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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अपस्मार www.kobatirth.org विष निकाल कर जाता है । जीवित साँप का उसको बेल - जार में रख कर धूप में शुष्क कर लेते हैं । इसके ऐम्पुल्स बनाए जाते हैं जिनमें ग्लीसरीन और जल का विलयन सम्मिलित होता है । उक्त विलयन में पचननिवारक रूप से टिकेसोल ( Tricesol ) भी योजित किया जाता 1 फुफ्फुस विकार, राजयक्ष्मा और श्वास में भी वगन्तः श्रन्तःक्षेप द्वारा प्रयुक्तकर इसकी परीक्षा की गई है । श्रभ्यन्तर रूप से इसका क्वचित ही प्रयोग होता है | ( Extra Pharmacopora of Martiudale ). ३६७ नोट- आयुर्वेदीय चिकित्सा में श्राभ्यन्तर और बहिर दोनों प्रकार से इसका प्रयोग होता | देखो - सर्प | कतिपय अन्य परीक्षित योग- (१) जुन्दवेदस्तर ६ मा० कस्तूरी ६ मा० जटामांसी १ तो० नौसादर १ तो० उष्ट्र नासिका कीट ४ मा० इन सम्पूर्ण औषधों का चूर्ण कर हस्ति विष्टा के रस से संप्ताह पर्यन्त खरल कर ३ रत्ती प्रमाण की वटिकाएँ प्रस्तुत करें । लशुन हिंगु कर धत्तूर बीज इन्द्रायन का गूदा काली मरिच अजमोद सेवन विधि - पान के रस से श्रावश्यकतानुसार १ से ३ गोली तक सेवन कराएँ । ( २ ) वच ब्राह्मी १ सो० १ तो० १ तो० ६ मा० ६ मा० ६ मा० १ तो० १ तो० १ तो० इन सबको कूट छान कर चूर्ण प्रस्तुत करें | फिर हस्तिविला के रस से सप्ताह पर्यन्त खरल - कर ६ रती प्रमाण की गोलियाँ बनाएँ । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपस्मार अनुपान पान का रस मात्रा--१ रत्ती से ४ रती तक । ( ३ ) धवलबरुश्रा का येन केन प्रकारेण उपयोग अत्यंत लाभप्रद सिद्ध होता है । देखो -- धवलवश्रा । (४) डॉक्टरी योग- श्रमोनिया ब्रोमाइड अमोनिया वेलेरिएना ferte कैम्फर सोडा बाइ कार्य एक्वा प्योरा यह एक मात्रा है । ऐसी ही तीन मात्रा श्रौषध प्रातः, मध्याह्न और सायं को देनी चाहिए । अपस्मार में 'प्रयुक्त होने वाली मिश्रित और श्रमिश्रित औषधें । (मिश्रित षध) ५ ग्रेन १० ग्रेन For Private and Personal Use Only १५ बुद १० ग्रेन १ श्राउंस श्रायुर्वेदीय कर्पूरे, वच, अडूसा, पलाण्डु, श्वेत कुष्मारड, ब्राह्मी, श्वेत सर्षप, शङ्खपुष्पी, धत्तूर, छागमूत्र, काकफल ( काक नासिका ), तेजबल ( उगरू - बं० सं० ), कुसरुएट ( बुन्दर-बम्ब० ), कर्पास, गंधक और उसके योग, भल्लातक, रीठा, जल ब्राह्मी, खुरासानी अजवाइन, बेडार्ली ( Club Moss ), शोभाञ्जन, जटामांसी, केतकी (केवड़ा), अजमोदा, सोडियम और उसके लवण | यूनानी (१) टङ्कण भुना हुआ १ से २ माशे तक ६ माशे शुद्ध शहद में मिलाकर कुछ दिवस पर्यंत प्रतिदिन प्रातःकाल खिलाना इस रोग में लाभप्रद है। (२) हिंगु १ से २ माशे मधु ६ माशे या सिकञ्जबीन अन्सुली (सिकम्जबीन बनपलाण्डु ) २ तोला में मिलाकर हर प्रातःकाल को चटाना लाभदायक है। (३) बादरंजबूया ( बिल्लीलोटन ) ३ माशे ६ माशे मधु में मिलाकर प्रति दिवस प्रातःकाल चटाना गुणप्रद है ।
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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