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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजवाइ (य ) न खुरासाको अजवाइ य) न खुरासानो डायलूट अलकुहॉल में अधिकतर लयशील होता है। यह धतूरीनके समान नेत्र कनीनिका विस्ता हायोसायमीन अनेक सोलेनेसी ई पौधों यथाधतूर,विलाडोना और सम्भवतः इसके कुछ अन्य भेदों में धतूरीन के साथ मिला हुआ पाया जाता है । हामोसायमीन उन्हीं द्रव्यों में विश्लेषित किया जा सकता है जिनमें ऐट्रोपीन वियोजित होता है, यथा-ट्रोपीन और ट्रॉपिक एसिड। हायोसीन (स्कोपोलेमीन) या विकृताकार हायोसायमीन-अपने कनीनिका प्रसारक नथा अन्य गुणों में निकट की समानता रखते हैं। जल में उबालने से यह ट्रॅॉपिक एसिड तथा स्युडोट्रोचीम में वियोजित हो जाते हैं। (वैटस डि० श्रॉफ केमिस्टो, द्वि० संस्क० ११, ७४४)। उनके अतिरिक पत्ते में हायोस्क्रीपीन ( Hyoscripin , कोलीन ( cholin), फैटी इल, लुभाब, अब्युमीन-(अंडे की सुफेदी) और पांशुनत्रेत (पोटेसियम नाइट्रेट ) २ प्रतिशत तक होते हैं। बीज में एक स्थिर या वसामय तैल २६ प्रतिशत, एक एम्पाइर युमैटिक तेल ( Empyreumatic oil ) जो विनाशक परिति विधिद्वारा प्राप्त होता है, और वार्नीक (Wa1neke ) के मतानुसार ४.५१ प्रतिशत भस्म वर्तमान होती है। - प्रभाव-बोज-मादक, निद्राजनक (मदकारी), वेदनामाराक, पाचक, संकोचक तथा कृमिघ्न है । ०५ तथा हायोसाइमीन-अवसादक, वेदना-शामक, आक्षेप निवारक, उत्तेजक और नेत्र कनीनिका प्रसारक है। इनका उन्मत्तकारी प्रभाव बिलाडोना की अपेक्षा मातर तथा निद्राजनक अधिकतर एवम् अधिक विश्वसनीय व शीघ्र और अफीम सस्व ( मार्फिया) व मोरल से उत्तम होता है। औषध निर्माण-पत्र चूर्ण, मात्रा २॥ से ५ रसी (५ से १० ग्रेन); ताजा स्वरस ' ( दवा कर निकला हुआ एवं सुरक्षित रक्खा हुधा), मात्रा-प्राधा से १ लाम; शुष्क पौधे द्वारा निर्मित टिचर, · मात्रा-चौथाई से १ ड्राम; ताजे पौधे का एक्सट्रैक्ट ( सत्व ), मात्रा-पाधी से १॥ रसी ( १ से ३ ग्रेन)। इनके द्वारा प्रस्तुत प्रस्तर (प्लास्टर ) एवम् तेल का वाह्य उपयोग होता है । अत्यधिक मात्रा में यह मदकारी विष है तथा इससे उन्मशता, मूर्छा एवं मृत्यु उपस्थित होती है । और इसकी क्रिया अति शीघ्र होती है। .. ___ सत्व निर्माण-विधि-खुरासानी अजवायन का पौधा जब फूलने फलने लगे, तब मय पत्तियों के उसकी छोटी छोटी शाखाचों को लेकर पानी से भली भाँति धोकर स्वरस निकाल लें। शुद्धता आदिका विशेष ध्यान रखना आवश्यक है । स्वरस को छानकर अग्नि पर पकाएँ, जब खोलने लगे और खौलते हुए १० मिनट हो जाएँ तथा स्वरस के ऊपर मैल के मांग से, जैसे कि खाँड की चाशनी करते समय प्रायः हुश्रा करते हैं, उठने लगें, तब स्वरसको उतार कर छामलें, और निथारने के लिए स्वरस को चीनी के प्यालों में भर कर १२ घंटे रक्खा रहने । तदनन्तर सावधानी से निथार कर फिल्टर करलें अर्थात् (फिल्टर पेपर ) में छान लें और फिर पकाएँ। जब गाढ़ा होजाय अर्थात् अवलेह समान गोली बनाने लायक होजाय तो उतार लें। मात्रा३-३ या ४-४ रत्ती। पारर्स कयवानी तरल सत्व-पूर्वोक विधि से स्वरस को फिल्टर करके १० प्रतिशत के हिसाब से हली [ रेक्टीफाइड स्पिरिट ] मिला कर सद्यः निर्गत स्वरस का गर्म पानी मिलाकर वजन पूरा कर शीशी में भरकर उपयोग करें । मात्रा-३० बुंद से ६० खुद तक २॥२॥ तो० जल में मिलाकर सेवन कराएं। पारसीक यमानी के गुण धर्म व प्रयोग आयुर्वेदिक मतानुसारखुरासानी अजवायन के गुण अजवायन के समान ही हैं, परन्तु विशेष करके यह पाचक, रुचिकारक, ग्राहक, मादक तथा भारी है । भा०॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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