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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ०६ सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । भारापन हो जाता है । द्रव्यद्वारा यथाः- प्रत्येक तीन मांशे डालकर पान करै । यह रक्तशाल्यादि का भात हलका और यावका- पित्त तथा कफनाशक है । इसी तरह दिका भारी होता है । क्रियाद्वारा यथाः- भिन्न २ रोगोंमें भिन्न भिन्न रीति से पकाया शूलपर भुना हुआ मांस हलका है और जाता है। उवाला हुआ मांस भारी है । योगद्वाग, | कुलथी के यूष के गुण । यथाः-चित्रकादि औषधों के साथ में सि- मोतानुलोमी कौलत्थोगुल्मतूनिप्रतूनिजित् । द्ध किया हुआ भात हलका है, इससे अ- अर्थ-कुलथी का यूष वायुको अनुलोन्यथा भारी होता है । परिमाणद्वारा, यथा:- | मन करता है, यह गुल्मरोग तथा तूनि प्रभारीअन्न थोड़ा खाने से हलका होता है। तूनि रोगों को दूर करता है । और पेयादिलघु पदार्थ अधिक सेवन किये तिल के पदार्थों का गुण। आने पर भारी होते हैं। तिलपिण्याकविकृतिःशुष्कशाकविरुढकम्३२ ____मांसरस का गुण । शांडाकीवटकंदृग्नदोषलंग्लपनं गुरु । बृंहण प्रीणनोवृष्यश्चक्षुष्योबणहारसः।। अर्थ-तिल के पदार्थ, पिण्याक के बने अर्थ-मांसरस पुष्टिकर्ता, भानंददायक, पदार्थ, सूखे शाक, अंकुरित अन्न शांडाकी वीर्योत्पादक, नेत्रोंको हितकर, और व्रणना में भिगाये हुए बड़े ये सब नेत्रों को आहत । शक होता है । मांसरस कृत और अकृत दोषकारक और ग्लानि उत्पन्न करने दो प्रकार का होता है, स्नेह, थुठी आदि | वाले हैं। द्वारा सिद्ध किया हुआ कृत और इससे वि शिखंड के गुण । परीत अकृत होता है। रसालाहणीवृष्यास्निग्धावल्यारुचिप्रदा ३३ ___ मूंग के यूष के गुण । अर्थ--कालीमिरच, शर्करा आदि डालकर मौद्रस्तुपथ्य सशुद्धव्रणकंठाक्षिरोगिणाम्३१ । दही से बनाई हुई को रसाला, शिखंढ वा ___ अर्थ-मूंगका यूष पथ्य है, दोषों से लोक में सिखरन कहते हैं यह पौष्टिक, शुद्ध हुए को, व्रणरोगीको, कंठरोगीको,और वीर्यजनक, स्निग्ध, और रुचिवर्द्धक है ।। , नेत्ररोगी को बहुत हितकारी है । मूंगका पानक के गुण । यूष भी संस्कृत और असंस्कृत दो प्रकार | श्रमक्षुत्तृटक्लमहरपानकंप्रीणनंगुरु । का होता है । संस्कृत यथाः--आठ तोले विष्टंभिमूत्रलहायथाद्रव्यगुणंचतत् ॥ ३४ - मंग को सोलह गुने पानी में उबालकर अर्थ- पानक श्रम, भूख, तृषा और चौथाई शेष रहजानेपर कपडे में छानले । थकावट को दूर करताहै, मनको प्रसन्न । और इस पानी में चार तोले दाडिम का रस, करनेवाला और भारी होताहै, मलवर्द्धक - सेंधानमक, सोंठ, धनियां पीपल और जीरा । मुत्रनिःसारक और हृदयको हितकारकहै For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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