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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजिनागदः अजिर नागरमोथा, सिंघाड़ा; तज, पीपर, इन्हें २-२ अज़िन azina-अ० जिस मनुष्य के कर्ण द्वारा तोला लेकर, कूट बारीक चूर्ण कर उक तैल में | सर्वदा तरल स्त्राव होता हो। मिलाकर पकाएँ । सेवन विधि तथा गुण- | अजिनम् ajinam-सं० क्लो० । (१)मगचर्म, इसके सेवन से पंगुरोग वाले, विसर्प, स्नायु, अजिन ajina-हिं० संज्ञा पु. मृगछाला । संकोच, खंज, शिरा संकोच, गात्र भग्नता, (The hairy skin of any an telope.) गति की नष्ट ना, नन्य स्तम्भ, भुजा, कंट- श्रम०। (२) चम्म, खाल, छाल । (३) स्तम्भ, एकांगवात, सांगवात, लकवा, सोजा, ब्रह्मचारी आदि के धारण करने के लिए कृष्णखुजली, हनुग्रह, महावात तथा जिनके अंग मग और व्यान आदिका चर्म । श्रथा सु०६८। जर्जस्ति हो गए हों, कटि, काल, जानुस्थित ५ हा, कोट, काल, जानस्थित ३ का० । वायु, संधियों का मारजाना, शिरास्तब्ध, स्नायु, अजिनपत्रा ajina-patra-सं. स्त्री० ( A अस्थि, सन्धि, उरु, इनमें स्थित वायु, शूल, bat.) चमगादड़-हिं० । जतु (तू) का, शिरोशूल, गात्रशूल, एकांग तथा सर्वांग वात, चर्नचटका ( टी )-सं० । बाटुहा, चाम्चिकी त्रियों का योनिशूल जो वातरक्त के प्रकोप से -वं० । रा०नि० व० १६। हुआ हो, पुरुषों का शुक्र हय, मेढ़ राल, विकलता, अजिन पत्रिका ajina-patrika-सं० स्त्री० इन्द्री क्षीणता, D गापन, स्तुतिविभ्रम, तुतलाना, गू गायन, स्नातविभ्रम, तुतलाना, (१)( A bat) चर्मचटी, चमगादड़ निरुद्ध वाणी, रियों की सन्तान होनता, आर्तव, -हिं० । हे. च० । (२) (An owl) पेचक शुक्र का दूषित होजाना, इन समस्त विकारों को दर करते हुए मनुक्य को स्पति प्रदान होता है। अजिनपत्री ajina-patri- सं०स्त्री० (A bat) - इसके सिवाय, प्राध्मान, प्रत्याध्यान, अधिक जतु (-तू-) का, चमगादड़, चामचिड़िया-हिं० । डकार का पाना, जम्भा, कर्णनाद, क्षत, वातो चामचिकी-बं०र०नि०प०१६। न्माद, अपस्मति, शाखावात, गृध्रसी, अस्सी अजिन योनिः ajina-yonih-सं० पु. । प्रकार के वातरोग, मिति वात, कफ के रोग, अजिन यो नि ajina-yoni -हसंज्ञा पुं." इसके अभ्यंग, पान और नस्य से दूर होते हैं हरिण, मृग (A. deer, An Antelope). तथा जिनके अंग सिकुड़ गए हों उन्हें प्रसारित प. मु०। करता है। उर्ध्वगत, अधोगत समस्त वात रोगों अजिनह ajinnah-अ० (ए. व०), जनीन को यह अजितप्रसारणी नामक सेल शीघ्र दूर (ब०व०) गर्म, भ्रूण, जरायुस्थ शिशु, वह करता है । वं० से० सं० वातन्या० चि०। शिशु जो माताकी उदर में हो । फीटस Fetus, अजितागदः ajitāgadah-सं० क्लो० वाय एम्बयो Embryo-इं०। विडंग, पाा (निर्विषी हरिद्वारे ), ग्रामला, हड़, __ नोट-अंगरेज़ी में ३ मास से न्यूनावस्था वाले भ्रण को एम्बयो और इससे अधिक वाले बहेड़ा, अजमोद, हींग, सोंठ, मिर्च, पीपल, चित्रक, लवणों का सूचम वर्ग चूर्णकर शहद मिला को फ्रीटस कहते हैं। कर गाय के सींग में भर कर १५ दिन तक बंद अजिप्टिशो इण्डिगोप फ्लेख agyptische रक्खें । प्रयोग-इसके सेवन से स्थावर तथा ___Indigop flange जर० श्वेतनील, नी. जंगम विष दर होते हैं । भै० र० विषाधिकारे। लिनी-सं० । नोल बं०। ( Indigofera Argenta) ई० मे० मे० । अजितात्मन् ajitātman -6.पु.(Oneश्रजितेन्द्रिय ajitendriya) who has अजिबaaziba-अ० वह जल जिस पर काई जमी हो। not subdued his mind or his senses. ) वह मनुष्य जिसकी प्रास्मा एवं अजिरः ajirah-सं० ० क्लो. (१) मण्डक, इंद्रियाँ वश में न हो। अजिर ajira-हिं० संज्ञा० पु. मेंढक,ददुर । For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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