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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भन्तपूल ३३६ अन्तमूल अथवा गुलाबी रंग के चिड्डों से युक्र) होते हैं। पराग--केशर तथा गर्भकेशा परस्पर संग्रक्र हो- | कर एक हो जाते हैं जिसका व्यास लगभग .. हुंच होता और जो पंच पीताभ उभरी हुई रेखानों से अंकित होता है। वीजकोष (डिम्मा. शय) दो होते हैं। शिम्बो युग्म, एक दूसरी के सम्मुख और अाधार पर किञ्चित् चिपकी हुई, एक अोर गावामी, २ से ४ इंच लम्बी, मध्य में लगभग इंच मोटी, चिकनी, एक कपाटयुक और स्फुटित होने वाली होती है । वीज लोमश जिसके ऊपरके सिरे वा आधार पर रूईका एकगुच्छा होता है, लघु, अत्यन्त पतला, रत्राभायुक्त धूसर वर्ण का श्रोर किञ्चित् अंडाकार होता है। इसका पौधा वर्ष भर पुष्पमान रहता है, विशेषतः उस समय जब कि लगाया जाता है। इस पौधे के दो भेद होते हैं। यह केवल श्राकार एवं कुछ अन्य साधारण लक्षणों में एक दूसरे से भिन्न होते हैं । जब इनको एक अवस्था में रक्खा जाता है तब इनमें से एक दूसरे से सदा बड़ा होता है। बड़ी जाति में पुष्पदल वृहसर एवं न्यूनाधिक परावर्तित और कभी कभी किञ्चित् लिपटे हुए भी होते हैं। पुरातन पत्र अधिक चौड़े, पतले, गम्भीर वर्ण के और कुछ कुछ पीछे की ओर झुके होते हैं। __ इस पौधे की जड़ के सम्बंध में ऐसा प्रतीत होता है कि कतिपय ग्रंथो में यह एक दूसरी जड़ के साथ मिलाकर भ्रमकारक बना दिया गया है। उदाहरण के लिए मेटीरिया मेडिका खंड २१० ८३ पर लिखे हुए वाक्य को ही लोजिए जो इस प्रकार है__"The root of this plant, as it appears in the Indian bazars, is thick, twisted, of a pale colour,and of a bitterish and somewhat nauseous taste." __अर्थात् इस पौधे की जड़ जो बाजारों में दिखाई देती है, मोटी, बलखाई हुई, अस्पष्ट वर्ण की और किञ्चित् तिक एवं कुछ कुछ उशजनक स्वादयुक्र होती है । प्रथम तो इसकी जड़े विक्रयार्थ बाजारों में नहीं पाती और द्वितीय यह कि इसकी जड़े पूर्वोक्र वर्णनके अनुसार नहीं होती। देखो-वानस्पतिक वर्णनांतर्गत मूल वर्णन । रासायनिक संगठन-इसके पत्र का धन शीतकषाय स्वाद में किञ्चित् चरपरा होता है। पत्र एवं मूल में टाइलोफोरीन ( Tylophorine) अर्थात् अंतमलीन नामक एक क्षारीय सत्व और दूसरा एक वामकसत्व ये दो प्रकार के सत्व पाए जाते हैं। टाइलोफोरीन जलमें सो कम परन्तु मयसार एवं ईथर में अत्यन्त विलेय होता है। प्रयोगांश-शुष्क पत्र तथा मूल । औषध-निर्माण-(१) पत्र का अमिश्रित चूर्ण Simple Porder of Tylophora Leaves (Pulvis Tylophore Folice Simplex )-पत्र जड़ की अपेक्षा कठिनतापूर्वक चूर्ण किए जा सकते हैं। पहले उनको धूप में अथवा सैंडबाथ (बालुकाकुड) पर रखकर भलीप्रकार सुखा लें । फिर चूर्ण कर वस्त्रपूत करलें । इस स्थूल चूर्ण को पुनः विचूर्णित करें और पुनः बारीक चलनी वा वस्त्र से छान लें तथा बन्द मुँह की बोतल में सुरक्षित रक्खें। मात्रा-मूल चूर्ण वत् । (२) जड़ का अमिश्रित चूर्ण Simple Powder of Tylophora Root (Pul. vis Tylophore Simplex)-सामान्य विधि से तैयार कर बन्द मुख के बोतल में रक्खें। मात्रा-वामक प्रभाव के लिए १० से ५० ग्रेन (२. रत्तीसे २५ रत्ती तक); प्रचा. हिका में १५ से ३० ग्रेन (७॥ रत्ती से ११ रत्ती) या इससे अधिक । कफनिस्सारक रूप से -मेन । (३) अभ्यङ्ग वा उद्वर्तन (Liniment). (४) टाइलोफोरीन नामक सत्व । . प्रतिनिधि-यह इपिकेक्वाइना की उत्तम प्रतिनिधि है और प्रायः उन सम्पूर्ण दशाभों में For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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