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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८४२) अष्टांगहृदय । अ० २२ एजो रुजं जयत्याशु वस्त्रस्थं दशने धृतम् ॥ | मोद्धरेचोसरं दंतं बहूपद्रवकृद्धि सः ॥ अर्थ--हींग, कायफल,हीराकसीस,सज्जी, | एषामप्युद्धृतैः स्निग्धःस्वादुः शीतः क्रमो कूठ और बायबिडंग । इनके चूर्णको कपडे हितः। की पोटली में बांधकर दांतों में दावने से भी । अर्थ-कृश, दुर्बल,वृद्ध और वातपीडित कीडों का दर्द जाता रहता है । रोगियों का दांत न उखाडना चाहिये। ऊपर - गंडूष विधि । वाले दांतको भी न उखाडे क्योंकि उसके गंडूषं धारयेत्तैलमेभिरेव च साधितम्। उखाडने से बहुत से उपद्रव उपस्थित हो काथै; युक्तमेरंडदिव्याघ्रीभूकदंवजैः॥ जाते हैं । दांत उखाडने की आवश्यकताही अर्थ--उपर कहे हुए हींग कायफल | हो तो दांत उखाडने के पीछे स्निग्ध मधुर भादि द्रव्यों के साथ तेल पकाकर इस तेल | और शीतल उपचार करना चाहिये । को अथवा अरंड, दोनों कटरी और भूकं- .. शीताद का उपाय ।। दंब इनके काढेमें तेल मिलाकर गंडूष धा-विनाविताने शीतादे सक्षौद्रैःप्रतिसारणम् रण करना चाहिये ॥ मुस्तार्जुनत्वत्रिफलाफलिनीताय नागरैः। ___ अन्य उपाय। तत्काथः कवलो नस्य तैलं मधुरसाधितम् । क्रियायोगै हविधरित्यशांतरजभशमा अर्थ-शीतादरोग में रक्तमोक्षण करके दृढमप्युद्धरेदंतं पूर्व मूलाद्विमोक्षितम् ॥ मोथा,अर्जुनकी छाल,त्रिफला,प्रियंगु,रसौत, संदंशकेन लघुना दंतनिर्घातनेन या।। सोंठ, और इन द्रव्यों के द्वारा प्रतिसारण तैलं सयष्टयाइवरजो गंडूषो मधुना ततः॥ फरे । तथा इन्हीं के काढे का कवल और अर्थ-इस प्रकार से अनेक उपायों के मधुरगणोक्त द्रव्यों से सिद्ध किये हुए तेल करने पर भी यदि पीडा शांत न हो तो का नस्य प्रयोग करे। दृढ दांतको भी जो जडसे हटगया हो छोटी उपकु.श का उपाय। संडासी वा दांत उखाडने के शस्त्रसे उखा- | दंतमांसान्युपकुशे स्विन्नान्युप्णांबुधारणः । डकर मुलहटी मिले हुए तेल वा शहत का मंडलाण शाकादिपर्वा वहुशो लिखेत् ॥ गंडूष धारण करे। ततश्च प्रतिसार्याणि घृतमंडमधुश्रुतैः। नस्य प्रयोग । लाक्षाप्रियंगुपत्तंगलवणोत्तमगैरिकैः॥ ततो विदारियष्टयाहव शृंगाटककसेरुभिः। सकुष्ठद्युठीमरिचयष्टीमधुरसाजनैः। तैलं दशगुणक्षीरं सिद्धं युंजात नावनम् ॥ । सुखोष्णो घृतमंडोऽनु तैलं वाकवल ग्रहः ॥ . अर्थ - तदनंतर भूमिकूष्मांड, मुलहटी, | घृतं च मधुरैः सिद्धं हितं कवलनस्ययोः । सिंघाडा, और कसेरू इनके कल्क तथा ___ अर्थ-उपकुशरोग में गरमजल का गंडूष दस गुने दूध के साथ तेल पकाकर नस्यद्वारा धारण करके दांतों के मांस को स्वेदित करे । फिर मंडलाय शस्त्रसे वा शाकादि प्रयोग करे । दांत उखाडने का निषध । पत्रों से बार बार खुरचै तदनंतर लाख, कृशदुर्वलद्धानां वातार्तानां च नोद्धरत् । । प्रियंगु, पतंग, सेंधानमक, गेरू, कुठ, सोंठ, For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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