SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 873
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८१०) अष्टाङ्गहृदयेऔर कफसे शुक्लभागमें समान और सफेद वर्णवाला अधिमांस होजाताहै, वह शुक्लार्म कहाताहै और जो पीडासे रहित शोजा हो बहलरूपहो कोमलहो ॥ १२॥ भारीहो चिकना जलकी बिंदुके समानहो, वह बलासग्रथित रोग कहाताहै ॥ बिन्दुभिः पिष्टधवलैरुत्सन्नैः पिष्टकं वदेत् ॥ १३॥ और जो पीठीसरीखी सफेद २ बिंदु होवें वह पिष्टक रोग कहाताहै ॥ १३ ॥ रक्तराजीततं शुकमुष्यते यत्सवेदनम् ॥ अशोफाश्रूपदेहं च शिरोत्पातः सशोणितात् ॥१४॥ और जो रक्तरेखाओंसे विस्तृत और पीडासहित शुक्लभाग होजावे शोजा आंशूलेपसे रहितहो, वह रुधिरसे उपजा शिरोत्पात रोग कहाताहै ॥ १४ ॥ उपेक्षितः शिरोत्यातो राजीस्ता एव वर्द्धयन्॥ कुर्यात्सास्त्रं शिराहर्ष तेनाक्ष्यद्वक्षणाक्षमम् ॥१५॥ और जो रोगकी चिकित्सा नहीं कीजावे. तो वही पंक्तियां बढतीहुई रुधिर सहित शिराहर्ष रोगको पैदा करदेतीहैं, तिसकरके नेत्र देखने में असमर्थ होजातेहैं ॥ १५ ॥ शिराजाले शिराजालं बृहद्रक्तं घनोन्नतम् ॥ और शिराओंके जालमें जो बहुतसा रक्त घन और उन्नतरूप होवे वह शिरा जाल रोग कहाताहै।। शोणितामसमं श्लक्ष्णं पद्माभमधिमांसकम् ॥१६॥ और समान हो बारीक हो पद्मसरीखी कांतिवाला हो अधिक जिसमें मांसहो वह शोणितार्म कहाताहै ॥ १६ ॥ नीरुवश्लक्ष्णोऽर्जनं विन्दुः शशलोहितलोहितः॥ मृद्वाशुवृद्ध्यरुङ्मांसं प्रस्तारिश्यावलोहितम्॥१७॥ और जो पीडासे रहित और बारीक बिन्दु हो और शशाके रुधिरके समान लालहो वह अर्जुनरोग कहाताहै, और जो मांस प्रस्तारवालाहो शीघ्रही बढजावै, कोमलहो श्याव और रक्तवर्णवाला हो ॥ १७ ॥ प्रस्ताय॑र्म मलैः सास्त्रैः स्रावार्म स्त्रावसन्निभम् ॥ शुक्लासृक्पिण्डवच्छ्यावं यन्मांसं बहलं पृथु ॥१८॥ __ वह प्रस्तारीअर्म कहाताहै और जो स्रावकी सदृश हो वह स्त्रावार्म कहाताहै, और जो सफेद तथा रक्तवर्णके मिलेहुए पिंडसरीखा धूम्रवर्णवालाहो बहलहो भारीहो ॥ १८ ॥ अधिमांसार्म तदाहघर्षवत्यः शिराकृताः ॥ कृष्णासन्नाः शिरासंज्ञाः पिटिकाः सर्षपोपमाः॥ १९ ॥ वह अधिमांसार्म कहाताहै दाह घर्षसे युक्त और शिराओंसे संचित पिडिका होवे काली और आसन्नरूप होवे सिरसमके समान होवे वह शिरासंज्ञक पिडिका कहातीहै ॥ १९ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy