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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म०१ सूत्रस्थान भाषाटोकासमेत । (६१) - - ___ अर्थ- शीर्णवन्त ( खरबूज ) ईषत् । सारकहैं ये प्रायः गोला सा बनकर पचतेहैं क्षारयुक्त, पित्तजनक, कफवातनाशक, रुचि- इनको उबालकर पानी निकाल डालै फिर वर्द्धक, अग्निसंदीपन, हृदयको हितकारी | बहुतसा घी तेल डालकर छौंकले तो बहुत और हलको होताहै। तथा अष्ठीला और | दोषकारक नहीं रहते । अफरा को दूर करताहै । चिल्ली शाक के गुण । कमलनालका गुण । लघुपत्रातुयाचिल्लीसावास्तुकसमामता। । अर्थ-छोटे पत्तेवाली चिल्लीके गुण यथुए मृणालविशशालूककुमुदोत्पलकंदकम् । मंदीमाषककेलूटशंगाटककशेरुकम् ॥११॥ के समान होते हैं। चादनकलोड्यंचरूसंग्राहिहिमगुरु । जयन्ती और अरणी । . ___ अर्थ - कमलनाल दो प्रकार का होताहै | तर्कारीवरणस्वादुसतिक्तंकफवातजित् ९६ अर्थ-जयन्ती और वरणी ये दोनों मधुर एक पतला, दूसरा मोटा, पतले को मृणाल और मोटेको विश कहते हैं । मृणाल, बीस, कुछ कडवा, कफ तथा वायु को दूर करने वाले हैं। कमलकन्द, कमोदनी, लालकमल का कंद, साठी आदि के गुण । नंदी, माषक, केलूट, सिंहाडा, कसेरू, वर्षाभ्वौकालशाकंचसक्षारंकटुतिक्तकम् । क्रौचादन, कमलकाकडी, ये रूक्ष, प्राही, दीपनंभेदनंहतिगरशोफकफानिलान् ॥१७॥ हिम और गुरु है। अर्थ दोनों प्रकार की साठी और कालकलंवादि। शाक ईषत् क्षारयुक्त, कटु, तिक्त,दीपनकर्ता फलंबनालिकामार्षकुटिजरकुतुंबकम् ॥९२॥ भेदी है तथा विषरोग, सूजन, कफ और चिल्लीलवाकलेणिाकाकुरूटकगेवधुकम् ।। बादी को दूर करते हैं । जीवंतझुश्वेडगजयवशाकसुवर्चलम् ॥९३॥ करंजादि के गुण । आलुकानिचसर्वाणि तथासूप्यानलक्ष्मणम् । दीपनाकफवातघ्नाश्चिरविल्वांकुराःसराः। स्वादुरूक्षसलवणं वातश्लेष्मकरंगुरु ॥ ९४ ॥ अर्थ-कजे के अंकुर अग्निसंदीपन, कफ शीतलंसृष्टविण्मूत्रप्रायोविष्टभ्यजीयति । । ... वात नाशक, और दस्तावर होते है। .. स्विन्ननिष्पाडितरसंस्नेहाढ्यनातिदोषलम् ९५ शतावरी के अंकुर ।। अर्थ- कदंबपुष्प, कल्मांशाक, मारिस शतावर्यकुरास्तिक्तावृष्यादोषत्रयापहाः ॥९८ यवासशाक, घलघसियाशाक, गुग्गुल, लूनी । गुग्गुल, लूना अर्थ-शतावरी के अंकुर तिक्त पौष्टिक पीतकोरटा, गवेधुक, ( तृण धान्य ), जी- और तीनों दोषों को दर करनेवाले हैं । वंत, झुंझू, प्रपुन्नाट, यवशाक, सुवर्चला, | बांस के अंकुर । सब प्रकारके आलू, मूंग उरदके पत्ते, मु- | लक्षाबंशकरीरस्तुविदाहीबातपित्तलः। लहटी, ये सब मधुर, रूक्ष, कुछ नमकीन, अर्थ--बांसके अंकुर रूक्ष, विदाही, और वातकफकारक, भारी, शीतल, मलमूत्र निः । वातात्तिकारक होते हैं । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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