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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजवाइ (य) न खुरासाना अजवाइ (य.) न खुरासानो सहित कम्पन में कपकपी को रोकने तथा पारदीय पक्षाघात के लिए औषध रूप से उपयोग में प्राता है । परन्तु उन प्रयोजन के लिए यह हायोसीन से निम्न कोटि का है । अनिद्रा ( इसोनिया), पागलपन (मेनिया), मद्योन्माद ( हिले रियम ट्रीमेस ), साद्वांग कम्पन (पैरालिसिस ऐजिटेस), दमा (ऐज़्मा), बातवेदना (न्युरैल्जिया) तथा कम्पन (कोरिया) में इसका उपयोग किया गयो; किन्तु यह हायोसीन की अपेक्षा कम उपयोगी प्रतीत हुआ। ( एलो. मे० मे० हिटला) मानसिक विकार-व्योन्माद, असीम व्यग्रता, भ्रम, शंका, सोत्तेज्य स्मृति ग्रंश तथा अवयवस्थितता, अपस्मारोन्माद तथा पुरातन विस्मति रोगमें इसका व्यवहार होता है । पागलपन एवं तत्सम्बन्धी दशायों में विना किसी कुप्रभावके क्लोरल की अपेक्षा निश्चित निद्रा उत्पन्न करता है । तावोन्माद में इसके उपयोगकी उत्तम विधि त्वगन्तर अन्तः क्षेप है। वात विकार-साङ्ग कम्पन में यह वह | काम करता है जो किसी और औषध ने कभी नहीं किया अर्थात् अचेतना उत्पन्न किये बिना ही यह अंगचालन को चार घंटे तक रोक देता है। जब सम्पृण ओषधियाँ असफल होजाती हैं उस समय यह वायु कम्पन को ीक करता है एवं उसी प्रकार यह पारदीय कम्पन. वृद्धावस्था अथवा निर्वल ता जन्य कम्पन, रेशा (कोरिया) तथा योषापस्मारीय आक्षेप को शमन करता है। युवा या बाल दोनों के तरान्नुज ( श्राक्षेप) की अवस्था में यह वेदना तथा प्रदाह को शमन करता है। वातवेदना में इसका उपयोग किया गया और सम्भवतः ज्ञान तन्तुओं की उत्तेजना कम होकर वेदना शान्त होगई। श्राप शमन-यह प्राक्षेपशामक है और | इस लिए आक्षेप युक्त कास, श्वास, हिकफ ( हिचकी ) आदि में इसका लाभदायी उपयोग होता है। - मूत्रविकार-यह मूत्रविरेचक है तथा वृक गविन्यु (युरेटर ) तथा बस्तिस्थ वेदमा एवम् खराश को शमन करता है। ., निद्राजनक-यह सार्वाङ्गिक वेदनाशामक तथा निद्राउ.नक औषध है और जब अफीम का उपयोग अनुचित होता है उस समय इसे देनेसे मीद श्राजाकी है । इससे विवन्ध नहीं पैदा होता। औषध-निर्माण तथा मात्रो-हायोसायमीन (स्फटिकवत् )... से . न । हायोसायमीन (विकृतःकार) से ग्रेन। नवीनोम्माद में से १ ग्रेन की मात्रा में भली प्रकार हलका कर ( diluted ) तथा चतुरतापूर्वक उपयोग करना चाहिए। क्योंकि कुछ रोगियों में इसके बरदाश्त की शक्रि नहीं होती। हायोसायमोनी सरुफ-१. से .. प्रेन स्वगन्तरीय-सामान्य मात्रा- या ग्रेन, अधिकसे अधिक और कम से कम १३, (१० वी० एम०) परीक्षित योग (१) एक्सट्रैक्टम् हायोसायमाई ३ ग्रेन, पल्विस कैम्फोरी २ ग्रेन, दोनों की गोली बना कर रात्रि में सोते समय ३ । कार्डी (सुज़ाक सम्बन्धी शिश्नोत्त जना) में लाभदाक है। (२) एक्सट्रैक्टम् हायोसायमाई २ ग्रेन, ज़िन्साई वेलेरीए नेट्स २ ग्रेन, , गाली बनाएँ और ऐसी १-१ गोली दिन में २ बार दें । नर्व सिडेटिव ( वातावसादक) है। (३) हायोसीनी हाइड्रोप्रोमाइड) ग्रेन, पल्विस सैक्रिलैक्टस ( मिल्क शूगर) २ ग्रेन । गोली बनाकर सोते समय दें। पैरेलिसिस एजिटैन्स ( पक्षाघातीय कम्पन) में गुणदायक है। (४) सोडियाइ ब्रोमाइडाई १५ ग्रेन, सक्काई हायोसाइमाई प्राधा ड्राम, सीरूपाई पेमे. वरस १ ड्राम, एक्का डिस्टिलेटा १ श्राउंस तक, For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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