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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अण्डखरबूजा होते हैं 1 खण्ड - श्रायताकार, न्यूनकोणीय, शिरायों से व्याप्त होता है जिसके सिरे पर पत्तों की छत्री बनी होती है । www.kobatirth.org I मध्य खण्ड - पुनः त्रिखण्डयुक्त होता है पुष्पभ्यन्तरकोष नरपुष्प में नलिकाकार और मादा में पञ्च खरडयुक्त होते हैं। नरपुष्प कक्षीय किञ्चित् मिश्रित गुच्छों में एवं श्वेत होते हैं । मादा (रि) पुप साधारणतः भिन्नवृक्ष में कक्षान्तरीय, वृहत् एवं गृदादार और पीताभायुक होते हैं । फल रसपूर्ण श्राथतःकार, धारीदार, लघु खबूजा के थाकार के परिपक्वावस्था में पीताभायुक्त हरित या सुखमायल वर्ण के और श्रपक्क दशा में हरे रंग के होते हैं। इनमें बहुसंख्यक गोलाकार धूसर वर्ण के चिपचिपे मरिचवत् बीज होते हैं इनमें से चुनसरवत् गंध श्राती हैं। अपरिपक्वावस्था में फल गाड़े दूध से भरा रहता है । पत्र एवं कांड में भी दुग्ध होता है । इसमें पेपीन ( अण्डखरबूजा सत्व प्रभावशाली पाचक सत्य होता है । 1 नामक एक -- 7 नोट- फल के विचार से ये चार प्रकर के होते हैं . २१६ १ - नर - जिसमें फल नहीं लगते, ये केवल पुष्प श्राचुकने पर शुष्क हो जाते हैं। शेष तीन फलदार होते हैं । २ - इनमें से एक बेल पपय्या है । इस प्रकार का फल तने से लगा हुआ नहीं होता, अपितु डलयुक्त होता है। शेष दो प्रकार (तीन व चार ) के फल तने से लगे होते हैं केवल फल के छोटे बड़े होने का भेद होता है । : अंडखरबूजा बम्बई, कराँची और मदरास में अधिकता से होता है । प्रयोगांश - दुग्धमय रस, बीज तथा फलमज्जा और पत्र, दुग्धमय रस द्वारा प्रस्तुत सत्व "पेपीन" आदि । रासायनिक संगठन - इसके दुग्धमय - रस में एक प्रकार का अल्ब्युमिनीय पाचक संधानीत्पादक ( श्रभिषत्रकारी ) पदार्थ होता Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अण्डखरबूजा है, जो दुग्ध को जमा देता है, उसको पेन ( Papain ) या पयोन (Papavotin) कहते हैं। ताजे फल - स्वरवत् एक पदार्थ, एक लहु पीतवर्ण का राल, वसा, अल्ब्युमीनाईड्स, शर्करा पेक्टीन, निम्बुकाम्ल ( Citric Acid ), अम्लीकाम्ल ( Tartaric Acid ), सेव की तेजाब ( Malic Acid ) और ब्रॉक्षौज ( अंगूर की शर्करा ) प्रभुति पदार्थ पाए जाते हैं। शुष्क फल में अधिक परिमाण में भस्म ( ८.४ % ) होती है जिसमें सोडा, पोटाश और स्फुरिकाम्ल ( Pho sphoric Acid ) पाए जाते हैं। इसके बीजों में एक प्रकार का तैल होता है जिससे श्रग्राह्य गंध श्राती है । (स्वाद - श्राह्म) इसको अण्डखरबूजा तैल या पपैया तैल ( Papa - ya Oil or caricin) कहते हैं । इनके अतिरिक्त इसमें पामिटिक एसिड, कैरिका फैटएसिड, एक स्फटिक अम्ल जिलको पपीताम्ल (Papayic Acid ) कहते हैं और रेजिन ऐसिड तथा एक मृदुराल श्रादि पदार्थ पाए जाते हैं । इसके पत्र में कार्पोन ( Carpaine) नामक एक क्षारीय सत्व होता है जिससे कार्पोन हाइड्रोक्लोराइड ( Carpaine hydrochloride ) बनता है । यह जल में विलेय होता है और हृदय बलप्रद रूप से डिजिटेलिस के स्थान में से लेकर ง ग्रेन तक के मात्रा ३० १५ गन्तःक्षेप रूप से उपयोग किया जाता है । कापन एक विषैला पदार्थ है । औषध निर्माण - १ - पपीता सरस, मात्रा२० से ६० बुदे । २-शुष्क पपीता स्वरस, मात्रा-१ से २ ग्रेन या अधिक । इससे भाग पेपीन ( पपीता सत्व) प्राप्त होता है । ३ - पपीता सत्व अर्थात् पेपीन या पेपेयोटीन, मात्रा - 1 से ८ ग्रेन । ४——फल मज्जा । ५---शत, चटनी श्रादि । ६ - कल्क व पुल्टिस । सेवन विधि - इसको कीचट में डालकर या मिश्रण ( मिक्सचर ) या गुटिका रूप में तथा एलिक्सर और ग्लीसरोल की शकल में देते For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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