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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . अतश मुकरित २३० अतसी मनुष्य शान्ति लाभ करता है। म० ज०। अतश मुफरित aatash-mufrit-) शिद्दतुल अतश् shidda tul aatash-१० तृष्णाधिक्य बहुत प्यास लगना, घड़ी घड़ी प्यास लगना । पालीडिप्सिया Polydipsia-इं० । म० ज०। अतल atala-हिं० वि० [सं०] ( Bottom less ) निस्ता , तल राहेत, चिकनी जगह पर न ठहरने वाला अर्थात् झट लुढ़क जाने वाला | अतसरून atasarina-यू० सुमाक Rhus coriaria (Dry seed of Sumach Or suumac ). श्रतसः a tasah-सं० पु. (१) ( Wind, ail )वायु, हवा । (२) A garment male of the fibre of flax अतसी वन, अलसी के रेशे का बना हुश्रा कपड़ा । wafs-7e atasi-núne-ão Linum Usitatissimum, Linn. ( oil of Linseed-Oil.) स० फा० इ०। अतसी. atusi-सं० (हिं० संज्ञा ) स्त्री० एक पौधा और उसका फल वा बीज । लाइनम् युसि । टेटिस्सिमम् Linum Usitatissimum, | · Limn. (Seeds of), atga (Linum) -ले० । कॉमन फ्लक्स ( Common Flax ), या फ्लैक्स ( Fla.x.) लिनसीट ( Linseed )-इं० । लिन कल्टि (Lincultive.), लिन् युस्वेल ( Liyusvel ) -फ्रां। जेमीनर लीन और फ्लैक्स (Gemeiner Lein or Flachs )-जर० । अलसी के बोज-इ० । तीसी, अलसी-हिं० । संस्कृतपर्याय-चणका, उमा, होमी, रुद्रपत्री, सुवचर्चला, (. र०.); पिच्छिला, देवी, मदगन्धा, मदोत्कटा, तुमा, हैमवती, सुनीला, नीलपुम्पिका और पार्वती । तैल फला । पूर्वाचार्य कृत वर्णन--'अतसी मशिना इति लोके प्रसिद्धा" इल्वण (सु० टी० स०३६ अ०.)। "अतसी तिसीति विख्याता' चक्रपाणि-(सु० टी० स० । ३६ अ०)। तीसी, मोसिना बं० । कत्तान, ब ल । कत्ता (ता) न-अ० । कताँ, तुमे कताँ, बज्र कताँ, तुहमे ज़गीर, बज्रक-फ। अलिशि विरै -ता० । अतसी, मदन गिजलु, नल्लयगसि चेटु-ते० । चेडु, चाणत्तिन्ते-वित्त-मला। अलसी -कना० । अल शी, जोशी, जवस-मह०, को०, गु० । पेसु-उड़ि। अतसीतेलम् आलियम् लाइनाई (Oleum Lini) -ले० । लिनसीड प्राइल ( Linseed oil ) -इं०। अलसी का तेल, तीसी का तेल-हिं। अलसी का तेल-द० । मोसिनार तैल, तीसि तैल-य० । दोहनुल कत्तान, दोहनुल कता, जैतुल कता-अ० । रोग़ने ज़ग़ोर, रोशने कता-फा० । अलिशिविरै-थेरणे--ता० । मदन-गिञ्जलु-नूने, अतसि-नने-ते। चेरुचाण वित्तिन्ते-एण्णा-मल। अलशी-यरणे-फना० । नोट-यह एक गादे पीले रंग का तैल है जो अतशी के बीजों से दबाकर निकाला जाता है। इसका प्रापेक्षिक गुरुत्व '३ से १४ तक होता है । वायु में खुला रहने पर यह रालवत् शक हो जाता है। . अतसी वर्ग (N. 0. Linaceae or lincse) उत्पत्ति स्थान-इसका मूल निवासस्थान मिध देश है। परन्तु अब समग्र भारतवर्ष विशेषतः बंग देश, विहार व श्रोड़ीसा एवं संयुक्रप्रांत में तथा रूस, हॉलैंड और ब्रिटेन में इसकी कृषि की जाती है। वानस्पतिक वर्णन-अतसी एक फलपाकांत पौधा है। यह पौधा प्रायः दो ढाई फुट ऊँचा होता है । इसमें डालियाँ बहुत कम होती हैं, केवल दोवा तीन लम्बी कोमल और सीधी टहनियाँ छोटी छोटी पत्तियोंसे गुथी हई निकलती हैं। पत्र विपमवर्ती और सूक्ष्म तथा लम्बे होते हैं । इसमें नीले और बहुत सुन्दर फूल निकलते हैं जिनके झड़ने पर छोटी घुडियाँ बँधती हैं। ( इन्हीं धुड़ियों में बीज रहते हैं । ) ये घुडियाँ गोलाकार होती और परदों द्वारा पाँच फलकोपों में विभक्त होती हैं। प्रत्येक कोप में दो For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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