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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनारमुश्क अनाविल अनारमुश्क anāra-mushka-फा० नारमुश्क, | अनार्तव जलम् anārttava-jalam-सं० नागकेशर । ( Mesua ferrea). की जो जल बिना ऋतु अर्थात चौमासे (वर्षाअनार मैखोश anāra-maikhosha-फा० ऋतु) के सिवा पौष श्रादि महीनों में बादलों खटमिट्ठा अनार, स्वादुम्लद डिम । ( Pome- द्वारा वर्षता है उसे "अनार्त्तवजल" कहते हैं। granate of a mixed taste of sour यह प्राणियों में वातादि तीनों दोषों को कुपित and sweet). देखो अनार । करता है । "अनार्तवं प्रमुञ्चन्ति वारि वारिधराअनार वित्रतोस anāra-vitra-tisa-60 स्तु यत् । तस्त्रिदोषाय सर्वेषां देहिनां परिकीर्तिफ्राशरस्तीन | See-Fasharastina. तम् ॥" भा० पू० वारि०व०। वर्षा ऋतु के अनारगीरी anara-shirin-फा. मीठा अनार । सिवा अन्य ऋतु का जल अथवा वर्षा ऋतु के भी (Sweet Pomegranate ). देखो-श्र- प्रथम वृष्टि का जल । यह जल पीने योग्य नहीं नार। होता । वा० सू० ४ अ० श्लो० ७। अनारस anarasa-गु० अनन्नास | Ananas , अनातंवा anārttavā-सं० स्त्री०, हिं० वि० sativus, Mill. ( Pine apple ). स० स्त्री० (Unmenstruating woman) फा० इ०। जो ऋतुमती न हो। रजः शून्या, वह स्त्री जिसे अनारहिन्दी anatra-hindi-फ़ा० श्री फल, मासिकधर्म न होता हो यथा-"अनार्तवस्तनापंडी" विल्व, बेल (Egle marmelos). "बेल- स० सं०३०३८। "अनात वास्तनी षण्डी गिरी इसी का गूदा है।" खरस्पर्शा च मैथुने ।" मा०नि० । अनारिक्ष anāriksha-सं० श्राकाश (Sky ). | | अनार्य anārya-हिं० संज्ञा पुं॰ [सं०] [स्त्री० अनारिक्ष जलम् anāriksha.jalam -सं० अनार्या । संज्ञा अनार्यत्व, अनार्यता] (१) वह क्ली अन्तरीक्ष जल, वर्षा का जल | जो आर्य न हो । अश्रेष्ठ। (२) म्लेच्छ । अनारी anari-हिं० वि० [हिं० अनार ] अनार | अनार्यकम् anāryyakam-सं० क्ली० (१) के रंग का लाल | अगर, अगुरुकाष्ठ । Aloe wood-इं० । हला० । (२) काष्ठागुरु । रा०नि० व०१२। संज्ञा पु० (१) लाल रंग की आँख वाला भा० पू०१ भा० क० व० । देखो-अगर । कबूतर । (२) एक पकवान | यह एक प्रकार अनाय॑जम् anāryya jam-सं० क्ली० अगर । का समोसा है जिसके भीतर मीठा या नमकीन अगुरु । Aloe wood-इं० । रा०नि०.। पूर भरा जाता है। नाय्यतिक्तः,-कः anāryyatiktab,-kah अनारीचह anarichah-फ़ा. एक अप्रसिद्ध बूटी | -सं० पु. चिरायता, भूनिम्ब । ( Gentia. है (जफरा भेद की). na Cheray ta, Rob.) अम० । अनार्जव: anārjavah-सं० पु. 1. अनार्ष anarsha हिं० वि० [सं०] जो ऋषि अनार्जव anarjava-हिं० संज्ञा पु० । प्रणीत न हो। जो ऋषिकाल का बना हुआ रोग । ( Disease) रा. नि. व. २० । न हो। (२) सिधाईका अभाव । टेढ़ापन | असरलता । अनालगोलम् anala-golam-सं०० (Du. अनार्तव anartva-हिं० वि० [सं०] [स्त्री० | ctless gland ) प्रणालीविहीन प्रन्थि । अनार्तवा ] बिना ऋतुका | बेमौसिम । अनवसर । अनालीकी analiqi-रू० अञ्जरह, उतञ्जन । संज्ञा पुं० स्त्रियों के ऋतुधर्म का अवरोध । ___Blepharis Edulis, Pers.) रजोधर्म की रुकावट । अनाविलः anavilah-सं० त्रि० अनार्त: anārttah-सं० त्रि० अकालज, बेसमय, अनाविल anavila-हिं० वि० बिना ऋतु । ( Untimely ). निर्मल, स्वच्छ, साफ, ( Clean,pure ). ४० For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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