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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८८४) अष्टाङ्गहृदयेछिन ओष्ठवाले रोगीके ओष्ठप्रांतोंको विशेषकरके लेखितकर पीछे रेशमीवस्त्रसे स्यूतकर फिर व्रणकी समान उपचारकरै ॥ यष्टीज्योतिष्मतीरोधश्रावणीसारिवोत्पलैः॥१॥ पटोल्या काकमाच्या च तैलमभ्यञ्जनं पचेत् ॥ __ मुलहटी मालकांगनी लोध गोरखमुंडी अनंतमूल नीले कमलसे ॥ १ ॥ और परवलसे तथा मकोहसे सिद्धकिये तेलकी मालिस करै ॥ नस्यं च तैलं वातघ्नमधुरस्कन्धसाधितम् ॥२॥ अथवा वात नाशक औषधोंके काथमें और मधुरवर्गके औषधोंके काथमें साधित किया तेल नस्यमें हितहै ॥ २॥ महास्नेहेन वातौष्ठे सिद्धेनाक्तः पिचुर्हितः ॥ देवधूपमधूच्छिष्टगुग्गुल्वमरदारुभिः॥३॥ यष्टयावचूर्णयुक्तेन तेनैव प्रतिसारणम् ॥ वातसे उपजे ओष्ठरोगमें सिद्धकिये महास्नेहकरके भिगोयाहुआ रूईका फोहा हितहै और सरलवृक्ष गोम गूगल देवदार इन्होंकरके ॥ ३ ॥ तथा मुलहटीके चूर्णसे युक्त किये महास्नेहस्ते प्रतिसारण करना हितहै ॥ नाड्योष्ठं स्वेदयेदुग्धसिद्धैरेरण्डपल्लवैः॥४॥ और दूधमें सिद्धकिये अरंडके पत्तोंसे नाडयोष्ठरोगको स्वेदित करै ॥ ४ ॥ खण्डोष्ठविहितं नस्यं तस्य मूर्ध्नि च तर्पणम् ॥ और छिनौष्ठरोगमें कहे नस्यको देवै और तिस रोगीके माथेपै तर्पण करावे ॥ पित्ताभिघातजावोष्ठौ जलौकाभिरुपाचरेत् ॥ ५॥ और पित्तसे तथा अभिवातसे उपजे ओष्ठोंको जोकोंसे उपाचरितकरै ।। ५ ।। रोधसर्जरसक्षौद्रमधुकैः प्रतिसारणम् ॥ लोध राल शहद मुलहटीसे प्रतिसारण करै । गुडूचीयष्टिपत्तङ्गसिद्धमभ्यञ्जने घृतम् ॥६॥ और गिलोय मुलहटी लालचंदनमें सिद्धकिया घृत मालिसमें हितहै ॥ ६ ॥ पित्तविद्रधिवच्चात्र क्रिया शोणितजेऽपि च ॥ रक्तसे उपजे ओष्ठरोगमें पित्तकी विद्रधीके समान क्रियाको करै । For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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