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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपामार्ग ४०४ अपामार्ग के अन्तर्गत अपामार्ग का पाउ आया है । विमान के प्रथम दृध्याय के कृसिहर पथ्योपदेश के वर्णन में अपामार्ग के स्वरस में शालिचावल की पिट्टी तैयार कर उसके सेवन करने की व्यवस्था दी गई है। चरकोल-उन्माद चिकित्सा में "पिष्टवा नुल्यमपामार्गम'' इत्यादि पाठ में अञ्जनार्थ अपामार्ग व्यवहृत हुआ है । पर इसके सेवनकी विधि नहीं दिखाई देता । सुश्रुतोक्त उन्माद चिकित्सा में इसका नामोल्लेख नहीं है। सुश्रु न ने शिरोविरेचन वर्ग में अपामार्ग का पाड़ दिया है। (सू० ३६ अ.)। सुश्रुत सूत्रस्थान के ११ वें अध्याय में जहाँ क्षारजनक समग्र उद्भिद औषधे का नाम आया है, वहाँ अपामार्ग का उल्लेख है । अपामार्ग व्रण के लिए उपयोगी है । अतएव इसका नाम “किणि ही" (व्रण हन्ता) हुआ। अपामार्ग के सम्बन्ध में यूनानी तथा नव्य मत । प्रकृति-१ कक्षा में शीतल तथा रूक्ष । हानिकर्ता-उष्ण प्रकृति को और क्षुधा को मन्द एवं नष्ट करता है । दर्पघ्न-अनार का पानी सिकंजबीन, काँजी और श्राबग़ोरह । प्रतिनिधि-प्रायः गुणों में मेष मांस । मुख्य प्रभाव-कामोद्दीपक, हर्षोत्पादक और शुक्र जनक | मात्रा-शक्यानुसार।. गुण, कर्म, प्रयोग-यदि ६ मा० इसके पत्र को काली मिर्च के साथ पिएँ और उसके बाद घीप्लुत रोटी खाएँ तो रकार्श को लाभ हो । यह प्रात्तवरुद्धक और प्रायः त्वगोगों, रक्त दोष, एवं नेत्र की धुधता को लाभप्रद है। अपामार्ग संकोचक, (संग्राही) मूत्रल और परिवर्तक है । रजः स्राव, अतिसार और प्रवाहिका में इसका उपयोग किया जाता है । अपामार्ग क्षार अगंभीर शोथ, जलोदर, चर्मरोग और प्रन्थि वृद्धि तथा गलगंड प्रादि रोगो में प्रयोजनीय है । अपिच शुष्क कास में इसके सेवन से यह श्लेष्मा को तरल (द्रवीभूत)। करता है । सर्प, कुकुर किंवा अन्यान्य विष धर-प्राणि दंशन जन्य विष दोष निवारण के लिए अपामार्ग बहुत प्रख्यात है। एतदर्थ यह सेवन व लेपन उभय प्रकार से व्यवहार में श्राता है। कभी कभी अपामार्ग का स्वरस दन्तमूल में एवं इसका करक फूली रोग में अंजन रूप से प्रयुक्त होता है । ( मेटिरिया मेडिकाॉफ इंडिया २ य० खं०, ४०५ पृष्ठ) __ अपामार्ग के मूत्रल गुण से इस देश के लोग भली प्रकार परिचित हैं। यूरोपीय चिकित्सकगण शोथ रोग में अपामार्ग की उपयोगिता स्वीकार करते हैं । मूल शाखापत्र सहित प्राध छटाँक, अपामार्ग को पाँच छटाँक जल में १५ मिनट तक कथित करें । इसमें से श्राध छटाँक से लेकर एक छटाँक की मात्रा तक दिन में तीन बार सेवन करें (फा० ई० पृष्ठ १८४) अपामार्ग की जड़ एक तोला रात्रि को सोते समय सेवन करने से नक्रांधता ( रतौंधी) जाती रहती है। फा०ई०३ भा०।। इसका शुष्क पौधा बालकों के उदर शूल में दिया जाता है । पूयमेह (सूज़ाक ) में भी इसका संकोचक रूप से उपयोग होता है। (रट्युवर्ट) मेजर मैडेन ( Madden ) लिखते हैं"अपामार्ग को पुष्पमान मञ्जरियाँ वृश्चिक विष से रक्षा करने वाली ख़्याल की जाती हैं। इसकी टहनी पास रहने से वह स्तब्ध हो जाता भस्म में अधिक परिणाम में पोटास होता है। इससे यह कला सम्बन्धी कार्योंके लिए भी उतना ही उपयोगी सिद्ध होता है जितना कि औषध के लिए। हरताल के साथ मिलाकर व्रण तथा शिश्न एवं शरीर के अन्य स्थल पर होने वाले मसक के लिए इसका वाह्य उपयोग (लेप) होता है। उदय चन्द्रदत्त महोदय कर रोगों के लिए अपामार्गक्षारतैल के उपयोग का वर्णन क. For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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