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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जा गिजा सेविका है, और नाड़ी जो मस्तिष्क की सेवा करती है अर्थात् उक्त अवयव की प्रधान शक्तियों को अन्य की ओर पहुँचाती है । अन जाअ गिजा āzáa ghizá - अ० श्राहारेन्द्रियाँ, थाहार सम्बन्धी श्रवयव, श्रथवा श्राहार को ग्रहण करने वाले श्रवयव, यथा-आमाशय, यंत्र और यकृत आदि । अअ जात्र गैर रईसह aazaa ghair raisah-o वे अवयव जो न स्वयं किसी की सेवा करते हैं और न कोई उनकी सेवा करता है । नोट- किसी किसी हकीसका यह विचार है कि शरीर में कुछ ऐसे श्रवयव भी हैं जिनमें जीवन और पोपण की स्वाभाविक शक्ति विद्यमान है । और उत्तमाङ्गों से उनमें कोई शक्ति नहीं श्राती, यथा-अस्थियों । किन्तु स्वतन्त्र हकीमों का यह पंथ नहीं और वास्तविक बात भी यहीं है । शरीर में कोई एक अवयव भी ऐसा नहीं जो अन्योन्याश्रय न हो, अथवा जिसमें स्वामी सेवक भाव विद्यमान न हो । अअ जाश्रू तनफ्फुस aāzáa tanaffus - अ० आलात तनफ्फुस । श्वासोच्छवासेन्द्रियाँ - हिं० । ( Respiratory Organs.) अ जा तनासुल aazaa tanasul श्र० थालात तनासुल | जननेन्द्रियाँ - हिं० । ( Roproductive Organs. ) अन, जाञ् तव्इ.य्यह aãzaa tabāiyyah - अ० प्राकृतिक शक्ति सम्बन्धी अवयव, यथाजननेन्द्रिय वा आहारेन्द्रिय । अअ जाय् तर्क्रियह, aazaa tartiyah - श्र० शाखावयव, वे श्रवयव जो शाखाओं में स्थित हैं, यथा - हस्तपाद आदि । अश्रू जाय् दस्विय्यह, nazaa damviyyah - अ० रक्त से उत्पन्न होने वाले श्रवयव, रक्त जन्य अवयव, यथा-मांस या वसा । अअ जाश्रू नफ़्ज़ aazaa nafz - अ० शारीरिक मल को निकालने वाले अवयव, मल प्रव र्तक अवयव, यथा श्रन्त्र, वृक्क, वस्ति, लिंग, गर्भाय की ग्रीवा और गुढ़ा प्रभृति । एक्स Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजा, मुरिदह क्रीटरी ऑर्ग ( Excretory Organs.) - इं० । अअ जान, बलीतह, aāzáa basitah- अ० अ जाय् मुफ़रिदह । अजाय् बल aāzaa boul ऋ० श्रालात वील, मूत्रेन्द्रियाँ, सूत्रसंस्थान - हिं० । ( Urinary system.) अअ जाय मरऊसह aazáa-maraúsah - अ० उत्तमांगों से लाभ उठाने वाले अवयव । अअ जात्र मुत्शाविहतु श्रज्जा ( aāzáa-mutshàbihtnl aja o त्र जा मुदि अश्र जात्र मुन्विय्यह Aázaa mmmriy yah ) - ऋ० श्रजाश्रू ग्रस लियह । अअ जा मुफ़ रिक्रू Aázaa-mufridah - अ० मुकरिव प्रश्र ज श्रू, थन जाश्रू बसीतह अजा मुसाहिल अश्रू जाय, वह प्रवयव जो स्वयं ग्रथवा उसका कोई भाग नाम और वास्त विकता में श्रभेद हो, अर्थात् यदि उजब मुफ़रि ( मौलिक धातु ) का कोई भाग लेकर कहा जाय कि इसका क्या नाम और परिभाषा है तो उत्तर में ही नाम और परिभाषा बतलाई जाय जो वास्तविक aara के लिए कही जाती है; उदा हरणतया प्रस्थि के एक सूप भागको भी स्थि कहेंगे, एवं मांस के सूचा भाग की मांस । मुफ़दि श्र अ ( मौलिक धातुओं) की संख्या १० है, यथा-अस्थि, उपास्थि या कु ( Cartilage ), नाड़ी, मांस-पेशी, धमनी, शिरा, कला, झिल्ली, संधि बंधन ( बंधनी, स्नायु, रज्जु ) और कण्डरा । ये वीर्य से उत्पन्न होते हैं, इसलिए इनको - 1 - जाश्रू मुन्दिय्यह (शकावयव ) कहते हैं । इनमें से दसवीं धातु लहम ( मांस, गोश्त ) है । शहन (वसा) तथा समीन (मेद) की गणना भी इसी में होती । ये तीनों शोणित से बनते हैं। राम तथा नख की गणना वस्तुतः शारीरिक मलों में होती है । किन्तु किसी किसी ने इनकी मुरिदह में की है । गणना भी जा For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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