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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८२६) अष्टाङ्गहृदयेऔर परवल नींब कुटकी दारुहलदी नेत्रवाला त्रिफला वांसा ॥६॥ धमांसा त्रायमाण पित्तपापडा ये सब चार चार तोले और आंवले ६४ तोले इन्होंका १०२४ तोले पानी में काथ बनावै ॥७॥ जब २५६ तोले शेषरहै तब ६४ तोले धतको पकावे, परंतु पिष्टकिये और दो दो तोले प्रमाणसे संयुक्त नागरमोथा चिरायता मुलहटी कुडा नेत्रवाला चंदन ॥ ८॥ पीपलीके संग पकायाहुआ घृत नासिका कान मुखके रोगोंको जीतताहै, और विद्रधि ज्वर दुष्टरोग विसर्प अपची कुष्ठरोगको नाशताहै ॥ ९ ॥ और विशेषसे फूला तिमिररोग नक्तांधपना गरमाई अंतर्दाह दाहको नाशताहै ।। त्रिफलाष्टपलं क्वाथ्यं पादशेषं जलाढके ॥१०॥ तेन तुल्यपयस्केनत्रिफलापलकल्कवान्।।अर्द्धप्रस्थो घृतात्सिद्धः सितयमाक्षिकेण वा ॥११॥ युक्तं पिबेत्तत्तिमिरी तद्युक्तं वा वरारसम् ॥ और ३२ तोलेभर त्रिफलाको २५६ तोले पानीमें पकावै, जब चौथाईभाग शेषरहै ॥ १० ॥ तब बराबर भाग दूध और चार तोले त्रिफलेके कल्कके संग ३२ तोले घृतको सिद्धकरै, पीछे मिसरीके संग अथवा शहदके संग ।। ११॥ युक्त करके तिमिररोगी पीवे, अथवा तिस तसे संयुक्त किये त्रिफलेके काथको पीवै ॥ यष्टीमधुद्विकाकोलीव्याघ्रीकृष्णामृतोत्पलैः ॥ १२ ॥ पालिकैः ससिताद्राक्षैर्वृतप्रस्थं पचेत्समैः।।अजाक्षीरवरावासामार्कवस्वरसैः पृथक् ॥१३॥ महात्रैफलमित्येतत्परं दृष्टिविकारजित्॥ और मुलहटी काकोली क्षीरकाकोली कटेहली पीपल गिलोय नीलाकमल ॥ १२ ॥ मिसरी दाख ये सब चार चार तोले और बकरीका दूध त्रिफलाका स्वरस वांसाका स्वरस ये सब ६४ चौंसठ तोले लेबै, पीछे इन्होंके संग ६४ तोले घृतको पकावे ॥ १३ ॥ यह महात्रेफलवृत है यह आतिशय करके दृष्टि विकारको जीतताहै ॥ त्रैफलेनाथ हविषा लिहानस्त्रिफलां निशि ॥१४॥ यष्टीमधुकसंयुक्ता मधुना च परिप्लुताम्॥मासमेकं हिताहारः पिबन्नामलकोदकम् ॥१५॥ सौपर्ण लभते चक्षरित्याह भगवान्निमिः॥ और त्रैफलघृतकरके संयुक्तकरी त्रिफलाको रात्रिम चाटै।।१४॥और मुलहटीसे संयुक्तकरी त्रिफलाको शहदके संग रात्रिमें एक महीनातक चाटै, और हितभोजनको खावै,और आंवलोंके रसका पान करतारहै ॥ १५ ॥ ऐसा मनुष्य गरुडके समान नेत्रोंको प्राप्त होताहै, ऐसे भगवान् निमिने कहाहै ॥ ताप्यायोहेमयष्ट्याह्वसिताजीर्णाज्यमाक्षिकैः ॥१६॥ संयोजिता यथाकामं तिमिरनी वरा वरा ॥ और सोनामाखी लोहा सोना मुलहटी मिसरी पुराना घत शहद ॥ १६ ॥ इन्होंकरके इच्छाके अनुसार संयुक्तकरी त्रिफला तिमिरको नाशनेमें श्रेष्ठहै ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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