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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अञ्जनम् अञ्जनम् करने के लिए तथा हली द्वारा तीव्र विषाक्तता अर्थात् उग्र मदात्यय (एक्यूट अलकुहलिज़म ) में निद्रा हेतु टार्टरेटेड ऐण्टिमनी उपयोग में ला सकते हैं। व्यापक अवसन्नताजनक औषधों यथा क्रोरोफॉर्म आदि के प्रचार पाने से प्रथम टार्टरेटेड ऐण्टिमनीको अन्त्रवृद्धि (हर्निया) रोग तथा संधिच्युति (डिस्लोकेशन) में पेशियों को ढीला करने के लिए अधिकता के साथ व्यवहार में लाते थे, किन्तु कोरोफॉर्म के दर्याप्तके बाद उक अमिप्राय हेतु अब यह बिलकुल व्यवहार में नहीं पाती । परिवर्तक तथा पित्तनिःसारक रूप से ऐण्टिमनी सल्फ्युरेटम् को प्रायः गठिया रोग (गाउट) और (हेपैटिक फुलनेस) में देते हैं । कैलोमेल के साथ पलमर्र वटी रूप से इसे उपदंश रोग में वर्तते हैं। नोट-डाक्टरी चिकित्सा में काला बाज़ार के लिए तो केवल एक टार्टार एमेटिक ही एक ऐसी औषध सिद्ध हुई है जो कि उक्त रोग को समूल नष्ट कर सकती है । पूर्ण विवेचन के लिए देखो-काला । श्राज़ार | श्लीपद रोग में सोडियम् ऐण्टिमनीटार्ट का अन्तःक्षेप कराना गुणदायी है । प्रावश्यकतानुसार १, २ या ३ सप्ताहके अन्तर से दें। __टार्टरेटेड ऐण्टिमनी अब बहुत कम उपयोग में श्राती है। चूं कि यह घुलनशील एवं स्वादरहित औषध है; अतएव इसको घोल रूप में व्यवहार करना उत्तम है। इसको सदा अतिन्यून मात्रा ( से . ग्रेन) से प्रारम्भ करना चाहिए; क्योंकि यह देखा गया है कि इसको १ ग्रेन की मात्रा में बारम्बार देनेसे वमन आने लगता है। ___ इसको रेचक प्रभाव के लिए कदापि उपयोग | में न लाना चाहिए। इसके उक्त प्रभाव को रोकने के लिए प्रायः इसको अफीम के साथ मिलाकर दिया करते हैं। जब इसको नैलिद (श्रायो डाइड्ज़ ) या इपिकेक्वाना के साथ मिलाकर दिया जाता है तब वायुप्रणालीस्थ श्लैष्मिक कला पर इसका अति तीन प्रभाव होता है। एक वर्षीय शिशु को आक्षेपयुक्त खुनाक ( Croup) मेंऐण्टिमनीटार्ट १ ग्रेन वाइनाइ इपीकाक ४ डा० सिरुपाई सिम्प० १ श्राउं० एक्का ३ ग्राउं० इनको मिश्रित कर १५-१५ मिनट पर एक एक चाय के चमचा भर जब तक वमन न हो देते रहें । पश्चात् आवश्यकतानुसार एक दो, या तीन घंटे बाद दें। सल्फ्युरेटेड ऐण्टिमनी ( काला सुरमा) न्यून मात्रा में टार्टार एमेटिक के संपूर्ण गुणधर्म रखता है। यह परिवर्तक होने के कारण उपदंश (सिफिलिस) चिकित्सा में प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका है । किन्तु, माण्डेिल्स सोल्युशन श्रॉफ ऐण्टिमनी अॅक्साइड (मार्टिर डेल का अञ्जनोप्मिद घोल ) तथा केस्टेलेनीज़ इण्ट्रावेनस (शिरान्तरीय) या इण्ट्रामस्क्यूलर (मांसान्तरोय) इंजेक्शन श्राफ टाटार एमेटिक के श्राविकार के साथ उसका उपयोग कम होगया । इसे स्वगन्तर, शिरान्तर या मांसान्तर अन्तःक्षेप द्वारा उपयोग में लाना चाहिए। अञ्जन विषतन्त्र ( अगद तन्त्रम् ) . तीषण विष के लक्षण-इसके विष के लक्षण संखिया विष के सदृश ही होते हैं। अस्तु, पौन घंटेसे एक घंटेके भीतर निम्नोल्लिखित लक्षण उपस्थित होजाते हैं। यथा कंठ में गरमी तथा दाह प्रतीत होता है और गला घुटकर गिलन कठिन होजाता है। जी मचजाता है। बारम्बार दस्त व वमन पाते हैं। वमन किया हुआ द्रव्य कभी हरा वा काला और कभी श्राकारावत् नीला होता है। उदरमें पीड़ा होती है, और पिंडली की मांस पेशियाँ श्राकुचित होजाती हैं । मुत्रावरोध होता है। विषाक्त को कभी उन्माद या शिथिलता भी हो जाती है और अंतिम कक्षा की निर्बलता होती है। नाड़ी For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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