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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्त्रबेल ३१० সয়লাব नोट-अंत्रवृद्धि रोगी को बहुत इहतियात का काटना | कत्ल स्ल.4-.। ऑमेण्टेक्टॉमी से विरेचन लेना चाहिए । यथासम्भव उसका न | Omentectomy-sol लेनाही रत्तम है । मलावरोध होने की दशा में अन्नश्छदाकला प्रदाह antrashchhada-kaउष्ण जल द्वारा वस्ति लेनी चाहिए। la-pradah-हि. संज्ञा पुं. अच्छदा श्रन्त्रवृद्धि के लिए डॉक्टरी चिकित्सा में कला ( आँतों को आच्छादित करने वाली झिल्ली) प्रयुक्त होने वाली अमिश्रित औषधे की सूजन | प्रोमेण्टाइटिस Omentitis-ई। टार्टार इमेटिक, मोरोफॉर्म, ईथर, प्रोपियम् । इतिहाब स.ब, वर्म सर्व-०। ( अहिफेन ), लम्बाई एसीटास,, टबेकम् अन्तश्छदिक वृद्धि antrashchhadika. ( तम्बाकू), उष्ण स्नान, रक्रमोक्षण और वर्क । vridhi-हि० संज्ञा स्त्री० भच्छदा कला के किसी भाग का उतर पाना । एपितोसील Epi. अन्त्रवेल antra-vela--सं० एक हिन्दी दवा है plocele-ई। फत्क सी-१०। (An indigenous drug.) भन्त्रशोधक antrashodhaka-हिं० वि० अन्नश्छदा कला antrashchhada-kala पु० आंत्र पचननिवारक । दाफ्रिाते तमने हिं० संज्ञा स्त्री० अंग्रच्छदा कला, प्रांतावरण, अम्बाश- Intestinal antiseptics जठरावरण । ओमेण्टम् Omentum, एपिप्लन -इं० । त्रिस्त दव्यों में अभिषध (खमीर) Epiploon, कॉल Caul-इं० । सब-अ० अथवा सहाँध पैदा न हो या उनमें सड़े हुए वाशीमहे पियह, चादर पियह-फा०। द्रव्यों को अभिशोषित होने से रोकें इस हेतु कभी नोट--कॉल उस झिल्ली को भी कहते हैं जो कभी पचननिवारक ( Antiseptic ) जन्ममकाल में शिशु के शिर पर लिपटी हुई निक औषधों का उपयोग होता है। अस्तु समस्त लती है । वस्तुतः यह भ्रणावरण का एक श्रामाशय-पचननिवारक ( Gastie भाग है। antiseptics) तथा दुग्धाम्ल (Lactiacid) और सैलोल (Salol) और केलोमेल इस उदर की वसामय मिली जो आँतों पर फैली प्रयोजन के लिए व्योहार किए जाते हैं। होती है । वास्तव में यह उदरच्छदा कला का ही नोट-- प्रांत्रस्थ द्रव्यों का ( जब कि वे एक भाग है जो इसके नीचे श्रामाशयिक द्वार शरीर में होते हैं) कीट रहित (Disinfectant) से कोलून तक परिस्तृत होता है। करना सम्भव है या नहीं ? यह बात अब तक ___ इसके दो भाग है संदेहपूर्ण है। यदि यह सम्भव हो तो यह लाभ (.) वृहद् अच्छदा कला ( स. कबीर) प्रद भी है या नहीं ? क्यों कि प्रांत्र के भातर जो प्रामाशय के वृहन्मुख से प्रारंभ होकर कोलून सूचमाणु विद्यमान होते हैं जो सामान्य अवस्थामें तक जाती है इसको अँगरेजी में ग्रेट प्रोमेण्टम प्रांत्र की पाचनक्रिया के सहायक होते हैं। पर तो (Great omentum ) कहते हैं। भी ऐसी औषधों के प्रयोग का यत्न किया जा (२) रुद्र अच्छदा कला (स.ब सग़ीर ) रहा है। और उसमें किसी सीमा तक सफलता जो प्रामाशय के तुद्रमुख से प्रारम्भ होकर यकृत तक जाती है । अंगरेजी में इसको लेसर अन्त्रशोषान्तकः antrashoshantakab-सं० ओमेण्टम् ( Lesser omentum) कहते पु. नीबू, सहिजन, दुग्धवल्लरी (चमार दूधी) चिरायता, गिलोय,शतावरी, अर्जुनमूल, ग्रिफला, अन्तश्छदाकला छेदन antrashchhada-kala- विदारीकंद, बला, असगंध, मुसली, वायविडंग chhedana-हिं० संज्ञा पु. मत्ररछदा कला इनके रस द्वारा कांत लोह में पृथक् पृथक् कई For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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