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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपीव अपामार्गादिकल्कम् ४० : पृथग्भूत तैल ही ग्रहण करें। उसे गारे नहीं। अपिङ्मियात्रा apin-miyaa-बर० (ब० व०) प्रयोगाः। वृक्षाः-सं० । (Trees, shrubs or Herbaअपामाथि 5 a pámárgádikalkam ceous plants.) -60 क्ली० (१) चिरचिटा की लुगदी। (२) अपिंडो apindi-हिं० वि० [सं०] पिंडरहित । चिरचिटे के बीज को चावल के धोवन से बिना शरीर का | अशरीरी। खाएँ तो रकाश दूर हो । वृ.नि. र। | अपिधान apidhāna-हिं० संज्ञा प[सं०] अपाय apāya-हिं० संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० आच्छादन । श्रावरण । ढक्कन । पिहान । अपायी ] (1) विश्लेष। अलगाव । (२) | अपिनद्ध apinaddha-हिं० वि० [सं०] नाश । (३) उपद्रव । -वि० [सं० श्र=नहीं [स्त्री० अपिनद्धा ] बँधा हुआ । जकड़ा हुआ। ढंका हुआ। +पाद, प्रा० पाय-पैर ] बिना पैर का । लँगड़ा । अपिहित apihita-हिं० वि० [सं०] [स्त्री० . अपाहिज । . अपिहिता] अाच्छोदित । ढंका हुश्रा । प्रावृत्त । अपारदर्शक apara-daishaka-हिं० वि० ( भौ० वि० ) अदर्शक, अस्वच्छ । गैर . अपोन apina-हिं० वि० हल्का, क्षीण, कृश शफ़्फ़ाफ़-अ० | प्रोपेक । (Opaque)-इं०। (Lignt, Lean)। -संज्ञा पु. अफीम वे पदार्थ जिनमें से प्रकाश बिलकुल न जा सके ( Opium ) अर्थात् जिनमें से प्रकाश की रेखाएँ नहीं गुजर अधीनस apinasa-हिं० पु. अपीनसः apinasa सकें । जैसे लकड़ी, लोहा, चमड़ा इत्यादि । नासिका रोग विशेष । पीनसरोग भेद । अपालापमर्म apālāpama.imma-सं०क्ली. लक्षण-जिस मनुष्य की नाक रुकी हुई सी पृष्ठवंश ( कशेरुक ) और वक्ष के मध्य भाग में हो, धुवा से घुटी हुई सी, पकी हुई और ऋदित दोनों ओर कंधों के अधोभाग में "अपालाप" गीली सी हो और सुगंध एवं दुर्गन्ध को न नाम के दो मर्म हैं। इनके विद्ध होने से कोष्ठ मालूम कर सके उसे अपीनस का रोगी जानना रुधिर से भर जाता है और इसी रुधिर को राध चाहिए । यह विकार कफ वायु से होता है और (पूय, पीब) में परिणत होरेपर रोगी मर जाता प्रायः लक्षण प्रतिश्याय के से होते हैं। स० है, अन्यथा नहीं । वा) शा० ४ ०। चि०२२० । च.चि.। (Dryness of अपावर्तन apāvartana-हिं० संज्ञा पु० the nose, want of the pituitary . [सं०] (१ ) पलटाव । वापसी । (२) secretion & Loss of smell ). भागना । पीछे हटना । (३) लौटना। अपीनस में कफ बढ़कर नासिका के सम्पूण' श्रपासनम् apāsanam-सं० क्ली० मारण || स्रोतों को रोक कर घुघुर श्वास युक और पीनस श्रम । से अधिक एक प्रकार का रोग उत्पन्न कर देता अपाह(हि)ज apāha.,.hi-ja-हिं० वि० [सं० है, जिसे अपीनस कहते हैं। अपभज, प्रा० अपहज ] (१) ( Lazy, लक्षण-इसमें रोगी की नासिका भेड़ की cripple,) अंगभंग । खंज । लूला, लँगड़ा || नासिका की तरह करा करती है। तथा पिच्छिल (२) पालसी-बेकार । पीला, पका हुश्रा और गाढ़ा गाढ़ा नासिका का अपि api-श्रव्य० [सं०] (१) निश्चयार्थक । भी।। मल निरंतर निकलता रहता है । वा० उ. ही। (२) निश्चय टीक । श्र० १६ । अपिङ् apin-बर० (ए० व०) वृक्षः-सं० । अपीय apiya-हि. वि०-अपेय, पान निषिद्ध । (Tree, shrub, or Herbaceous Unfit to be drunk, forbidden .. plant.) liquor ). For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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