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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनार ३०० अनार अनार श्रेष्ठ तथा वातादिक रोग नाशक है। अत्रि. १७ १०। . . . . ... दाहिम हृय, अम्ल, वातनाशक, दीपन, । कषाय तथा कफ पित्त विरोधी है। मधुर अनार त्रिदोषनाशक और खट्टा एवं वात व कफ नाशक है। वरनाशक, दीपम, पथ्य, लघुपाकी तथा अग्निप्रदीपक है। राजवल्लम। अनार के वैद्यकीय व्यवहार हारीत मुख द्वारा रक्तस्राव में दादिम फल । त्वक् च को चीनी के साथ चाटने से मुख द्वारा । • रजपात प्रशमित होता है। (चि० ११ श्र०)। चक्रदत्त-अरोचक . रोग में अनार के फल का रस विट-लवण-चूर्ण एवं मधु के साथ मुख में धारण करने से.असाध्य अरुचि भी प्रशमित होती है। (अरोचक-चि०) बंगसेन-(..) ज्वरकृत मुख वैरस्य में चीनी के साथ पिसा हुअा अनार. दाना किंवा . शर्करा मिश्रित, अनार का रस, किसमिस तथा अनार के रस.से ढीला कर मुख में धारण करने वा गण्डुप. करने से ज्वर रोगीके मुख की विरसता नष्ट होती है । (ज्वर-त्रि०) ( २ ) रत्नातिसार में अनार का रस (दाडिम बीज स्वरस),-कूटा हुना ताजे कुटज • स्वक् ८ तो० को ६४ तो. जल में पकाएँ। पाद (१६ तो०) शेष रहने पर उतार कर यन्त्र से छान लें। इसमें १६ सो. अनार का रस मिला ... कर पुनः पाक करें । जब यन्न सिकावत होजाए ..(अर्थात् राब की चाशनी लें।) तब उतार कर रक्खें । इस फाड़िताकार वस्तु में से १ तो० लेकर तक के साथ सेवन करने से मृत्युनमुख अतीसार रोगी भी जीवन लाभ करता है। यूनानी मतानुसार प्रकृति-मीठा अनार प्रथम कक्षा में सर्द तर है । शीतल होने का कारण यह है कि इसमें अत्यधिक माता होती है। और तर स्निग्ध होने का कारण यह है कि इसमें उफाण नहीं पैदा होता जो तरी को कम करने का कारण हो सकता है । अन्यथा यह मधुर न रहता प्रत्युत भम्ल हो जाता । किसी किसी के मत से यह शीतोष्ण (सम प्रकृति) है। खट्टा अनार द्वितीय कक्षा में शीतल एवं रूक्ष है । शीतल होने का कारण यह है कि इसकी प्राकृतिकोमा उफाण के कारण लय हो जाती है तथा रूप होने का कारण यह है कि इसमें आर्द्रता की कमी होती है। खटमिट्टा अनार प्रथम कक्षा में सर्द व सर है । अभार के वीज-प्रथम कदा में शीतल एवं रूद हैं। हानिकर्ता-(मधुर ) भामाशय तथा ज्वरी को । ( अम्ल ) शीत प्रकृति को, कुव्वत जाज़िबह (अभिशोषक शकि) को, यकृत् तथा बाह को। (स्वाद्वम्ल) शीत प्रकृति को। (दाडिमयीज) शीत प्रकृति को। दर्पनाशक-( मधुर ) खट्टे अनार तथा शीत प्रकृति वालों को साका मुरब्या: (दाडिम बीज) जीरा । प्रतिनिधि-मी अनार की प्रतिनिधि खट्टा अनार, खट्टे थनार का मीठा अनार । खटमिट्टा का कच्चा चंगर और अनार वीज का सुमान है । मात्रा अनार श्रीज की मात्रा माशे से ६ माशे तक। गुण, कर्म, प्रयोग- अनार अपनी शीतलता एवं अम्लता के कारण पित्त का नाश करता है। और अपने कब्ज तथा रूपता के कारण इह शा ( कोठों) की ओर मल वहन को रोकता है। विशेष कर इसका शर्बत, क्योंकि इसमें तारल्यता कम होती है। इसके सम्पूर्ण भेदों में यहाँ तक कि अम्ल में भी कठज़ (संकोच ) के साथ कांतिकारिणी शक्ति वा वयशोधकशनि(कम्बतजिल्ला) होती है खहे अनारमें उफाण तथा अम्लताके कारण कांतिकारिता (जिला ) होती है। परन्तु, मधुर अनार में उन गुण होने का कारण यह है कि भावप्रकाश-प्रामाजीर्ण में दाडिम फल को | भली प्रकार पीसकर पुराने गृह के साथ खाने से प्रामाकीर्ण प्रशमित होता है। यह अर्श प्रभति गुद रोगो एवं कोप्ठ्य में प्रशस्त है । ( अजीर्ण -चि। For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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