SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 435
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टांगहृदय । अ०६. पूर्व और उत्तरकी दिशाओं में गमन करता । वैद्य और औषधमें श्रद्धावान् हों, रोगी का है, और अगम्य स्थानों से लौटकर आजा. कुटुंब अनुकूल हो, बहुत द्रव्य का संग्रह ता है, अथवा अगम्या स्त्री से गमन करता हो, सत्व लक्षण का संयोग हो, वैद्य और है, मरता है, संकटों से बचता है, देवता | ब्राह्मण में भक्ति हो और चिकित्सा में उत्साह और पितृगणों से अभिनंदित होता है, जो | हो । इन लक्षणों के होने पर समझना चारोता है, वा गिरकर उठ बैठता है, वा | हिये कि रोगी को आराम होजायगा । शत्रुओं का मर्दन करता है, ऐसे स्वप्नोंका | शारीरस्थान की निरुक्ति । देखनेवाला आयु, आरोग्य और बहुतसी इत्यत्र जन्ममरणं यतः सम्यगुदाहृतम् । धनसंपत्तियों का भोग करता है। शरीरस्य ततः स्थानं शारीरमिदमुच्यते ,,, आरोग्य के लक्षण । । इतिश्री वैधपतिसिंह गुप्तमूनो;मङ्गलाचारसंपनःपरिवारस्तथातुरः। । ग्भटस्यकृतावष्टांगहृदयसंहितायां श्रद्दधानोऽनुकूलश्च प्रभूतद्व्यसंग्रहः ७२ ॥ शारीरस्थानसमाप्तमध्यायश्चषष्ठः६ सत्वलक्षणसंयोगो भक्तिवैद्यद्विजातिषु। । अर्थ-इस शारीरस्थान में मनुष्य के जन्म चिकित्सायामनिर्वेदस्तदारोग्यस्य लक्षणम् | : अर्थ-मंगला चार * से युक्त रोगीका | मरण का विस्तारपूर्वक वर्णन लिखा गयाहै, परिवार और रोगी होवै, तथा रोगी और इसीलिये इस स्थानका नाम शारीरस्थान है । उसके कुटुंबी सद्वृत्त का अनुष्ठान करें, इतिश्री वाग्भटविरचितायां अष्टांगहृदय संहितायां मथुरानिवासी श्रीकृष्णलाल . + प्रशस्ताचरणं नित्वमप्रशस्तविसर्ज कृत भाषाटीकायां द्वितीयं शारीरनम् । एतद्धि मंगलं प्रोक्तमृषिभिस्तत्व दर्शिभिः। स्थानं षष्ठोऽध्यायश्च समाप्तः । शारीरस्थानं समाप्तम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy