SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 901
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८३८) अष्टाङ्गहृदये चतुर्दशोऽध्यायः। अथातो लिङ्गनाशप्रतिषेधमध्यायं व्याख्यास्यामः। इसके अनंतर लिंगनाशप्रतिषेधनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे। विध्येत्सुजातं निष्प्रेक्षं लिङ्गनाशं कफोद्भवम् ॥ आवर्तक्यादिभिः षभिर्विवर्जितमुपद्रवैः ॥ १॥ अच्छीतरह उपजे और प्रेक्षासे वर्जित कफके लिंगनाशको वेधित करै, परंतु आवर्तकी आदि छः उपद्रवोंकरके वर्जित होवे तो ॥ १ ॥ सोऽसंजातो हि विषमो दधिमस्तुनिभस्तनुः॥ शलाकयाऽवकृष्टोऽपि पुनरूचं प्रपद्यते ॥२॥ करोति वेदनां तीवां दृष्टिश्च स्थगयेत्पुनः॥ श्लेष्मलैः पूर्यते चाशु सोऽन्यैः सोपद्रवश्चिरात् ॥ ३॥ जिससे असंजात और विषमरूप और दहीके मस्तुकी सदृश और सलाईसे अवकृष्टहुआ फिर ऊपरको प्रवृत्त होजावे ऐसा लिंगनाश ॥ २॥ तीव्र पीडाको करता है, और दृष्टिको आच्छादित करताहै, और कफवाले और उपद्रवोंसे सहित भोजनोंकरके शीघ्र पारित होजाताहै, और अन्य उपद्रवोंसे चिरकालसे पूरित होताहै ॥ ३॥ श्लैष्मिको लिङ्गनाशो हि सितत्वाच्छ्रेष्मणः सितः॥ तस्थान्यदोषाभिभवाद्भवत्यानीलता गदः॥४॥ कफका लिंगनाश कफके सफेदपनेसे सफेद होताहै, और तिस लिंगनाशके अन्यदोषकरके अभिभव होनेसे नीलतारूपरोग उपजताहै ॥ ४ ॥ तत्रावर्त्तचला दृष्टिरावर्तक्यरुणा सिता॥ शर्करापयोलेशनिचितेव घनाति च ॥५॥ तिन्होंमें जलके भवरकी तरह चलायमान और लाल तथा सफेद दृष्टि आवर्तकी होतीहै और शर्करा आकका दूध इन्होंके लेसकी समान अतिघनी होतीहै ।। ५ ॥ . राजीमतीनिचिता शालिशूकाभराजिभिः ॥ विषमच्छिन्नदग्धाभा सरुक्छिन्नांशुका स्मृता ॥ ६ ॥ शालिचावलों के शूकके सदृश कांतिवाली पंक्तियोंकरके राजीमती दृष्टी होतीहै और विषम तथा छिन दग्धकी समान कांतिवाली पीडासे संयुक्त छिन्नांशुका कही है ॥ ६ ॥ दृष्टिः कांस्यसमच्छाया चन्द्रकी चन्द्रिकाकृतिः॥ कांसीके तुल्य छायावाली और चंद्रिकाके समान कांतिवाली चंद्रकी दृष्टि होती है । For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy