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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजोवान १६५ प्रजभः . Rob.) मा. ई०। ई० मे. मे०। ( डाइ- तर तानो । अधोगा महाशित, निम्न महाशिरा । मॉक) प्राचीन छेदन मात्र की परिभाषा में उपरोविखित ___ मदनमस्त या सूरण वर्ग शिरा का वह भाग जो यकृत से निम्नावयवों (V.0. Artidese or Aruceue) को ओर जाका शाखाओं में विभाजित होता है। उत्पत्तिस्थान-बंगाल (राज.), सिरामपूर इन्फोरिअर वेना केवा (Inferior vena (बेन्थ०), अस्नोरा “गोमा देस्य" (डॉइ०), ___Civil :-ई । हिन्दुस्तान । ajo.ifa-fo.gani-अ० देखोउपयोग-गोवा में देशो लोग इसके बीज को __ अजौफ़ स.इ.द ( Superior vena कुचल का दंतरोग में वतने हैं। थोड़ी मात्रा में cava. ). इसे ही में रख का खोखले दाँतों में भर देते हैं। अजीक लाइ: ajo.ifa-sāail अजोक को कानी, इससे नः यःय होन तक ल श न होजाता है। अनौफ़ अना और अजीम तालअ-अ। इसो अमादक गुण के कारण चाट लगने प्रथा ऊ(-ग.)महाशा -है । प्राचीन छे इन शान कुचन जाने प्रनति में इसकः बाघ अयोग होता को परिमाया में उपरोल्लिखित शिरा का वह है। ( डाइमाक) भाग जो यकस सेऊर हृदय को और तथा नोट-देखो-सूरन अर्थात् एल सितोटिकम् उससे आर जाकर असंख्य शाखा में विभाजित ( Attim sylvaticum,Birb. ) या होता है। सुरिश्रर वेना केवा ( Supal. . सिनैन्धेरिअस सित्तैटिका ( Synanther- | rior- vena cava) इं। ias sylvatica, Schol. ). टिप्पणी-प्राचीन हकीमलोग यूँ कि शिराओं अजोवान ajowan-बम्ब० अजवाइन । Car का उद्गम यका से मानते थे । अस्तु, वे शिरा um (ptychotis) Ajowan, D. C. | के उस भाग को जो यकृत के उन्नतोदर भाग से अजोवान अॅइल ajowan oil निकल कर व उदरमध्यस्थ पेशी को छेदन कर अजोवान आलियम ajowan oleum-ले ऊपर हृदय की ओर जाता है ऊचंगामहाशिरा यानी तेल । देखो-अजवाइन । अर्थात् "अजौफ़ साइद या अजौफ़ फौकानी" श्रजौफ़ ajoifa-अ०(बहु० व०), जौफ़ (ए०. कहते हैं। इसके प्रतिकूल शिरा के उस भाग व) ) शाब्दिक अर्थ जौकदार या खोर जी को जो यकृत् से निम्नभाग की ओर उदर में वस्तु; किन्तु छेदन सास्त्र को परिभाषा में उस बड़ी पृष्ठकशेरुका के समान्तर पे तक जाता है नलीदार शिरा को करते हैं जो यकृत के उन्नतोदर अधोग.महाशिरा अर्थात् “अजौफ़ नाज़िल या भाग से निकलकर अजौफ़ साइद वा नाज़िल अजौफ़ तह तानी" कहते है। परन्तु अर्वाचीन दो भागों में विभाजित होती है । महाशिप योरोपीय डाक्टरगण चूँ कि शरीरस्थ समस्त -हिं । ( Vena cava) शिरात्रों का अन्त हृदय के दाहिने ग्राहक कोड नोट-पाहब कुस्तासुलइ तिब्बा अजौफ़ को में मानते हैं । अतः उनके वर्णनानुसार उपयुक्र उदर तथा योनि के लिए भी प्रयोग में लाते हैं दोनों शिराओं, यथा-"अजौफ़ साइद और अजीफ़ ला ajoufa-aala अ. देखो अनोक नाज़िल" का समावे। निम्नमहाशिरा अजीफ़ स इद। ( Superior vena (Inferior vena cava) ही में होता cava). है। शिरा सम्बन्धी अर्वाचीन डाक्टरी मत तथा अजीफ़ तह तानो ajoufa-tahtāni-अ० प्राचीन वैद्यक मत के लिए देखिए "शिरा' । देखो-अजौफ़ नाज़िल ( Inferior vena| अजंभ ajambha-सं० त्रि०,ह.वि. (Poo. cava). thless ) दंतहीन । अजौफ़ नाज़िल ajoifa-nāzil-अ. अजौफ़ | अजंभ: ajambhah-सं० पु. ( A frog) For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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