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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३६४ श्रापस्मार को मय पत्र व फल को छाया में शुष्क कर और बारीक पीस कर रखलें । मात्रा व सेवन विधि - श्रावश्यकतानुसार २- २ मा० साधारण जल वा श्रक्र' गावजुबान के ..साथ प्रातः सायं सेवन कराएँ । -- प्रभाव व उपयोग--शामक व निद्राजनक | मुगी, उन्माद और योषापस्मार में अत्यन्त लाभप्रद है । 'डॉक्टरी मत से -मृगी की चिकित्सा में -अब तक जितनी श्रौषधें ज्ञात हुई हैं, उन सब में ब्रोमाइड्स ( ब्रोमाइड ऑन पोटासियम्, ब्रोमाइड ऑफ सोडियम् और ब्रोमाइड ऑफ़ अमोनियम् इत्यादि) अपेक्षाकृत अधिक लाभदायक सिद्ध हुए हैं। इनके प्रयोग से कभी कभी तो रोगी को बिलकुल लाभ हो जाता है। किन्तु, प्रायः रोगियों को श्रौषध सेवन काल में रोग का • वेग रुक जाता है, पर श्रौषध का सेवन बन्द कर देने के थोड़े काल पश्चात् पुनः रोग का आक्रमण होने लगता है । सामान्य प्रकार की मृमी की अपेक्षा उम्र • प्रकार में और रात्रि की अपेक्षा दिनके वेगमें यह औषध अधिक लाभदायक होती है । किसी किसी रोगी में कुछ काल के सेवन के बाद ब्रोमाइड्स का प्रभाव अधिक काल स्थाई नहीं रहता और अल्प संज्ञक रोगियों में यह कुछ लाभ हो नहीं प्रदर्शित करता । तिस पर भी यह अन्य श्रौषधों की अपेक्षा श्रवश्यमेव अधिक गुणप्रद है । -इसकी मात्रा रोगी तथा रोगावस्था के अनुकूल होनी चाहिए | क्योंकि किसी किसी रोगी में . इस औषध के सहन की अधिक क्षमता होती है और किसी को अल्प । युवा की अपेक्षा बालक को इसकी अधिक क्षमता होती है । परन्तु पुरुष की अपेक्षा स्त्री को कम । ब्रोमाइड को थीड़ी मात्रा में प्रारम्भ करना उत्तम है । श्रस्तु एक युवा रोगी को १५ से ३० ग्रेन ( ७॥ से १५ रत्ती ) की मात्रा में दिन में तीन बार देना प्रारम्भ करें । श्रावश्यकतानुसार इस मात्रा में म्यूमाधिकता कर सकते हैं । अर्थात Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ड्रापस्सार.. -यदि रोगो के वेग में कमी आ जाए तो श्रौषध की मात्रा किञ्चित् कम कर दें और यदि वेश: बढ़ जाए तो औषध की मात्रा बढ़ा दें । पर यदि ३०-३० ग्रेन दिन में तीन बार देने से रोग का वेग न रुके तो इस औषध से लाभ की कम आशा होती है । क औषध का लाभदायक होना अधिकतर उसके शुद्ध और उत्तम होनेपर निर्भर है । .... खराब औषधसे साधारणतः लाभ नहीं होता । इसलिए इस औषध को विश्वस्त कार्यालय द्वारा निर्मित एवं विश्वसनीय दुकान से खरीदनी चाहिए । यदि रोग का वेग किसी विशेष समय होता हो, उदाहरणत: दिन के दो बजे, तो ऐसी दशा में औषध की एक बड़ी मात्रा ( १ ड्राम ) 'रोग के वेग से चार घंटे पूर्व देनी चाहिए । जेब वेग रात्रि को स्वंम में किसी समय होता हो तब उक्त श्रौषध को ५०-६० ग्रेन की मात्रा में रात 'को सोते समय है और यदि प्रातः काल निद्रा 'भंग होने पर वेग होता हो तो ३० या ४० प्रेन ब्रोमाड्स रात्रि को सोते समय दें और ऐसी ही एक मात्रा औषध प्रातः काल रोगी को जागते पिलाएँ । जब ब्रोमाइड्स को दो तीन बार दैनिक देना हो तब भोजन के १ घंटा बाद देना अधिक उत्तम है | श्रामाशय तथा श्रांत्र पर इसका क्षोभक प्र भाव न हो तथा मुख मण्डल श्रादि पर मुँहासे न निकलें, इस हेतु इसके साथ थोड़ी मात्रा में संखिया मिलाकर देना चाहिए। परन्तु जब इसका तत्कालिक एवं विश्वसनीय प्रभाव श्रभीष्ट हो तब इसे एक ही बड़ी मात्रा में खाली पेट देना अधिक उत्तम होता है जिसमें यह तत्काल रक्त में श्रभिशोषित हो जाए । अपस्मारी में ब्रोमाइड्सको इसके प्रयोग द्वारा पूर्ण प्रभाव प्राप्त होने से प्रथम ही बन्द कर देना उचित नहीं । इसके विरुद्ध इसको अधिक मात्रा में अधिक काल तक सेवन कराते जाना व्यर्थ ही नहीं, प्रत्युत हानिकारक भी है। क्योंकि शरीर •में जब इसका पूर्ण प्रभाव हो लेता है तब यदि For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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