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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org अफसन्तीन अफ सन्तीन पत्र लगे होते हैं। पत्र-दोनों ओर रेशमवत् लोमों से युक्त होने के कारण रजत वर्ण के और लगभग २ इंच दीर्व होते हैं। पुष्प-सूचम, पीताभ श्वेत और गुले बाबूना के समान होता है, जिसके मध्य में एक प्रकार का पीलापन होता है। इसमें छोटे छोटे गोल दाने अर्थात् फल लगते हैं जिनके भीतर बारीक वीज भरे होते हैं। इसके अनेक भेद हैं जिनका वर्णन यथा स्थान होगा। गंध तीव्र एवं अग्राह्य और स्वाद अत्यन्त तिक होता है। प्रयोगांश-इसके पत्र एवं पुष्पमान शाखाएँ औषध कार्य में आती है। __ रासायनिक संगठन- इसमें १॥ प्रतिशत एक उड़नशील तैल जिसका सान्द्र भाग एब्सिन्योल ( A bsinthol ) कहलाता है। इसके अतिरिक्त इसमें एक रवादार ( स्फटिकीय ) सत्व जिसको ऐब्सिन्थीन (Absin thin ) कहते हैं और 'प्रतिशत एक तिक राल और ५ प्रतिशत एक हरित राल श्रादि पदार्थ होते हैं। घुलनशीलता-ऐब्सिन्थीन (Absinthin) अत्यन्त कटु, श्वेत वा पीताभ धूसर वर्ण का एक ग्ल्युकोसाइड है जो मद्यसार ( Alcohol) वा सम्माहनी ( Chloroform ) में अत्यन्त विलेय, किंतु ईथर तथा जल में अल्प विलेय होता है। अफ सन्तीन के शीत कषाय ( Infusion) को कषायीन द्वारा तलस्थायी करने से एब्सिन्थीन प्राप्त होता है। संयोग-विरुद्ध (Incompatibles)श्रायर्न सल्फास (हीरा कसोस ), जिंक सल्फास ( तूतिया श्वेत ), प्लम्बाई एमीटास और अर्जे. ण्टाई नाइट्रास। औषध-निर्माण-पौधा, ५० से ६० ग्रेन । __ शीतकषाय-(10 में १), मात्रा-1 से १ प्राउंस । तरल सत्व-५ से ६० वुद तक ( पूर्ण वयस्क मात्रा)। टिंक्चर-(८ में १), मात्रा से १ डाम तक । तैल-मात्रा, 1 से सुगंधित मद्य-(एक फरासीसी मद्य जिसको वाइनम ऐरोमैटिकम् एसिन्थियम् कहते हैं। इसमें माजोरम् अजेलिका, एनिस प्रभृति सम्मिलित होते हैं )। यह मस्तिष्कोत्तेजक है इसके अधिक सेवन से ऐसिन्थिम ( Absint'lism) अर्थात् अफ सन्नीन द्वारा विषाक्रता उत्पन्न हो जाया करती है जिसके लक्षण निम्न हैं रोगी को कठिन गरमी मालुम होती है हृदय धड़कता है नाड़ी की गति तीव्र हो जाती है और श्वास जल्द आता है इत्यादि । ___ नोट-यनानी चिकित्सा में यह तैल, मद्य, शर्यत, अनुलेपन, अर्क, टिकिया, क्वाथ, तथा मजून प्रभृति मिश्रण रूपों में व्यवहृत होता है । अफ सन्तीन के एलोपैथिक (डॉक्टरी) चिकित्सा में व्यवहत होने वाले मिश्रण--- (डॉक्टरी में ये मिश्रण नॉट ऑफिशल हैं ) (१) पल्विस एब्सिन्थियाई, मात्रा-२० से ३० ग्रेन । (२) एका " " से १ औंस । (३) एक्सट्रैक्टम् " " ५ से १५ ग्रेन । (४) एक्सट्रैक्टम् एब्सिन्थियाई लिक्विडम् , मात्रा-१५ से ४५ बुद । (५) इन्फ्युजन एडिसन्थियाई" ५ से २ श्रौंस । (६) श्रॉलियम् " " १ से ५ बुद । (७) टिंक बूरा " " से २ डाम । () " कम्पोजिटा " १ से ४ ड्राम । नोट-यद्यपि युरोप के कतिपय प्रदेशों में इस ओषधि के उपयुक मिश्रण प्रयोग में लाए जाते हैं, तथापि अधिकतर इसका टिंक्चर ही व्यवहार में आता है। यह एक भाग वर्मवुड (असन्तीन) और १० भाग मद्यसार (६०) से निर्मित किया जाता है। अरु सन्तीन के प्रभाव तथा उपयोग । आयुर्वेद की दृष्टि से__ यद्यपि असन्तीन और इसकी कतिपय जातियाँ भारतवर्ष में उत्पन्न होती हैं और उनका वर्णन भी आयुर्वेदीय ग्रंथों में पाया है; तथापि अफ सन्तीन का वण न किसी भी श्रायुर्वेदीय ग्रंथ में नहीं मिलता। इसकी अन्य For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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