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अ० ६
शारीरस्थान भाषाटीकासमेत ।
कोलादिकोंका कीर्तनमें शुभत्व ।। आरोग्यता के लक्षण । प्रशस्ताः कीर्तने कोलगोधाहिशशजाहकाः। दध्यक्षतेक्षुनिष्पावप्रियंगुमधुसर्पिषाम्। नदर्शने नबिरुते बानराबतोऽन्यथा ।२६। | यावकांजनभंगारघंटादीपसरोरुहाम् । ३० । ___ अर्थ-शूकर, गोधा, सर्प, चास और डा- दूर्वार्द्रमत्स्यमांसानां लाजानां फलभक्षयोः । क इनका नाम लेना शुभ है परन्तु देखना
रत्नेभपूर्णकुंभानां कन्यानां स्यदनत्य च ॥३१॥ वा बोलना अशुभ है बंदर और रीछ इनका
नरस्य वर्धमानस्य देवतानां नृपस्य च।
शुक्लानां सुमनोबालचामरांबरबाजिनाम् । देखना वा बोलना शुभ है और नाम लेना
शंखसाधुद्विजोष्णीषतोरणस्वस्तिकस्य च । अशुभ है।
भूमेः समुधृतायाश्च वन्हेः प्रज्वलितस्य च। ...इन्द्रधनुषका शुभाशुभत्व ॥
मनोज्ञस्यानपानस्य पूर्णरय शकटस्य च । धनुरेंद्र च लालाटमशुभं शुभमन्यतः।।
नृभिर्धन्याः सबत्साया बडवायाः स्त्रिया अपि
जीवंजीबकसारंगस रसप्रियाबादिनाम् । अर्थ-इन्द्रधनुष सन्मुख हो तो अशुभ |
रुचकादसिद्धार्थरोधनानां च दर्शनम् । है । पीठ वा दाहें वांरें हो तो शुभ है ॥ | गन्धः सुसुरभिर्वर्णः सुशुक्लो मधुरो रसः।
अग्निपूर्ण पात्रोंका अशुभत्व ॥ गोपतेरनुक्लस्य स्वरस्तद्वद्गवामपि ॥ ३६॥ अग्निपूर्णानि पात्राणि भिन्नानि बिशिखानिच | मृगपक्षिनराणां च शोभिनां शोभना गिरः । . अर्थ-अग्निसे भरे हुए, फूटेहुए वा खा- |
छत्रध्वजपताकानामुत्क्षेपणमाभष्टुतिः३०॥
भेरीमृदंगशंखानांशब्दाःपुण्याहनिःस्वमाः। ली पात्र अशुभ होते हैं।
वेदाध्ययनशब्दाश्च सुखोवायुःप्रदक्षिणः॥ - गृहप्रवेशमें शुभाशुभ निमित्त ।
पथिवेश्मप्रवेशे च विद्यादारोग्यलक्षणम् । दध्यक्षतादि निर्गच्छम् वक्ष्यमाणं च मंगलम् ।
___ अर्थ-दही, अक्षत ( अखंड चांवल जौ बैद्यो मरिष्यतां वेश्म प्रविशन्नेव पश्यति ।
आदि ), ईख, निष्पाव ( चौला ), प्रियंगु, अर्थ-जिस समय वैद्य रोगीके घरमें प्र. वेश करे उसी समय रोगीके घरसे दही,
मधु,घृत,अलक्तक,अंजनगार (कनकालक,
स्वर्णपात्र ), घंटा,दीपक, कमल, दूर्वा (दूव) अक्षत, इक्षु निष्पावादि मंगल द्रव्य निकलें तो
मछली का गीला मांस, धानकी खील, फल उस रोगीको आसन्न मृत्यु समझना चाहिये।
मोदकादि भक्ष्यद्रव्य, पद्मरागादि मणि,हाथी, वैद्यको उपदेश ।
पूर्ण कलश, कन्या, रथ, शूरवरिता और दूताद्यसाधु दृष्ट्येवं त्यजेदातमतोऽन्यथा। करुणाशुद्धसंतानो यत्नतः समुपाचरेत् । दान शीलतादि गुणविशिष्ट प्रतिष्ठित मनुष्य,
अर्थ--इस प्रकार ऊपर कहे हुए दूतादि देवता, राजा, चमेली आदिके सफेद फूल, के अशुभ लक्षण दिखाई दें तो वैद्यको रोगी
सफेद चमर, सफेद वस्तु, सफेद घोडा, की चिकित्सा न करनी चाहिये । किन्तु उक्त शंख, साधु, ब्राह्मण, पगडी, तोरण, स्वलक्षणों से अन्यथा अर्थात् शुभ लक्षण दिखा | स्तिक ( साथिया ) समुधृतभूमि, प्रज्वलित ई दें तो करुणाई हृदय होकर यत्नपूर्वक रो | अग्नि, हृदयहारी अन्नपान, आदमियों से गी की चिकित्सा करना चाहिये । | भरीहुई गाढी, सवत्सा गौ, सवत्सा घोडी,
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