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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८२४) अष्टाङ्गहृदयेऔर उष्णपदार्थसे तप्तहुये मनुष्यको शीघ्रही शीतपानीमें निमजन करनेसे ॥ २६ ॥ त्रिदोष और रक्तसे स्पष्टहुआ ऊष्मा ऊपरको नेत्रोंमें प्राप्त होताहै, तब दाह और अन्तर्दाह होता है और शुक्लभागमें लीन होजाताहै और दिनमें आविलरूप दीखताहै ॥ २७ ॥ और रात्रिमें अंधपना उपजताहै, यह उष्णतासे विदग्धहुई दृष्टि कहीहै ॥ भृशमम्लाशनादोषैः सार्या दृष्टिराचिता ॥२८॥ सक्लेदकण्डूकलुषा विदग्धाम्लेन सा स्मृता॥ और अत्यंत अम्लभक्षणसे रक्त सहित दोषोंसे व्यातहुई दृष्टि ॥ २८ ॥ लेद खाज कलुषतासे संयुक्तहो वह अम्लसे विदग्धहुई कहीहै । शोकज्वरशिरोरोगसन्तप्तस्यानिलादयः ॥ २९ ॥ धूमाविलां धूमदर्शी दृशं कुर्युः स धूमरः ॥ और शोक ज्वर शिररोगसे संतप्तहुये मनुष्यके वातादिदोष ॥ २९॥ धूमांकी समान आविल और धूमकी समान देखनेवाली दृष्टिको करतेहैं वह धूमर रोगहै । सहसैवाल्पसत्त्वस्य पश्यतोरूपमद्भुतम् ॥ ३० ॥ भास्वरं भास्करादि वा वाताधा नयनाश्रिताः॥ कुर्वन्ति तेजः संशोष्य दृष्टिं मुषितदर्शनाम् ॥३१॥ वैदूर्यवर्णा स्तिमितां प्रकृतिस्थामिवाव्यथाम् ॥ और अल्पसत्ववालके अद्भुतरूपको तत्काल देखनेवालेके ॥ ३० ॥ और प्रकाशितपदार्थ और सूर्यआदिको देखनेवालेके नेत्रोंमें आश्रित हुये वातादिदोष तेजको संशोपितकर मुषितदर्शनवाली ॥ ३१ ॥ और वैडूर्यके समान वर्णवाली और स्तिमितरूप और प्रकृतीमें स्थितहुईकी समान पीडासे रहित दृष्टिको करतेहैं ॥ औपसर्गिक इत्येष लिङ्गनाशोऽत्र वर्जयेत् ॥३२॥ विना कफाल्लिङ्गनाशान्गम्भीरां ह्रस्वजामपि ॥ षट् काचा नकुलान्धश्च याप्याः शेषांस्तु साधयेत् ॥ द्वादशेति गदा दृष्टौ निर्दिष्टाः सप्तविंशतिः॥३३॥ . यह औपसार्गकलिंगनाशहै यहां वर्जिदेवै ॥ ३२ ॥ अर्थात् कफके लिंगनाशोंके विना वात पित्त संसर्ग सन्निपात औपसर्गिक छः लिंगनाशोंको वर्जे, गंभीराको और ह्रस्वजाकोभी वर्जे और बात पित्त रक्त संसर्ग सन्निपातसे उपजे छः काचरोग और सातवां नकुलांध रोग ये कष्टसाध्य कहेहैं, शेष रहे बारह १२ रोगोंको साधित करै ऐसे २७ रोग दृष्टीमें कहेहैं ॥ ३३॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकाया मुत्तरस्थाने द्वादशोऽध्यायः ॥ १२ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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