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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अश्चकम् ढेरा, श्रङ्कोल ( Alangium Deapetalum, Lam.) हैं० ह० गा० । १७२ अश्ञ्चकम् anchakam - सं० क्लो० नेत्र, चक्षु, आँख । ऐन- अ० । चश्म - फा० । श्रई (Eye) - इं० । रा० नि० व० १८ । अञ्चञ्चक anchanchak- श्रञ्जकक | Pyrus communis ( seeds of - ) फा० इं० १ भा० । अश्चित anchita हिं० वि० ( Bent; curved ) झुका हुआ, तिछ, देहा । श्रञ्चसा anchusá-यु०, रू० श्रज्जुसा । दम्मुल्खूनखराबा, विजयसार निर्यास । फा इ० २ भा० । श्रञ्च, anchü--नैपा०, हिमा०, प्रसिद्ध । कलहेर, कल हिसरा ( - ) -- गढ़० हिं० । फ्यु फ्लावर्ड रैस्पबेरी (Few flowered raspberry) --इ० । रत्रुबस पासीफ्लोरस ( Rubus pauciflorus ), र० वैलिकियाई ( R. wallichii )- do đo đo đo đo गुलाव वर्ग ( N. O. Rosacee ) उत्पत्ति स्थान - नैपाल हिमवती- पर्वतश्रेणी तथा उत्तरी पश्चिमी भारत । ब्रिटेन में यह जंगली पौधों की तरह बहुतायत से होता है। 1 वानस्पतिक विवरण यह एक झाड़ी है जिसका तना सीधा होता है और जिसमें सख्य सूक्ष्म मह करटक लगे होते हैं । पत्र गुलाब के समान और कोंपल बदामी रंग के मखमली जो देखने में अत्यन्त मनोहर प्रतीत होते हैं । पुष्प अत्यन्त सूक्ष्म श्वेत और गुच्छे में आते हैं । फल गोल और रक, पीत एवं श्वेत वर्ण के तथा रस से परिपूर्ण होते हैं । फलका ऊपरी धरातल सूक्ष्म मृदु गोलाकार दानों से युक्त होता है। फूल गुच्छों में अथवा अकेले होते हैं । रस मधुराम्ल और सुस्वादु होता है । बीज अत्यन्त सूक्ष्म और गोल होते हैं । चैत में यह पुष्पित होता है तथा श्राषाढ़, श्रावण मैं इसमें पक फल प्राप्त होते हैं। पीले फलवाले को गढ़वाल में पांडा कहते हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अज्जदान रासायनिक संगठन एक उड़नशील तेल, शर्करा, पैक्टिन ( Pectin ) नीबू और सेव के तेज़ाब (Citric and malic acids), खनिज तथा रञ्जक पदार्थ, कुछ खनिज लवण और जल | गुणधर्म - यह ज्वरतापशामक हैं। ताज़े होने पर यह केसरी ( Strawberry ) के प्रतिरिक किसी भी अन्य फलकी अपेक्षा तृष्णा शमन हेतु श्रष्टतर है। इसको अकेले खाने से श्रामाशय में अम्लीय संधानोद्भूत होने की आशंका नहीं रहती । इसका अचार अथवा मुरब्बा सर्वोत्तम पदार्थ है । चू के पत्ते का शीत कषाय तीव्र शैथिल्य प्रवाहिका, विसूचिका, शिशुव्याधि तथा उत्तापव्यथा र आमाशय द्वारा रक्तस्त्राव में उत्तम श्रौषध है। इं० मे० मे० । अञ्जु ãanza - श्र० बकरी - हिं०। (She-goat) श्रञ्जश्र anzuā- श्र० जिसके ललाट के दोनों बगल से रोम जाते रहे हों । अञ्जक anjakak अकक anjukek - फा० कु. तुम हिन्दी | (ये जङ्गली श्रमरूद के बीज हैं जिनका छिलका श्यामवर्ण का होता है । ये विहीदाना से किसी भाँति बड़े और उसके सदृश त्रिकोणाकार होते हैं । इनके भीतर से श्वेत गूदा निकलता है ) । फा० ई० १ भा० | Anjukak, Pyrus communis (seeds of-) अञ्जद āanjad--अ० मुनक्का के बीज ( तुख्म भवेज़ ) अथवा फलों के दाने । अञ्जान anjadan - श्र०कु० यह श्रङ्गदान से अरबी बनाया हुआ शब्द है जिसका अर्थ अङ्ग का दाना अर्थात् बीज । इस वृक्ष के गोंद को हींग कहते हैं । इसी कारण हींग का फारसी नाम श्रङ्गजुद अर्थात् अङ्गका गोंद है। इसके मूल ( श्रीख़ अदान ) को अरबी में मजूरूस. और दुद्द कहते हैं । इसका बीज किसी किसी के विचार से काम है । नोट- श्रञ्जदान का वृक्ष काशम वृक्ष के समान होता है तथा यह खुरासान, श्रमनिया और भारतवर्ष के पर्वतों में उत्पन्न होता है ! For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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