SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 963
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ( ८६६ ) www.kobatirth.org अष्टांगहृदय क्षोभादशुद्धकोष्ठत्वात्साहित्याद तिकर्शनात् मयरानादिवास्वापायवायाद्वात्रि जागरात् मिथ्योपचाराश्च नैव साध्योऽपिरोहति अर्थ- स्नायु के दसे, कटने से, घाव के गहरेपन से, कीड़ों के द्वारा खाये जाने से, हड्डियों के टूटने से, घाव में कांटा होने से, विषजुष्टता से, असावधानी से, पट्टी अच्छी न बांधने से, अत्यन्त चिकनाई वा रूखापनसे, रोमों के घर्षणसे, क्षोभसे, कोष्ठ के शुद्ध न होने से, अत्यन्त पेट भरकर खाने से, उपवासादि द्वारा अत्यन्त कृशता होनेसे, मद्यपानसे, दिनमें सोनेसे, मैथुनसे, रातमें जमनेसे, तथा मिथ्या उपचार से साध्यव्रण भी असाध्य होजाते हैं । घाव में शोधन । अथाऽशोफावस्थायां यथा सन्नांशाधनम् योज्यं शोफो हि शुद्धानां व्रणश्चाशु प्रशाम्यति । अर्थ - जो घावमें सूजन हो तो पासवाले मार्ग से शोधन करना चाहिये, अर्थात् जो घाव ऊपर की देहमें हो तो घमन, और नीचे देह में हो तो विरेचन देना चाहिये । शोधन करनेसे सूजन और घाव दोनों शीघ्र शांत होजाते हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सृजन और घावमें रक्तहरण | शोफे प्रणे च कठिने विवर्णे वेदनान्विते ॥ विषयुक्ते विशेषेण जलौकाद्यैर्हरेदसृक् । दुष्टास्नेऽपगते सद्यः शोफरागरुजां शमः ॥ घाव भरने के लक्षण | अर्थ- सूजन, और घाव में यदि कठोरता, विणता, वेदना और विषयुक्तता हो तो जोक आदि द्वारा विशेषरूप से रक्तको निकाले, क्योंकि बिगडे हुए रुधिर के निकल जाने कपोतवर्णप्रतिमा यस्यांता: क्लेदवर्जिताः । पर सूजन, ललाई और वेदना शीघ्र शांत स्थिराश्चिपिटिकावं तो रोहतीति तमादिशेत् | होजाते हैं । अर्थ - जिनघावों का वर्ण कबूतर के बर्णके सदृश होजाता है, जिनमें से छेदता जाती रहती है, जो स्थिर, पिटकाओं से युक्त होते हैं, ऐसे घाव भरने की दशा में होते हैं । श्र० १५ शोफावस्था में शीतोपचार | कुर्याच्छीतोपचार तु शोफावस्वस्य संततम् दोषाग्निरग्निवत्तेन प्रयाति सहसा शमम् । अर्थ- घावमें सूजन हो तो शीतोपचार करना चाहिये, क्योंकि जैसे शीतल द्रव्य के संयोग से अग्नि शीघ्र बुझजाती है, वैसे ही शीतोपचार से दोषाग्नि शांत होजाती है। । स्रावके पछि लेपादि । हृते हृते च रुधिरे सुशीतैः स्पर्शवीर्ययोः । सुश्लक्ष्णैस्तदहः पिप्रैः क्षीरेक्षुस्वर सद्रवैः ॥ शतधौत घृतोपेतैर्मुहुरन्यैरशोषिभिः । प्रतिलोम हितो लेपः सेकाभ्यंगाश्च तत्कृताः अर्थ - रुधिर के बारबार निकलने पर शीत स्पर्श और शीतवीर्यवाले द्रव्योंको महीन पीसकर उसी दिन लेप करे, उस लेपको बासी करके न लगावे । तथा दूध वा ईखका रस, वा सौवार धुला हुआ घी वा शोषणकारी द्रव्यों का लेप, सेक और अभ्यंग द्वारा प्रतिलोम रीति से प्रयोग करे | For Private And Personal Use Only शोफनाशक प्रदेह | म्यग्रोधो हुंवराश्वत्थप्लक्षवेत् सबल्कलैः । प्रदेहो भूरिसर्पिर्भिः शोफनिर्वापणः परम् ॥
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy