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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८६२) भष्टाङ्गहृदयेयारीनमक नागरमोथा ये सब समानभाग और शहद विजोरेका रस कांजी केलेका रस ये सब चार चार गुने ॥२८॥ तिन्होंकरके पकायाहुआ तेल पूरणसे अच्छीतरह कष्टसाध्य खाज क्लेद बधिरपना पूतिकर्ण शूल कृमिको जीतताहै ॥ २९ ॥ मुख और दांतोंके रोगोंमेंभी यह क्षारतेल श्रेष्ठहै । अथ सुप्ताविव स्यातां को रक्तं हरेत्ततः ॥३०॥ जो शयन करतेहुऐकी तरह अर्थात् शून्यरूप कर्ण होजावें तब रक्तको निकासे ॥ ३० ॥ सशोफक्लेदयोर्मन्दसुतेर्वमनमाचरेत्॥ शोजा और क्लेदसे संयुक्तहुए कानोंके होजानेमें मंद तिवाले मनुष्यको वमन कराना चाहिये ।। बाधियं वर्जयेद् बालवृद्धयोश्चिरजं च यत्॥३१॥ और बालक और वृद्धके शरीरमें और चिरकालके उपजे बधिरपनेको व ॥ ३१॥ प्रतिनाहे परिक्लेद्य स्नेहस्वेदैर्विशोधयेत् ॥ कर्णशोधनकेनानु कर्णौ तैलेन पूरयेत् ॥ ३२ ॥ ससुक्तसैन्धवमधोर्मातुलुङ्गरसस्य वा॥ शोधनाद्रूक्षतोत्पत्तौ घृतमण्डस्य पूरणम् ॥ ३३ ॥ प्रतिनाहरोगमें स्नेह और स्वेद करके परिक्वेदितकर कानको शोधनेवाले द्रव्यसे शोधितकरै और कानोंको तेलसे पूरितकरै ॥ ३२ ॥ परंतु कांजी सेंधानमक शहद अथषा बिजोरेका रस इन्होंकरके संयुक्त किये तेलोंसे कानको पूरित करै ॥ ३३ ॥ क्रमोऽयं मलपूर्णेऽपि कर्णे कण्ड्डां कफापहम् ॥ नस्यादितद्वच्छोफेऽपि कटूष्णैश्चात्र लेपनम् ॥३४॥ मलसे पूरितहुए कानमेंभी यही क्रम करना योग्यहै, और कानमें खाज उपजै तो कफको नाशनेवाला नस्यआदि हितहै, और शोजेमेंभी यही क्रम हितहै, परंतु कटु और गरम औषधोंकरके यहां लेप हितहै ॥ ३४ ॥ कर्णस्रावोदितं कुर्यात्सूतीककृमिकर्णयोः॥ पूरणं कटुतैलेन विशेषात्कृमिकर्णक ॥ ३५॥ पूतिकर्णमें और कृमिकर्णमें कर्णस्तावमें कहे औषधको करै, परंतु कृमिकर्णमें विशेष करके कडुवे तेलकरके पूरन करना हितहै ॥ ३५ ॥ वमिपूर्वा हिता कर्णविद्रधौ विद्रधिक्रिया ॥ और कर्णकी विद्रधीमें वमन कराके पीछे विद्रधीमें कही क्रिया करनी श्रेष्ठ है ।। पित्तोत्थकर्णशूलोक्तं कर्त्तव्यं क्षतविद्रधौ ॥ ३६॥ और क्षतकी विद्रधीमें पित्तके कर्णशूलमें कही औषध करनी हितहै ॥ ३६॥ अर्थोऽर्बुदेषु नासावदामा कर्णविदारिका ॥ कर्णविद्रधिवत्साध्या यथादोषोदयेन च ॥३७॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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