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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९३४) अष्टाङ्गहृदयेअपक्कं पिटिकामाहुः पाकप्राप्तं भगन्दरम् ॥ गूढमूलां ससंरम्भा रुगाढ्यां रूढकोपिनीम् ॥६॥ भगन्दरकरी विद्यात्पिटिकां न त्वतोऽन्यथा॥ उस नहीं पकेको तो पिटिका कहैहैं और पकेको भगंदर और गूढ जडवाली रुकी हुई दरदवाली कोपवाली ॥६॥ फुनसी भगंदरकरनेवाली जाननी और नहीं ॥ तत्र श्यावारुणा तोदभेदस्फुरणरुकरी ॥७॥ पिटिका मारुतात्पित्तादृष्ट्रग्रीवावदुच्छ्रिता ॥ रागिणी तनुरुष्माढ्या ज्वरधूमायनान्विता ॥८॥ तिन्होंमें पीली और लाल फुनसी पीडा भेदन चीसको पैदा करती है।।७॥वात और पित्तके भगंदरमें ऊंटकी ग्रीवा समान ऊंची लाल और छोटी उष्णतासे युक्त ज्वर धूवांसावाली फुनसी होजातीहै ॥८॥ स्थिरा स्निग्धा महामूला पाण्डुः कण्डूमती कफात् ॥ कफसे फैलीहुई चिकनी बडी जडवाली और खाजवाली फुनसी होतीहै ।। श्यावा ताम्रा सदाहोषा घोररुग्वातपित्तजा ॥९॥ और वातपित्तसे पीली और लाल अतिदाहवाली और बहुतपीडावाली फुनसी होजातीहै ॥९॥ पांडुरा किञ्चिदाश्यावा कृच्छ्रपाका कफानिलात् ॥ और कफवातसे पीली और कछुक लाल कष्टसे पकनेवाली फुनी होतीहै ।। पादाङ्गुष्ठसमा सर्वैर्दोषैर्नानाविधव्यथा ॥ १०॥ शूलारोचकतृड्दाहज्वरच्छर्दिरुपद्रुता ॥ और संपूर्ण दोषोंसे अनेक प्रकारकी पीडावाली और पैरके अंगुठेके समान होजातीहै ॥ १० ॥ और शूल अरुचि तृषा दाह ज्वर छर्दिसे फुनसी होके फूट जातीहै ।। व्रणतां यान्ति ताः पक्काः प्रमादात्तत्र वातजा ॥११॥ दीर्यतेऽणुमुखैश्छिद्रैः शतपोनकवत्क्रमात् ॥ अच्छं स्रवद्भिरास्रावमजस्रं फेनसंयुतम् ॥ १२॥ शतपोनकसंज्ञोऽयम्और वातसे उपजी पिटिका उपाय न करनेसे पकजातीहै ॥ ११ ॥ और शतपोनककी समान क्रमसे सूक्ष्म मुखोंवाले छिद्रोंसे स्वच्छ अथवा पतला जल झिरताहै और इस झिरनेसे झागभी आतेहैं ॥ १२॥ यह शतपोनकसंज्ञक भगंदर है ॥ उष्ट्रग्रीवस्तु पित्तजः॥ और उष्ट्रप्रीव पित्तसे उपजताहै ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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