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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ir www.kobatirth.org २२० खरबूजा पेपीन ( Papain ) को पेपाइन (papine ) के साथ मिलाकर भ्रमकारक न बनाना चाहिए । पेपाइन एक द्रव पदार्थ है जिसमें अफीम के वर्जनीय वारीय सत्वों से भिन्न उसमें श्रङ्गमप्रशमन गुणों के होने की प्रतिज्ञा की जाती है । इन्द्रियव्यापारिक कार्य या प्रभाव - इसकी प्रभाव विषयक बातों में सिवा इसके और कोई स्मरणीय बात नहीं कि इसका नत्रजनीय पदार्थों पर प्रबल प्रभाव होता है; और जब पेपेोटीन को सीधा रक्रमें पहुँचाया जाता है तब यह प्रबल विषैला प्रभाव उत्पन्न करता है; जिस से हृदय तथा वातकेन्द्र वातग्रस्त हो जाते हैं । अन्यथा श्रान्तरिक रूप से औषधीय मात्रा में यह सर्वथा निरापद है । उपयोग - डिफ्थीरिया (खुनाऊ, कंडरो हिली ), ग्रहसरेटेड थ्रोट कण्ठचत ), कूप ( स्वरनीकास), एक्ज्ञेमा ( कन्द) और फिशर श्रीफ दी टङ्ग ( जिह्वा की कर्कशता) आदि में इसका स्थानिक उपयोग और अग्निमांद्य, श्रजीर्ण वृकशूल, कद्दूदाना ( टीनिया सोलियम् ), आध्मान, अतिसार तथा वृक्काश्मरी एवं दन्तोदुर्भेदजन्य संग्रहणी ( Lienteric Diar rhoea ) प्रभृति में इसका ग्रान्तरिक उपयोग लाभदायक होता है। (3) पेपीन- तथा ऐसी वा पेनकि एटीन ( क्रोमीन) के पाचक प्रभाव की तुलनात्मक व्याख्या- - ( क ) अम्लीय पारीय तथा म्युट्रल - घोलों ( वा माध्यम) में भी इसका प्रभाव होता है जिससे उस अवस्था में भी इसके प्रभाव करने की आशा की जा सकती है जब कि अस्वस्थता के कारण अथवा कृत्रिम रूप से जैसा श्रौषधकाल में होता है, आमाशयस्थ पदार्थों की प्रतिक्रिया क्षारीय या म्बुट्रल (उदासीन) होजाती है। उन दुर्शाओं में पेपीन सत्यत्तः व्यर्थं प्रमाणित होगा । ( ख ) क्षारीय एवं न्युट्रल घोलों में प्रभावजनक होने के कारण आहारीय पदार्थों के श्रामा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मण्डखरबूजा शय से आंत्र में जिसकी प्रतिक्रिया चारीब होती है, श्रा जाने पर भी इसका प्रभाव होता रहेगा जो पैङ्कीएटीन ( क्रोमीन ) के प्रभाव के तुल्य है । सम्पूर्ण आंत्र पर इसका प्रभाव होता रहेगा । (ग) इसमें कुछ अङ्गमप्रशमन वा शूलहर प्रभाव भी है । (घ) पचनीय सान्द्राहार के अनुपात से द्रवाहार की मात्रा औसत वा अत्यधिक होनेपर भी यह पेप्सीन की अपेक्षा प्रवलतर प्रभाव प्रद र्शित करता है । ( * ) Proteolytic प्रभाव के लिवा पेपीन का तेल पर स्पष्ट इमल्शनीकारक प्रभाव होता है। (च) पेपसीन तथा पेडिपुटीन ( ओओसीम ) की उपस्थिति में पेपीन का प्रभाव बढ़ जाना है। मांस को कोमल करने के लिए पेपीन घोट में हुबा रखने पर वह अधिक काल तक विना सड़े गले सुरक्षित रहता है जो इसके बिना कदापि सम्भव न होता । इससे अनुमान किया जा सकता है कि इसमें ऐण्टिसेप्टिक ( पचननिवारक ) तथा पाचक प्रभाव भी हैं । ( ज ) गांवों में इसका विलक्षण प्रभाव होता है । (२) आमाशय व अन्य विकार- अजीर्णाबस्था तथा अन्य आमाशयान्त्रविकार जन्य दवाओं में मांस पचाने में सहायक होने के -लिए-फ्रांस देश में पेपेपोटीन का उपयोग किया गया। बालकों के कतिपय आमाशय व प्रांत्र विकारों में इसका सफलतापूर्ण प्रयोग किया सस्था | कहा जाता है कि थोड़ी मात्रा में इससे निर्मा एवम् छर्दि में अतिशीघ्र लाभ प्रगट · हुआ । स्वाभाविक प्रामाशयिक रस के कम बनने की अवस्था में पेपेयोटीन को मुख द्वारा अथवा पोषकवस्ति रूप में प्रयोग करने से विशेष लाभ होता है । पेपीन बालकों के पुरातन श्रामाशयिक प्रतिश्याय, चम्ला जीर्ण, तीव्र आमाशयशूल ( ग्रामशूल जो भोजनके थोड़ी देर पश्चात् आरम्भ होता For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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