SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 871
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८०८) अष्टाङ्गहृदयेऔर ऐसे करनेसेभी जो शांति नहीं होवे तो वर्त्मदोषके आश्रयहुई वलीको दग्ध करदेवै और दागकरके पलकको अधिक त्यागके तिसके आश्रयको दग्ध करदेवै ॥ ४० ॥ और अग्नि सरीखी तपाईहुयी सूईके अग्रभागकरके वाहिरकी भिन्नहुई अलजीका दाह करदेना चाहिये और सुंदर छिन्न कियाहुआ अर्बुदका दाह क्षार और अग्निसे करै ॥ ४१ ॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां उत्तरस्थाने नवमोऽध्यायः ॥ ९॥ दशमोऽध्यायः। अथातः सन्धिसितासितरोगविज्ञानमध्यायं व्याख्यास्यामः अब संधिसितासितरोगविज्ञानीयनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे । वायुः क्रुद्धः शिराःप्राप्य जलाभं जलवाहिनीः॥ अश्रु स्रावयते वर्त्म शुक्रसन्धेः कनीनकात् ॥१॥ तेन नेत्रं सस्यागशोफं स्यात्स जलास्रवः॥ क्रुद्धहुआ वायु जलको बहानेवाली शिराओंमें प्राप्तहोके वर्मकी संधिके कोईसे भागमें जलके समानआंशुवोंको स्त्राव पैदाकरताहै ॥ १ ॥ तिसकरके नेत्र पीडा राग शोजा जलके स्रावसे युक्त होजाताहै ॥ कफात्कफस्रवे श्वेतं पिच्छिलं बहलं त्रवेत् ॥२॥ कफेन शोफस्तीक्ष्णायः क्षारबुबुदकोपमः॥ पृथुमूलबलः स्निग्धः सवर्णमृदुपिच्छिलः॥३॥ महानपाकः कण्डूमानुपनाहः स नीरुजः॥ और कफसे कफका स्त्राव झागोंवाला सफेद और घनरूप होताहै ॥ २॥ और कफकरके तीक्ष्ण अग्रभागवाला और खार तथा बुलबुलाके समान शोजा होजाताहै, भारीमूलवाला बलवाला स्निग्ध समान वर्णवाला कोमल और झागोंवाला ॥ ३॥ बडा और पाकसे रहित खाजवाला पीडासे रहित होवे वह उपनाह कहाताहै ॥ रक्ताद्रक्तस्रवे तानं बहूष्णं चाश्रु संस्रवेत् ॥४॥ वर्त्मसन्ध्याश्रया शुक्ले पिटिका दाहशूलिनी॥ ताम्रा मुद्गोपमा भिन्ना रक्तं स्त्रवति पर्वणी॥५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy