SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 966
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।। (९०३ ) वायुसे स्फुटित और धूम्रवर्णवाले और रूखे और पानीके समान कांतिवाले बाल होजाय यह पलितरोग होताहै और दाहसे संयुक्त और पीली कांतिवाला पित्तज पलित रोग होताहै और कफसे चिकना और वृद्धिवाला ॥ ३० ॥ स्थूल सुंदर सफेद पलितरोग होताहै और सब दोषोंसे मिले हुये लक्षणोंवाला पलितरोग होताहै ।। शिरोरुजोद्भवं चान्यद्विवर्ण स्पर्शनासहम् ॥ ३१॥ और शिरकी पीडासे उपजा पलितरोग वर्णसे रहित और स्पर्शको नहीं सहसकनेवाला होताहै।॥३१॥ असाध्या सन्निपातेन खलतिः पलितानि च ॥ सन्निपातसे उपजा खलतीरोग और पलितरोग असाध्य है । शरीरपारणामोत्थान्यपेक्षन्ते रसायनम् ॥ ३२॥ और शरीरके बदलजानेसे उपजे पलितरोग रसायनकी अपेक्षा करतेहैं ॥ ३२ ।। इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीका यामुत्तरस्थाने त्रयोविंशोध्यायः ॥ २३ ॥ चतुर्विंशोऽध्यायः। अथातः शिरोरोगप्रतिषेधमध्यायं व्याख्यास्यामः। इसके अनंतर शिरोरोगप्रतिषेध नामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे। शिरोऽभितापेनिजले वातव्याधिविधिं चरेत् ॥ वातसे उपजे शिरोभितापमें वातव्याधिमें कही विधिको करें । घृताभ्यक्तशिरा रात्रौ पिबेदुष्णपयोनुपः ॥ १ ॥ माषान्मुद्गान्कुलत्थान्वा तद्वत्खादेघृतान्वितान् ॥तैलं तिलानां कल्कंवा क्षीरेण सह पाययेत्॥२॥पिण्डोपनाहस्वेदाश्च मांसधान्य कृता हिताः॥ वातघ्नदशमूलादिसिद्धक्षीरेण सेचनम्॥३॥स्निग्धं नस्यं तथा धूमःशिरःश्रवणतर्पणम् ॥ और रात्रिमें अभ्यक्त शिरवाला मनुष्य घृतका पान करके पीछे ।। १ ।। गरमदूधका अनुपानकरै और तैसेही तसे मिलेहुये उडद मूंग कुलथी इन्होंको खाके गरमदूधका अनुपान करै और तिलोंके तेलको अथवा कल्कको दूधके संग पान करावै ॥ २॥ मांस और अन्न करके कियेहुये पिंड स्वेद और उपनाह स्वेद करने योग्यहै और वातको नाशनेवाले दशमूल आदिमें सिद्धकिये दूध करके सेचना हितहै ।। ३ ॥ स्निग्ध नस्य स्निग्ध धूम शिरका और कानोंका तर्पण ये हितहैं ॥ वरणादौ गणे क्षुण्णे क्षीरमोदकं पचेत् ॥ ४॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy