाई शेष रहे अमृततार: amrita-kshāraha-सं० पु. छानकर पुनः इतना पकाएँ कि गाढ़ा होजाए । इसमें नवसादर,नृ(नर)सार ।(Ammonium chlo दन्तीमूल ४ तो०, निशोथ २ तो. चूर्णकर ridum.) वै० निघ०। मिलाएँ। इसका बलाबल विचार कर मात्रा दे। अमृता amriti-सं० स्त्री०, हिं० संज्ञा स्त्री० चक्र० द० वाद. गे० चि०। (.) गुड़चो, गिलोय । ( Tinospora अमृताख्य घृतम् amritākhya-ghritam cordifolia) रा०नि० व०३ । २ मा० ।। -सं० क्लो० अपामार्ग बीज और शिरस के बीज (*)(Phyllanthus emblica. ) दोनों प्रकार की श्वेता (कटमी और महा कट श्रामला |गचि० ११ । (३) हड़ हरीतकी । भी) और काकमाची ( मकोय ) इन्हें गोमूत्र (Terminalia che bula ) प. मु. में पीसें। इनसे सिद्ध किया हुश्रा धृत विष का "स्थूलमांसामृता स्मृता।" इयं चम्पा जाता । ग. परम शमन करता कहा गया है । यह अमृत नामक नि.व. । (४) तुलसी (Ocim विख्यात घृत है । सुश्रुत० सं० कल्प० अ०७ Sanctum.)। (५) काऽधात्री वृक्ष । भा० । श्लो० ११। (६) मदिरा, मद्य ( Wine)। रा०नि० व. अमृताख्य तैलम् amritakhya-tailam-सं० १४। (७) इन्द्रायण (Citrullus colocyn. क्ली० गिलोय, मुलहठी, लघुपञ्चमूल, पुनर्नवा, thes ) रा. नि० व० ३। (८) रास्ना, एरण्डमूल, जीवनीयगण, प्रत्येक १०० पारावतपदी, लताफटकी । रा०नि० व. ३ | पल । वजा ५०० पल, बेर, बेल, जौ, कुल्थी, (१) गोरक्षदुग्धा । (१०) काली अतीस, प्रत्येक एक एक श्रादक, शुष्क गाम्भारी फल कृष्ण अतिविषा । (११) रक निशोथ,तुर्बुद सुख, १द्रोण, इनको कूट धोकर १००द्रोण जल में रक्त प्रिवृत्ता । रा०नि०व०६। (१२) दूर्वा, पकाएँ । जब ४ द्रोण जल शेष रहे तब छान लें For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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