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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकोल मध्यवर्ती, सूक्ष्म, सुगन्ध युक, पीताभायुक, श्वेत साधारणतः कदीय, बृन्त युक्र । पुष्पवृन्त-लघु, सामान्य । पुष्प-वाह-कोष (Calys) ऊर्ध्वगामेय, दंष्ट्राकार, लघु, स्थायी । पुष्पाभ्यन्तर-कोष ( Corolla ) वहुदलीय । पुष्पदल-अर्थात् पंखड़ियां ६ से १०, अण्डाकार, न्यूनाधिक उलटी हुई। परागकेशर-पुष्पदल से द्विगुण । परागतन्तु का निम्न भाग लोमरा । पराग कोष-अण्डाकार । गर्भकेशर-सामान्यतः परागतन्तु से अधिक लम्बा होता है। फल-जगभग छोटे रीडा अथवा जंगली बेर के बराबर, गोलाकार चिकना, झुका हुआ, अपक्क दशा में नीलाहट लिए और कडु वा तथा पकने पर रक वर्णयुक्त (इन पर स्याही झलकती है) जिसके शिरे पर -पुष्प-वाह्य कोष लगा होता है, एक बीज युक्त सूक्ष्मतः ग्राह्य तथा मधुर स्वाद युक्र, गदराहट की हालत में स्वादुम्ल होता है। बोज-गोलाकार ऊपर नीचे कुछ चपटा कोर और धूसर वर्ण मय होता है । इसकी जड़ वजनी, लकड़ो मजबूत हलकी पीलापन लिए हुए, बीच का हिस्सा वादामी रंग का होता है । जिससे सुगन्धि श्राती है। परीक्षा-इसे तथा छाल को परलोराइड आन श्रायन घोल का स्पर्श कराने से ये मटमैले हरितवर्ण में परिवर्तित होजाते हैं । इसकी छाल आध इंच तक मोटी, खाकी रंग की जिसके ऊपर छोटे २ कांटे से मालूम होते हैं । स्वादतिक और गन्ध अधिकतर मतली कारक ( उस्नेश जनक ) होती है। नोट-देशी वैद्य तथा औषध विक्रेता सफेद तथा काले नाम से इसके दो भेद बतलाते हैं। इनमें श्वेत प्रकार वही है जिसका ऊपर वर्णन किया गया है। परन्तु डाक्टर मादनशरीफ महोदय के कथनानुसार काला उसका भेद नहीं, जैसा कि सर्व साधारण का विचार है, वरन् यह उसी की एक निकटस्थ जाति अर्थात् एलेञ्जियम हेक्सापेटेलम् Alangium Hexape talum of Lanlarek है । वे इसे अकोल का काला भेद इस कारण बतलाते हैं कि यह उससे रंग रूप में बहुत कुछ समानता रखता है। उसके फूल का रंग बैगनी और छाल गम्भीर धूसर वर्ण की होती है। इसकी छाल परिवर्तक तथा विषघ्न प्रभाव में किसी-किसी स्थान में उत्तम ख़याल की जाती है और इसमें कभी कभी वान्ति कारक गुण होने का निश्चय किया जाता है। खो--कालाअकोला । प्रयोगांश-मूल, मूलत्वचा, बीज, फल, पत्र, पुष्प और तैल । रसायनिक संगठन-इस की जड़ में एक अत्यन्त तिक, रवा रहित अङ्कोटीन या एलेन्जीन (Alangin ) नामक क्षारीय सत्व वर्तमान होता है जो हलाहल (Alcohol ), ईथर क्रौरोफ़ार्म और एसेटिक ईथर में तो विलेय होता है परन्तु जल में अविलेय । गुणधर्म व प्रयोग-आयुर्वेदिक मतानुसारअकोल चरपरा, तीक्ष्ण, स्निग्ध, उष्ण, कषैला, हलका तथा रेचक है और कृमि, शूल, श्राम, सूजन श्लेष्मा (कहीं कहीं 'ग्रह' पाउ है) और विष नाशक है । भा० मद. २०१। विसर्प, कफ, पित्त, रक्र, मूसा तथा सर्पविष को दूर करता है । भा० ढेरा-कसैला, कडुवा, पारे को शुद्ध करने वाला, हलका, चरपरा, किञ्चित् सर (दस्तावर), स्निग्ध, तीक्ष्ण, गरम और रूक्ष है। (नि. रा.) विसर्प, कफ, पित्त, रुधिर-विकार, तथा सांप और चूहे का विष दूर करता है। अकोल का फल-शीतल,स्वादिष्ट, कफनाशक, पुष्टि कारक, भारी, बलकारक, रेचक है और वात, पित्त, दाह, क्षय और रुधिर विकार को नाश करता है मद० व. १ भा०। विप, लूना (मकड़ो) श्रादि दोष नाशक और वात कफ नाशक तथा शुद्धि करने वाला है। रा०नि०व० है । च० द०० सा० चि०। अङ्कोल का रस -वान्ति जनक है तथा विष. विकार, कफ, वात-शूल, कृमि, सूजन, ग्रहपीड़ा, श्रामपित्त, रुधिर विकार, विसर्प, कुत्ते का विष मूसे का विष, विलाव का विष, कटिशूल, अतिसार और पिशाच पोड़ा को दूर करने काला है। (वृ०नि० २०) For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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