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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टाङ्गहृदये। जो कुछ व्याख्यान कियाजायगा उस सबमें दीर्घजीवनकी अभिलाषा करनेवालोंको आयुआयुको स्थिर करने की इच्छा करने वालोंके वैदिक शास्त्रोंके उपदेशों पर अत्यन्त आदर रखलिये हितकारी उपायोंका वर्णन कियाजायगा | ना उचितहै अर्थात् उसमें कहेहुए उपदेशों ( ३ ) अथ शब्द मंगलसूचकहै, कहाभी है को अच्छी तरह समझकर उनके अनुसार व्यव" ओंकारश्चाथशब्दश्चद्वावेतौ ब्रह्मणःपुरा । हार करनेसे आयु बढतीहे और आयुके बढने गण्डौ भित्वाविनिर्यातौ तेनेमोमंगलौ स्मृतौ " से धर्मअर्थ और ( तादाविक तथा आत्यन्तिओंकार और अथ ये दोनों शब्द प्रथमही ब- क ) दोनों मुखोंकी प्राप्ति होतीहै । मके कंठको भेदकर निकलेहैं इसलिये ये दोनों अब आयुर्वेदका गौरव प्रतिपादनके लिये मंगलसूचक हैं । ग्रन्थकारने अपने ग्रन्थके आगमशुद्धि दिखाते हैं :--- प्रारंभमें अथ शब्दका प्रयोग इस ग्रन्थके पढ़ने आयुर्वेद की उत्पत्ति । पढ़ानेवालोंकी मंगलकामनाके लिये कियाहै। ब्रह्मास्मृत्वायुषो वेदं प्रजापतिमजिग्रहत्। ___ आत्रेय धन्वन्तरि आदि महर्षियोंका नाम सोश्विनौ तौ सहवाक्षं सोत्रिपुत्रादिकालेनेसे ग्रन्थकारका यह प्रयोजनहै कि जो कुछ न्मुनीन् ॥ ३ ॥ तेऽभिवेशादिकांस्ततुधृथ इस ग्रन्थमें कहागयाहै वह आगमत्रागाण्यसे तंत्राणितेनिरे। कहागयाहै, लोक पर अनुकंपा करके जो कुछ । अर्थ-प्रथमही ब्रह्माने आयुर्वेदका स्मरण उक्त महर्षियोंने कहाहै उसीका क्रममात्र बद- करके दक्षप्रजापतिको समझाया, दक्षने अश्विलकर इसग्रन्थमें वर्णन कियाहै अपनी ओर नीकुमारोंको, अश्विन कुमारने इन्द्रको, इन्द्रने अएक मात्राभी न्यूनाधिक नहीं की है और न त्रिकेपुत्रधन्वन्तरि, निमि, काश्यपादिको पढाया कोई बात कपोलकल्पित है। इन अत्रिपुत्रोंने अग्निवेशादि छ:मुनियोंको पदाया ग्रन्थकारने उक्त वास्यमें प्रथम मंगलाच- और इन छ: मुनियों ने अपने अपने नामस अग्निरण करके प्रस्तुत अध्यायका विषय और प्र- वेश, भेड, जातूनार्ण पराशर, हारीत और स्तुत विषयमें आत्रेयादि ऋषियोंका प्रमाण ये क्षारपाणि नामकी जुदी जुदी संहिता रची। तीन बातें दिखाइहैं । इन तीन बातोंको पुरस्सर | इस ग्रन्थके बनानेका कारण । करके ग्रन्थके अधिकारियोंका ध्यान आकर्षित तेभ्योऽतिविप्रकीर्णेभ्यः प्रायः सारतकरनेके लिये कहताहै । रोच्चयः ॥ ४॥ क्रियतेऽष्टांगहृदयनाति ___ आयुर्वेद जाननेका कारण । संक्षेपविस्तरम् । आयुः कामयमानेनधर्मार्थसुखसाधनम् । अर्थ-ऊपर कहेहुए बड़े २ ग्रन्थोंके विआयुर्वेदोपदेशेषु विधेयः परमादरः ॥२॥ द्यमानहोते इस प्रन्थके बनानेका यह कारण है। ___ अर्थ-धर्मअर्थ और सुख इन तीनकी प्राप्ति । कि उक्त ग्रन्थोंका विषय बहुत भिन्न२ है एक आयुसे होतीहै । इस आयुकी इच्छा करनेवाले | बात एक ग्रन्थमें लिखीहै तो दूसरी बात दूसरे अर्थात् धर्म अर्थ और सुखकी प्राप्तिके निमित्त । ग्रन्थमें लिखीहै जैसे शल्यचिकित्सा सुश्रुतमें For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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