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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभ्यंजनीय श्रभ्युदय तेल लगाना । भा०। (1) दोपयुक्र व्रण के | अभ्यवकर्षणम् abhyava-karshanam दोषशमनार्थ तथा उनको कोमल करने के लिए -सं० क्ली० शल्य आदि उत्पाटन | शल्य उपाय विशेष । सु० चि०१०। । आदि का उखाड़ना (निकालना) अम०। अभ्यंजनीय abhyanjaniya-हिं० वि० अभ्यवहरणम् abhyava-haranam सं० [सं०] (1) पोतने योग्य, लगाने योग्य ।। क्लो० भोजन ( Eating, Food.) (२) तेल वा उबटन लगाने योग्य । अभ्यवहारः abhyavahārah-सं पु० अाहार अभ्यञ्जनम् abhyanjanam--सं० क्ली०, तैल ( Food.) रत्ना०। (Oil)। हे० ३० । तैल मर्दन, तैल लेपन, | अभ्यक्ष abhyaksha सं० तिल की खली। उबटन, रा०नि० व०१५ । अभ्यान्तः abhyān tah-सं० त्रि० रोगी, अातुर अभ्यन्तः abhyantah -सं० त्रि. अातुर रोगी ( Diseased.)। अम। ( Diseased affected, with sick- अभ्याहारः abhyāhārah-सं० पु. भक्षण, ness) अमः। भोजन, पाहार । ईटिंग ( Eating.)। यह अभ्यन्तर abhyantara-हिं० संज्ञा पुं० [सं०] चयं (चर्वण योग्य), चोप्य (चूसने या चोषण (१) मध्यम बीच। (Inner, Internal) योग्य ), पेय (पान योग्य ) और लेस ( चाटने (२) हृदय ( Heart)। क्रि० वि० भीतर । योग्य ) भेद से चार प्रकार का होता है । (.) अन्दर । च्युएब्ल (Chewable,) मैस्टिकेटिब्ल अभ्यन्तरवर्ती abhyantar vartti--सं-स्त्री. ( Masticatible )। (२) Capable मध्यवासी। of being sucked. (३) To be अभ्यन्तरांयामः abhyantarayamah--सं० licked. (४) Drinka ble. | सु० । पु उक्र नाम का धनुस्तम्भ रोग बिशेष, अन्त. अभ्यु abhyu-सं० पु० मुनक्का बीज ( Seeds रायाम । यह एक प्रकार की वात व्याधि है of dried grapes. ) जिसमें बलवान वायु कुपित होकर अँगुली, वक्ष, अभ्युदय abhyudaya-हिं० संज्ञा पुं॰ [अं॰] हृदय और गलदेश आदि में प्राप्त होकर वायु [वि० अभ्युदित, श्राभ्युदयिक ] (१) प्रादु. समूह को खींचकर मनुष्य को क्रोडवत (कबड) भाव, उत्पत्ति । झुका हा कर देता है, जिससे नेत्र स्तब्ध हो अभ्युदित abhyudita-हिं० वि० [ सं० ] जाते हैं और डाढ़े बैठ जाती हैं । लक्षण- (१) उगा हुआ । निकला हुआ। उत्पन्न । अंगुली, गुल्फ ( पांव की गांड), पेट, हृदय, प्रादुभूत । (२) दिन चढ़े तक सोने वाला। वक्षः स्थल और गल में रहने वाली वायु वेगवान अभ्युषः abhyush-सं० पु० रोटी (Bread.) होकर नसों के समूह को सुखाकर बाहर निकाल श्रा० सं० इंडि .दे और जब उस मनुष्य के नेत्र स्थिर हो जावें, अभ्युक्षण abhyukshana हिं० संज्ञा पु० ठोड़ी जकड़ जाय, पसलियों में पीड़ा हो मुख से [सं०] [वि० अभ्युक्षित, अभ्युक्षय ] सेचन । कफ गिरने लगे और मनुष्य प्रागे की ओर को छिड़काव | सिंचन । झुक जाय तो वह बलवान वायु अन्तरायाम को अभ्युक्षित abhukshita-हिं० वि० [सं०] उत्पन्न करता है अर्थात् तब उसे "अन्तरायाम (१) छिड़का हुअा। अभिसिंचित। (२) घात व्याधि" के नाम से पुकारते हैं। मा०नि० जिस पर छिड़का गया हो। जिसका अभिसिंचन वा० व्या । देखो हुआ हो। अभ्यमितः abhyamitah-सं० त्रि० अातुर, अभ्युदय abhyukshya-हिं० वि० [सं०] रोगी ( Diseased.)। श्रम० । छिड़कने योग्य। For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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